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ग़ज़ल - दुश्मनी घुट के मर न जाये कहीं - ( गिरिराज )

2122   1212   22 /112

मेरी साँसें रवाँ - दवाँ कर दे  

फिर लगे दूर आसमाँ कर दे

 

प्यासे दोनों तरफ़ हैं , खाई के

है कोई.. ? खाई जो कुआँ कर दे 

 

वो ठिकाना जहाँ उजाला हो
सब की ख़ातिर उसे अयाँ कर दे

 

दुश्मनी घुट के मर न जाये कहीं

आ मेरे सामने , बयाँ कर दे

 

ऐ ख़ुदा, क्या नहीं है बस में तिरे

हिन्दी- उर्दू को एक जाँ कर दे

 

कैसे देखूँगा मै ये जंग ए अदब

मेरी आँखे धुआँ धुआँ कर दे

 

वो अकेला है राह ए हक़ में, उसे

है दुआ मेरी, कारवाँ कर दे

मेरी बातें हों नागवार जिन्हें

रू ब रू उनके, बे ज़बाँ कर दे

******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 2, 2017 at 12:47pm

आपने मेरा यह वाक्य शायद नही पढा ...// आपको मेरे शेर गलत लग रहे हों तो इस्लाह कर सुधार दीजिये -- मै स्वीकार कर लूँगा // बाक़ी बातें मेरी भावनाओं की हैं जिन्हे मै गलत नही समझता ।
आपको गर सूझे तो आप ही बता दें .. क्या मैने पहले आपकी इस्लाह स्वीकार नही किये हैं ... बस अभी फरक यही है कि अभी मेरी शेर मुझे गलत नही लग रहा है ... फिर भी मै हर बेहतर का स्वागत कर रहा हूँ और करूँगा ... सही अगर और सही हो तो और अच्छा .. मेरा यही मानना है ... बस शेर के भाव मेरा न बदले.. मुझे और बेहतर हमेशा स्वीकार है .. मै सही हूँ या गलत मै नही सोचता .और कभी तर्क नही देता ..  मुझे इंतिज़ार है .. इस्लाह का .. आदरणीय विनम्र इंतिज़ार ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2017 at 11:24am

आ. गिरिराज जी,
ग़ज़ल पर कोई टिप्पणी नहीं लेकिन आपने तर्क और गणित को ग़लत साबित करने का प्रयास किया है तो गणित के छात्र को बीच में आना पड़ रहा है ....
100 पैसे यानी 10 X 10 पैसे
यहाँ पहला 10 ..10 ही रहेगा क्यूँ कि वो एक अंक  है ईकाई नहीं और दूसरा 10 यानी पैसे को 1/10 रु लिखा जाएगा (यानी 1/10 रु का 10   गुना)
यानी  10 X 1/10 रु = 1 रु....
आशा है आप के कॉन्सेप्ट्स क्लियर हुए  होंगे 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 6:47pm

आदरणीय समर भाई , मै अपने पक्ष मे तर्क कभी नही देता , लेकिन आज ये कह्ना पड़ रहा है कि ... किसी को शेर समझ न आये और कोई किसी ने उसे वैसा ही समझ कर बता दिया हो, जैसा मै ने कहना चाहा है , तो मुझे क्या करना चाहिये ...  मेरे शेर मे मै कोई परिवर्तन की ज़रूरत नही समझता । हो सकता है कुछ शेर आपको सही न लगें ...  मै तर्क नही दूँगा ...क्यों कि तर्क देना मै सही नही समझता और ये इस लिये कि तर्क सही निर्णय नही देते -- देखिये एक गणित का उदाहरण -- बात कुछ अलग है लेकिन तर्कों की निस्सारता ज़रूर मुझे समझ आयी ...
1 रुपये = 100 पैसे
या - 1 रुपये =  10 गुणा 10 पैसे
या - 1 रुपये =  1/10  गुना 1/10 रुपये  ( क्यों कि 10 पैसा रुपया का दसवाँ भाग होता है )
या -  1 रुपये = 1/100 रुपये  ( 1/10गुना 1/10 = 1/00 )
या - 1 रुपये = 1 पैसा ( क्यों कि 1/100 रुपया = 1 पैसा )
क्या ये सही है ...
अब तक तर्कों ने हमे यही दिया है । क्या तय कर लिया हमने इतने तर्क दे कर ?.. ज़रा सोचियेगा ।

आपको मेरे शेर गलत लग रहे हों तो इस्लाह कर सुधार दीजिये -- मै स्वीकार कर लूँगा । और अगर उसके बाद भी कोई न समझ पाया तो ? सोचियेगा । 

Comment by Samar kabeer on May 1, 2017 at 6:07pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,अहमियत इस बात की नहीं है कि आपने क्या कहा है,अहमियत इस बात की है कि पाठक क्या समझ रहा है ।
'मेरी साँसें रवां दवां कर दे
फिर लगे दूर आसमाँ कर दे'
साँसें तेज़ होने से घुटन कैसे कम होगी,अगर घुटन कम करने की दुआ करना है तो हवा चलाने की दुआ करना चाहिये,साँसें उस वक़्त तेज़ होती हैं जब आदमी तेज़ दौड़ता है और हांपने लगता है,और ये कमज़ोरी का प्रतीक है,मैं जानता हूँ कि आसमान सात होते हैं,इसे मंज़िल के प्रतीक के लिये इस्तेमाल करेंगे तो,आदमी ये दुआ करता है कि उसकी मंज़िल उससे क़रीब हो जाये,ये कौन कहेगा कि मंज़िल दूर करदे,ये मतला पूरी तरह शिल्प की कमज़ोरी बयान कर रहा है,इस पर थोड़ा गौर करने का निवेदन करूँगा आपसे ।
'प्यासे दोनों तरफ़ हैं खाई के
है कोई? खाई जो कुआँ कर दे'
इस शैर में भी शिल्प बहुत कमजोर है,भला कोई कैसे खाई को कुआँ कर सकता है भाई ?
'वो ठिकाना जहाँ उजाला हो
सब की ख़ातिर उसे अयाँ कर दे'
इस शैर में भी शिल्प कमज़ोर है, उजाले को कोई अयाँ नहीं करता,उजाले की तो फ़ितरत है कि ख़ुद अयाँ हो जाता है ।

'दुश्मनी घुट के मर न जाये कहीं
आ मेरे सामने,बयाँ कर दे'
इस शैर में भी कथ्य कमज़ोर है, दुश्मनी घुट के अगर मर रही है तो ये तो अच्छी बात है,ये शैर यूँ होना चाहिये:-
"आरज़ू घुट के मर न जाये कहीं
आ मेरे सामने,बयाँ कर दे'
बाक़ी शुभ शुभ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 11:10am
आदरणीय रवि भाई , आपने मतले को समझने की कोशिश की इअसके लिये आपका हार्दिक आभार ।
आ. उला मे सांसों मे गतिशीलता मांगना मतलब अभी सांसों का घुटना ... और आसमान का उपयोग म,ज़िल के प्रतीक के रूप मे हुआ है ... और आसमान सात हैं .. बस इसकेबाद बाक़ी बातें समजहने मे कोई मुश्किल नही होगी ऐसा मेरा विश्वास है ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 11:03am

आदरनीय अनुराग भाई , घरेलू काम मे व्यस्त होने के कारण देर से उपस्थित हो पाया -- क्षमा कीजियेगा ।

गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।

आदरनीय मैने भी भाषा को प्रतीक बना कर बात उन्हे ही कही है , जिन्हे आप मठाधीश कह रहे हैं , और साथ मे दोनो कौमों भी ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 10:43am

आदरणीय शिज्जु भाई , घरेलू काम मे व्यस्त होने के कारण देर से उपस्थित हो पाया -- क्षमा कीजियेगा ।


ग़ज़ल पर उपस्थिति के लिये आपका हार्दिक आभार । आपकी शंका का समाधान आ. समर भाई जी को दिये जवाब मे दे दिया हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 10:42am

आदरणीय सुरेन्द्र भाई , घरेलू काम मे व्यस्त होने के कारण देर से उपस्थित हो पाया -- क्षमा कीजियेगा ।

गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 10:41am

आदरणीय बृजेश भाई ,घरेलू काम मे व्यस्त होने के कारण देर से उपस्थित हो पाया -- क्षमा कीजियेगा ।

हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 10:40am

आदरनीय रवि भाई , घरेलू काम मे व्यस्त होने के कारण देर से उपस्थित हो पाया -- क्षमा कीजियेगा ।

हौसला अफज़ाई के लिये आपका बहुत शुक्रिया .. बाक़ी बाते मै ..आ. समर भाई जी को दिये जवाब मे लिख चुका हूँ , कृपया अवलोकन कर लीजिये ।

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