Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 4, 2017 at 7:06pm — 7 Comments
Added by Rahila on April 4, 2017 at 5:52pm — 12 Comments
कुछ दिनों से गर्ल्स स्कूल के सामने लड़को की भीड़ और उनकी बद्तमीज़ियां बढ़ती ही जा रही थी ,छात्राओं का गेट से निकलना भी मुश्किल होता जा रहा था। आज यहाँ बहुत तेज तेज आवाज़े गूंज रही है क्योकि स्कूल टीचर्स की कंप्लेंट पर आज पुलिस ने सादा लिबास में मजनुओं की टोली को पकड़ लिया था और पुलिस स्टेशन ले जा रहे थे।
उनके खिलाफ गवाही देने के लिए नीलम और उसके साथ की ही कुछ अन्य टीचर्स भी पुलिस स्टेशन पहुंच गई कुछ इंतजार के बाद ही उन लड़को के पेरेंट्स भी पुलिस स्टेशन पहुँच गए और अपने लड़को को डांटते …
ContinueAdded by अलका 'कृष्णांशी' on April 4, 2017 at 4:00pm — 11 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 3, 2017 at 7:24pm — 14 Comments
घनाक्षरी में सांगोपांग सिंहावलोकन छंद के साथ प्रथम प्रयास
**
जाइए यहाँ से अभी
सरदी बहुत है जी
बादल आवारा सुनो
गर्मियों में आइए
.
आइए जो गरमी में
बरखा बहार संग
ठंडी सी हवाओं वाला
रस भी तो लाइए
.
लाइए जो बिजली तो
गरज गरज कर
कसक बरसने की
हमे न दिखाइए
.
खाइए न भाव अब
उचित समय पर
कृषकों की आस जरा
पूरी कर जाइए
**
"मौलिक व…
ContinueAdded by अलका 'कृष्णांशी' on April 3, 2017 at 3:00pm — 18 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 3, 2017 at 9:29am — 14 Comments
दुनिया का सबसे अद्भुत
पति पत्नी के बीच अमर प्रेम का स्मारक
विश्व के तथाकथित आश्चर्यों में से एक
जहा दफ़न है दो आत्माएं
जिसे बनवाया था
मुग़ल शहंशाह शाहजहाँ ने
अपने बेमिसाल पत्नी प्रेम के आडम्बर में
या फिर अपने वैभव की झूठी शान में
जो उसके बेटे ने ही ख़त्म की
उन्हें कैद में डालकर
ताजमहल
जिसे खुद शाहजहाँ ने नहीं बनाया
उसे गढा था
उस युग के बेमिसाल वास्तुकारों ने
स्तब्ध किया था दुनिया…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2017 at 8:54pm — 5 Comments
1. झुलसी काया
आतंकी-सा सूरज
बेचैन सब ।
2.सूनी सड़कें
पसरा है सन्नाटा
जारी खर्राटे ।
3.डाल से टूटे
बरगद के पत्ते
सुनाए राग ।
4. सूखने लगे
पोखर औ तालाब
छोटी रात ।
5.नन्ही चीड़िया
करके जलपान
फुर्र हो जाए ।
6.चैत्र महीना
रात-दिन तपाए
किधर जाएँ ।
7.लू के थपेड़े
साँय-साँय सन्नाटा
सुस्ती में तन ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on April 2, 2017 at 3:30pm — 15 Comments
Added by मनोज अहसास on April 2, 2017 at 3:17pm — 18 Comments
ग़ज़ल (मुहब्बत ही निभाई दोस्तों )
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2122 -2122 -2122 -212
आँख उसने जब भी नफ़रत की दिखाई दोस्तों |
मैं ने बदले में मुहब्बत ही निभाई दोस्तों |
रुख़ तअस्सुब की हवा का भी अचानक मुड़ गया
जिस घड़ी शमए वफ़ा हम ने जलाई दोस्तों |
गम है यह इल्ज़ाम साबित हो नहीं पाया मगर
आज़माइश फिर भी क़िस्मत में है आई दोस्तों |
बन गया दुश्मन अमीरे शह्र मेरा इस लिए
हक़ की खातिर ही क़लम मैं ने…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 2, 2017 at 12:07pm — 15 Comments
हाजिरी वो ज्यों लगाने आ गए
याद उनको फिर बहाने आ गए
मुट्ठियों में वो नमक रखते तो क्या
जख्म हमको भी छुपाने आ गए
चल पड़े थे हम कलम को तोड़कर
लफ्ज़ हमको खुद बुलाने आ गए
जेब मेरी हो गई भारी जरा
दोस्त मेरे आजमाने आ गए
रोज लिखना शायरी उनपर नई
याद हमको वो फ़साने आ गए
शमअ इक है लाख परवाने यहाँ
इश्क में खुद जाँ लुटाने आ गए
झील में अश्जार के धुलते …
ContinueAdded by rajesh kumari on April 2, 2017 at 11:00am — 24 Comments
Added by ASHUTOSH JHA on April 2, 2017 at 12:06am — 6 Comments
22 22 22 22 22 2
रंग बदलते रुख़सारों से क्या लेना ।
रोज मुकरते किरदारों से क्या लेना ।।
गंगा को मैली करती हैं सरकारें ।
उनको जग के उद्धारोँ से क्या लेना ।।
खूब कफ़स का जीवन जिसको भाया है ।
उस पंछी को अधिकारों से क्या लेना ।।
जंतर मंतर पर बैठा वह अनसन में ।
राजा को अब लाचारों से क्या लेना ।।
टूट चुका है उसका अंतर मन जब से ।
जग में दिखते मनुहारों से क्या लेना ।।
फुटपाथों पर जिस्म बिक रहा खबरों में…
Added by Naveen Mani Tripathi on April 1, 2017 at 10:30pm — 5 Comments
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
(एक शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ कर दें)
जो कहूँ जो लिखूँ ओबीओ के लिये
यूँ समर्पित रहूँ ओबीओ के लिये
माँगता हूँ यही आजकल मैं दुआ
जब तलक भी जियूँ ओबीओ के लिये…
Added by Samar kabeer on April 1, 2017 at 2:30pm — 43 Comments
हम तुम
दो तट नदी के
उद्गम से ही साथ रहें हैं
जलधारा के साथ बहे हैं
किन्तु हमारे किस्से कैसे, हिस्से कैसे
सबने देखा, सबने जाना,
रीति-कुरीति, रस्म-रिवाज, अपने-पराये
सब हमारे बीच आये
एक छोर तुम एक छोर मैं
इनकी बस हम दो ही सीमाएं
जब इनमे अलगाव हुआ दुराव हुआ
धर्म-जाति का भेदभाव हुआ
क्षेत्रवाद और ऊँच-नीच का पतितं आविर्भाव हुआ
तब हम तुम
इस जघन्य विस्तार से और दूर हुए
तब भी इन्हें हमने ही हदों…
Added by आशीष यादव on April 1, 2017 at 1:30pm — 6 Comments
मेरी आँखों में नज़र ये ढूँढती क्या चीज़ है
कुछ तो बतला दे कि तेरी खो गई क्या चीज़ है ॥
रात दिन सीने की दीवारों पे ये पटके है सर
ऐ खुदा इस बुत में तूने डाल दी क्या चीज़ है ॥
हिज्र में जिस ने सुनी हों ग़ज़लें तन्हा बैठ कर
उससे जाकर पूछिए ये शायरी क्या चीज़ है ॥
तेरे ख्वाबों से उठा तुझ को न पाया सामने
अब समझ में आ रहा है तिश्नगी क्या चीज़ है ॥
यूँ तो जीने का तजुर्बाहै बहुत हम को मगर
अब तलक समझे नहीं हैं ज़िंदगी क्या चीज़ है…
Added by Gurpreet Singh jammu on April 1, 2017 at 10:00am — 13 Comments
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