फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
(एक शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ कर दें)
जो कहूँ जो लिखूँ ओबीओ के लिये
यूँ समर्पित रहूँ ओबीओ के लिये
माँगता हूँ यही आजकल मैं दुआ
जब तलक भी जियूँ ओबीओ के लिये
वक़्त इसके लिये कुछ निकालो ज़रा
ये गुज़ारिश करूँ ओबीओ के लिये
दूसरा काम कोई नहीं है मुझे
जब रुकूँ ,जब चलूँ ओबीओ के लिये
आप आऐं हमारे परिवार में
जो मिले ये कहूँ ओबीओ के लिये
अब ग़ज़ल या कथा ही नहीं दोस्तो
छन्द भी मैं लिखूँ ओबीओ के लिये
ज़िक्र इसका रहे हर ज़बाँ पर "समर"
काम ऐसे करूँ ओबीओ के लिये
समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर साहब , आपने जो कहा या तक्तीह की, व्पो तो मैं समझ ही रहा हूँ. मुझे परेशानी इसवाक्य जो लेकर है... //'परिवार'शब्द की तक़ती मैंने उर्दू के लिहाज़ से 212 की है//
यहाँ परिवार को २१२ में कैसे या कहाँ बाँधा गया है. मैं समझता हूँ यह टंकण त्रुटि है.
शुभ-शुभ
मैं बीच में कुछ कहूँ इतना ज्ञान नहीं है मुझे लेकिन बहस न खिंचे इसलिए यदि
एक परिवार है आइये आप भी
किया जा सकता हो तो देखियेगा सर
.
सादर
मुबारकां हुज़ूर मुबारकां ..
आपकी दिली ख़्वाहिशें पूरी हों.
//'परिवार'शब्द की तक़ती मैंने उर्दू के लिहाज़ से 212 की है//
इस पंक्ति पर रोशनी डालें आदरणीय. सीखने-सिखाने का नज़रिया बना रहे.
सादर
संग तेरे रहूँ .. ओ बी ओ के लिये
तू कहे , मै कहूँ .. ओ बी ओ के लिये
आदरणीय समर भाई , एक बार फिर ओ बी ओ के प्रेम मे पगी आपकी बेहतरीन गज़ल पढ़्ने मिली , आपकी सद्भावनाओं को नमन एवँ गज़ल के लिये आपको हृदय तल से बधाइयाँ प्रेषित हैं ... स्वीकार कीजिये ।
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