हल्की फुल्की गीतिका(गजल)(16-16)
सर्दी की हैं जान पकौड़े
और बारिश की शान पकौड़े
पढ़-लिखकर अब क्या करना है?
जब देते सम्मान पकौड़े।
रोटी गर तुम पाना चाहो
तलो कढ़ाई तान पकौड़े।
बख्श के इज्जत हम लोगों को
करते हैं अहसान पकौड़े।
तेज मसाला प्याज हो महँगा
खा ले क्या इंसान पकौड़े।
'राणा' मय के साथी अच्छे
बस जुमला ना मान…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 25, 2018 at 12:30pm — 3 Comments
सबक
देश खोखला होता जाता,आज यहाँ मक्कारों से
सदा कलंकित होता भारत, भीतर के गद्दारों से
लाज शर्म है नहीं किसी को, अपना नाम डुबाने में
मटियामेट करे इज्जत को, देखो आज जमाने में
देश धरा के जो हैं दुश्मन, सबको नाच नचाते हैं
सारी अर्थव्यवस्था को वे, तितर वितर कर जाते हैं
अपनी मर्जी के हैं मालिक, अपना हुक्म चलाते हैं
लूट लूट कर भरे तिजोरी, फिर ये गुम हो जाते हैं
आज व्यवस्था जमीदोज है, हर जुर्मी हैवानों से
कैसे मुक्ति मिले भारत को, इन पाजी…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on February 25, 2018 at 9:21am — 10 Comments
हमें अब मरना होगा
अपने आदर्शों के साथ
गला घोंटना होगा
अपने ही सिद्धांतों का
सूली पर चढ़ाना होगा मान्यताओं को
इन सबका औचित्य समाप्त - सा हो गया है
सच की अँतड़ियाँ निकल आई है
काल के दर्पण पर कुछ भद्दे चेहरें
मुँह चिढ़ा रहे है खोखले मानव को
दिन सारे दहशत में झुलसते रहते हैं
दोपहर को लू लग गई है
कँपकँपी-सी लगी रहती है शाम को
रातें आतंकी के विस्फोट -सी लगती है
हमें अब मरना होगा अपने आंदोलनों के साथ
भूख हड़ताल और आमरण अनशन…
Added by Mohammed Arif on February 25, 2018 at 8:00am — 5 Comments
1222 1222 122
किसी पर जां निसारी हो रही है ।
नदी अश्कों से खारी हो रही है ।।
सुकूँ की अब फरारी हो रही है ।
अजब सी बेकरारी हो रही है ।।
तुम्हारे हुस्न पर है दाँव सारा ।
यहाँ दुनियां जुआरी हो रही है ।।
शिकस्ता अज़्म है कुछ आपका भी ।
सजाये मौत जारी हो रही है ।।
जली है फिर कोई बस्ती वतन की ।
फजीहत फिर हमारी हो रही है…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on February 24, 2018 at 10:57pm — 5 Comments
पर मोहब्बत---
वह आदमी जो अभी-अभी
मेरे जिस्म से खेल कर
बेपरवाह उघड़ के सोया है
और जिसके कर्कश खर्राटे
कानों में गर्म शीशे से चुभते है
और जो नींद में भी अक्सर
मेरी छातियों से खेलता है
सिर्फ मेरी बात करता है
मैं उससे नफ़रत तो नहीं करती
पर मोहब्बत ----------------
मेरी तकलीफ़ उसे बर्दाश्त नहीं
एक खाँसी भी उसकी साँस टाँग देती है
मेरे आँसू सलामत रहें इसलिए
वो प्याज काटने लगा…
ContinueAdded by somesh kumar on February 24, 2018 at 10:31pm — 5 Comments
"वाह, नया घर तो बहुत अच्छा है! लेकिन ये खिड़कियां और दरवाज़े हमेशा बंद ही क्यों रखती हो?" दो साल बाद आये भाई ने अपनी बहिन से पूछा।
"तुम्हारे जीजाजी के कहे मुताबिक़ सब करना पड़ता है!" बहिन ने भाई को सुंदर बेडरूम दिखाते हुए कहा।
"बेडरूम में ये डंडा और रॉड क्यों है दरवाज़े के पीछे?" मुआयना करते हुए भाई ने हैरत से पूछा।
"तरह-तरह के लोग आते रहते हैं यहां, उनके अॉफिस के अलावा! मारपीट की गुंजाइश भी रहती है उनके वक़ालत के काम में न!" बहिन कुछ उदास हो कर बोली,…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 24, 2018 at 10:30pm — 5 Comments
बह्र:- 2122-2122-2122-212
होश खोकर मैं न पल्लू में सिमट जाऊं कहीं।।
'इस तरह बहकूँ न होटों से लिपट जाऊँ कहीं'।।
'डरते डरते आज अपनी उम्र के इस खेल में ।
इश्क़ के दो बोल सुनकर ही न पट जाऊँ कहीं'।।
'ये फ़ज़ाएँ शौख़ कमसिन छेड़ती हैं जिस्म को।
कांपते हैं ये क़दम मैं न रपट जाऊँ कहीं'।।
एक जर्रा चाहता हूँ प्यास से झुलसा हुआ।
कि समंदर बावला ले कर उलट…
Added by amod shrivastav (bindouri) on February 24, 2018 at 2:00pm — 4 Comments
वैश्वीकरण और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के दौर में स्वार्थपरक समझौतों और गतिविधियों के ज़रिये एक-दूसरे की 'नेकी' और 'दरिया' नये रूप में परिभाषित हो रहे थे। चर्चा चल रही थी :
विकसित देश (विकासशील देश से) - "नेकी कर दरिया में डाल। हम आपके दोस्त हैं!"
विकासशील देश (अपने नेताओं, व्यापारियों और उद्योगपतियों से) - "घोटाले कर और विदेश (दोस्त) में डाल। हम कर्ज़दार हैं।"
नेता, व्यापारी और उद्योगपति (अपने सत्ताधारी राजनैतिक दल से) - "हमसे ले, फिर हमको…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on February 24, 2018 at 1:00am — 2 Comments
अंधा कानून – लघुकथा –
"वक़ील साब, आप म्हारे गाँव के हो और जाति बिरादरी के भी हो, इसीलिये आप के पास बड़ी उम्मीद लेकर आये हैं"।
"बोलो सरजू भाई, बात क्या है"?
"चौधरी रामपाल के छोरे ने म्हारी छोरी की इज्जत लूट ली"।
"पूरी बात खुलकर बताओ। क्या हुआ,कैसे हुआ, कहाँ हुआ"?
"म्हारी छोरी बकरी चरा रही थी, चौधरी के आम के बगीचे के पास। नीचे ज़मींन पर दो चार कच्चे आम पड़े दिखे तो छोरी बीनने लग गयी। पीछे से चौधरी के छोरे ने उसे दबोच लिया और इज्जत लूट ली"।
"फ़िर क्या किया…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on February 23, 2018 at 8:30pm — 10 Comments
221 2121 1221 212
डूबा मिला है आज वो गहरे खयाल में ।
मिलता कहाँ सुकून है उलझे सवाल में ।।
बरबादियों का जश्न मनाते रहे वो खूब ।
फंसते गए जो लोग मुहब्बत के जाल में ।।
आनी थी हिज्र आ गयी शिकवा खुदा से क्या ।
रहते मियां हैं आप भी अब क्यों मलाल में ।।
करता है ऐश कोई बड़े धूम धाम से ।
डाका पड़ा है आज यहां फिर रिसाल में…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on February 23, 2018 at 6:50pm — 5 Comments
221 2121 1221 212
...
गम पे उठी ग़ज़ल तो वो दिल में उतर गयी,
खुशियों का ज़िक्र आया कयामत गुज़र गयी ।
इतनी थी खुशनसीब मेरी ज़िंदगी मगर,
इक प्यार की लकीर न जाने किधर गयी ।
वो छोटी- छोटी बातों पे रहने लगे खफा,
कहने लगे थे लोग कि किस्मत सँवर गयी ।
वो गैर सा हुआ मुझे अफसोस था मगर,
वो अजनबी हुआ मेरी दुनियाँ बिखर गयी ।
निकली जो आह दिल से असर कब कहां हुआ,
दिल से निकल के रूह के अंदर उतर गयी…
ContinueAdded by Harash Mahajan on February 23, 2018 at 3:00pm — 6 Comments
उस औरत की बगल में लेट कर
सोचता हूँ तुम्हारे बारे में अक्सर
रोज जिंदगी का एक पेज भरा जाता है
दिमाग अधूरे पेज़ पर छटपटाता है
सोचता हूँ अगर वह औरत तुम होती
तो कहानी क्या इतनी भर होती !
या तब भी अटका होता किसी अधूरे पन्ने पर
भटक रहा होता पूरी कहानी की तलाश में |
सोचता हूँ इस कहानी के अंत के बारे में
सोचता हूँ उस अनन्त के बारे में
सोचता हूँ प्यार अगर अधूरेपन की तलाश है
तो ये कहानी कभी पूरी ना हो !
कई बार एक…
ContinueAdded by somesh kumar on February 23, 2018 at 9:30am — 4 Comments
बह्र -212-212-212-212
मैने कह तो दिया जिंदगी आपकी।।
अब समझ में नहीं आ रही बेरुख़ी ।।
धड़कनें दिल की अपनी जवां गिन कहो।
क्या बदलती न मेरे लिए आज भी।।
आप समझें मुझे गर खिलौना न गम।
मुझको स्वीकार है ना समझ आशिक़ी।।
प्यार अहसास जुल्मों सितम रख लिए।
आगे चलकर मिले न मिले यह सभी।।
जिसकी रग में मुहब्बत की स्याही बहे।
वो कलम क्या बगावत लिखेगी कभी।।
कितना छांटो या काटो या मोड़ो…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on February 23, 2018 at 8:30am — 3 Comments
अरकान: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
जब उठी उनकी नज़र, इफ़रात घर जलने लगे।
ख़ुद नहीं हमको ख़बर, किस बात पर मरने लगे।।
आपकी काबिल मुहब्बत, सीख हमको दे गई,
राह में आईं अगर, आफा़त हर सहने लगे।।
यह ज़मीं ज़न्नत नज़र आएगी इक दिन खुद-ब-खुद,
बाप-माँ की हर बशर ख़िदमात गर करने लगे।।
मिल गई इक बार अब नुसरत उसे फिर से वहाँ,
आजकल वो ज़र जिधर ख़ैरात कर चलने…
Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on February 22, 2018 at 11:00pm — 4 Comments
Added by Kumar Gourav on February 22, 2018 at 8:26pm — 1 Comment
राजनीति करते वोटों की
कुत्सित चाल चला करते
अपना स्वार्थ सिद्ध करने को
आपस में झगड़ा करते
भीड़ जुटाकर आग उगलते
वाक्-वाण वे चलवाते
धर्म जाति का जहर घोल
भड़काकर नफरत फैलाते
कर दें विफल योजना इनकी
जो जन धन लूटा करते
इन्हें नहीं है प्यार राष्ट्र से
यह अपना ही घर भरते
जाने कितने शकुनि यहाँ पर
अनगिन चालें चलवाते
लड़वाते जन को आपस में
खुद बेदाग निकल जाते
इनके…
ContinueAdded by Usha Awasthi on February 22, 2018 at 6:40pm — 4 Comments
झूमी सरसों
धरती इतरायी
फगुनाहट
बसंत आया
ओढ़ पीली चुनर
खेत बौराया
बौर आम के
फैल गयी सुगंध
झूमा बसंत
टेसू क्या फुले
अंगड़ाया पलाश
फागुन आया
.... मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on February 22, 2018 at 4:47pm — 3 Comments
ख्याल-1
1 तुम मेरी ज़िन्दगी से निकल जाओ
तुम्हारे रहते दिल सम्भाला ना जाए
रोशनी कोई कैसे कोई जले अंगने में
यादों का जब तक उजाला ना जाए
खुशबुएँ तर हो महके कोना कोना
किताबों से वो फूल निकाला ना जाए
प्यार है उसे रिश्ते का नाम ना दो
सितम हद करे नाम उछाला ना जाए |
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ख्याल-2
यूँ जो चुपके से तुम अब भी बात करती हो
मुझे महसूस होता है अब भी…
ContinueAdded by somesh kumar on February 22, 2018 at 11:32am — 3 Comments
1222 1222 1222 1222
ज़मीन-ओ-आसमाँ के दरमियाँ रस्ता बनाता हूँ
इसी दुनिया में अपनी मुख़्तसर दुनिया बनाता हूँ
चढ़ाकर चाक पर मिट्टी कहा कुम्हार ने मुझसे
जहाँ जैसी ज़रूरत है इसे वैसा बनाता हूँ
बना लेता है अपने आप ही ये मुख़्तलिफ़ शक्लें
मेरा फ़न सिर्फ़ इतना है कि आईना बनाता हूँ
गुज़श्ता ज़िंदगी के तज़्रबों से वाकिए चुनकर
अकेला होता हूँ जब भी, कोई किस्सा…
Added by शिज्जु "शकूर" on February 22, 2018 at 11:24am — 5 Comments
(मफाईलुन-मफाईलुन-फऊलन )
जो अज़मे तर्के उल्फ़त कर रहा है|
ये दिल फिर उसकी हसरत कर रहा है |
लगाए ज़ख़्म देने वाला मरहम
ये दिल यूँ ही न हैरत कर रहा है |
वफ़ा मिलती कहाँ है हुस्न में वो
जिसे पाने की जुरअत कर रहा है |
दिले नादां दगा जिसकी है फ़ितरत
उसी से तू महब्बत कर रहा है |
मरीज़े इश्क़ की लौटी हैं साँसें
कोई शायद अयादत कर रहा है |
मिलेंगे हश्र में यह बोल कर वो
मुझे कूचे…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 21, 2018 at 8:30pm — 12 Comments
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