For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क़दम उठाने से पहले विचार करना था

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

(आख़री शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ करें और शैर का लुत्फ़ लें)

अगर वफ़ा का चलन इख़्तियार करना था
क़दम उठाने से पहले विचार करना था

ये एक बार नहीं बार बार करना था
बग़ैर नाव के दरिया को पार करना था

हुसूल-ए-इल्म की ख़ातिर भटकते फिरते हैं
ग़ज़ल का फ़न जो हमें बा वक़ार करना था

उठाके बोझ ज़माने का तेरी चाहत में
शऊर-ओ-फ़िक्र की सरहद को पार करना था

वो मेरी तेग़ से मरता तो क्या मज़ा आता
उसी के तीर से उसका शिकार करना था

__________

हुसूल-ए-इल्म :- ज्ञान प्राप्त करना
शऊर :- अक़्ल
तेग़ :- तलवार

--समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1198

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on July 9, 2017 at 11:55pm
जनाब नवीन जी आदाब, सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on July 9, 2017 at 8:41pm
वाह सर क्या खूब लिखा । लाजबाब ग़ज़ल हुई । बधाई आपको ।
Comment by Samar kabeer on June 26, 2017 at 5:58am
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 26, 2017 at 5:55am
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by vijay nikore on June 24, 2017 at 11:19am

//उठाके बोझ ज़माने का तेरी चाहत में
शऊर-ओ-फ़िक्र की सरहद को पार करना था

वो मेरी तेग़ से मरता तो क्या मज़ा आता
उसी के तीर से उसका शिकार करना था//

सभी शेर बहुत अच्छे हैं, और यह और भी मन-पसंद हैं। दिल से बधाई, समर जी।

Comment by Naveen Mani Tripathi on June 14, 2017 at 10:45am
वाह वाह बहुत खूब सर ।
Comment by Samar kabeer on May 15, 2017 at 5:48pm
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Mahendra Kumar on May 15, 2017 at 10:45am

हमसे पूछो कि ग़ज़ल मांगती है कितना लहू

सब समझते है ये धन्‍धा बड़े आराम का है

-राहत इन्दौरी 

हम से पूछो कि ग़ज़ल क्या है,ग़ज़ल का फ़न क्या
चन्द लफ़्ज़ों में कोई आग छुपा दी जाये

-जाँ निसार अख़्तर

लोग आसान समझते हैं ग़ज़ल गोई को
दिल का शीराज़ा बिखरता है ग़ज़ल कहने में

-नरेश कुमार शाद

हुसूल-ए-इल्म की ख़ातिर भटकते फिरते हैं
ग़ज़ल का फ़न जो हमें बा वक़ार करना था

-समर कबीर 

वाह! यह सिर्फ ओबीओ पर ही संभव है. जय-जय. 

Comment by Mahendra Kumar on May 15, 2017 at 10:28am

//ये एक बार नहीं बार बार करना था, बग़ैर नाव के दरिया को पार करना था// वाह! क्या ख़ूब शेर कहा है आपने आदरणीय समर कबीर सर. इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई प्रेषित है. सादर. 

Comment by Samar kabeer on May 12, 2017 at 5:53pm
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
8 seconds ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, सबसे पहले ग़ज़ल पोस्ट करने व सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
5 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल 2122 1212 22..इश्क क्या चीज है दुआ क्या हैंहम नहीं जानते अदा क्या है..पूछ मत हाल क्यों छिपाता…"
13 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए आभार।"
15 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन  के लिए आभार।"
16 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए आभार।"
17 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी आभार नई जानकारी प्राप्त हुई।"
36 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी सादर प्रणाम। ग़ज़ल तक आने व प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार आपका।"
37 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।"
57 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।"
59 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ। बधाई स्वीकार करें।"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ। बधाई स्वीकार करें।"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service