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आसमां परिंदो का

मन कहता है

आसमां में चलो

दिमाग कहता है

चले आसमां में

तो गिर जाओगे

दिल और दिमाग ने

किया मिलकर मंथन और

कर दिया फैसला

जिंदगी की मेरी

संभल कर चलो

जमीन पर

पहुंच जाओगे मंजिल पर

न पालों ख्‍वाहिश

आसमां में उडने की

क्‍योंकि

जमीं तुम्‍हारी

आसमां परिंदो का

अपनी हद में रहो

उडने दो उन्‍हें भी

खुले आकाश में

फिर देखा है न

आसमां में उडने वाले को

उन्‍हें भी आना होता है

अपनी जमीं… Continue

Added by Harish Bhatt on March 28, 2012 at 12:48pm — 6 Comments

बेहिसाब मिला

गम मिला मुझको बेहिसाब मिला 

बस मुहब्बत का यह ईनाम मिला 
गम मिला मुझको--------------
.

हमको आता है मज़ा जलने में हकीकत है…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 27, 2012 at 11:30am — 7 Comments

ग़ज़ल.



प्यार की मीठी बातों क़े माने ग़ज़ल,..
इश्क करते है जो वो ही जाने ग़ज़ल.
**
गोया गागर में सागर समाया करे,...
चंद लफ़्ज़ों में कहती फ़साने ग़ज़ल....
**
प्यार पर ही टिका है ये सारा जहाँ,...
बात सबको लगी है बताने ग़ज़ल.....
**
रौब अपना जमाने यहाँ बज़्म में,..
छेड़ देते है यूँ  ही सयाने ग़ज़ल.....
**
चांदनी रात में देख उनकी…
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Added by AVINASH S BAGDE on March 27, 2012 at 11:22am — 12 Comments

मै ..........

जीवन मुझसे हरदम जीता ,

मै सदा सदा इससे हारा ,,

आकुल मन पिंजर बंद हुआ ,

कातर घायल यह बेचारा ,,

अति गहन तिमिर में व्याकुलमन,

विस्मृति से मुझे उबारे कौन,,

यह बुद्धि मनीषा किससे पूछे,

निर्जर भी सब हो गए मौन ,,

कुसुमित होता था कुसुम जहां ,

वह बगिया भी अब सूख गई ,,

निर्झरिणी बहती थी जहां सदा,

वह अमिय जाह्नवी सूख गई ,,

हा करुणा करुण विलाप करे ,

पर नेत्र नही हैं पनियाले ,,

तट बंध भ्रमित हो यह प्रश्न करे…

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Added by अश्विनी कुमार on March 26, 2012 at 10:00pm — 7 Comments

बुझना ही होता है

बुझना ही होता है

वोह जाना चाहते थे दूर

किनारा कर किया हमनें
न हो तकलीफ उनको
यह ईरादा कर लिया हमनें 
वोह जाना चाह----------
बड़ा मुश्किल था जीना क्या…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 26, 2012 at 10:40am — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
देश की सूरत

भावनाओं का दमन,  

संवेदनाओं का संकुचन देख रहे हैं 

आदान-प्रदान सब गौण  हुए  

अब ऐसा चलन देख रहे हैं |

स्वार्थ के बढ़ते  दाएरे, 

जन- जन  को छलते देख रहे हैं 

हिंद  का वैभव स्विस बेंकों में 

 हक को जलते देख रहे हैं |

भ्रष्टाचारी को जीवंत, 

संत ज्ञानी को मरते देख रहे हैं 

अगन उगलते सूरज में, 

नम धरा झुलसते देख रहे हैं | 

दूध की नदियाँ…

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Added by rajesh kumari on March 26, 2012 at 10:30am — 10 Comments

स्वप्निल पाती

इस प्यार भरे बासंती बयार में- 
तेरे स्वप्निल नयनो की पाती.
नयनो नयनो में मधुरगीत गाती 


स्वप्निल मधुर गीतों की पाती 
गायन के मौसम में खूब सुहाती …


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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 26, 2012 at 10:00am — 3 Comments

सत्य का प्रहार

अभेद्य है ये दुर्ग अभी न सेंध से प्रहार कर I

बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II

                                     प्रहार कर प्रहार कर........

धन की बहुत लालसा  बिके हुए जमीर हैं.

तन के महाराज सभी  मन के ये फ़कीर हैं.

विवश  अब नहीं है तू , देख तो पुकार कर

बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II

                                     प्रहार कर प्रहार कर........

                   

कौम अब पुकारती  न और इन्तजार कर,

रक्त से बलिदान के सींचित इस…

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Added by Ashok Kumar Raktale on March 25, 2012 at 4:25pm — 10 Comments

ये कहाँ आ गए हम

ये कहाँ आ गए हम

यूँ साथ चलते-चलते….

कभी मरते थे

एक-दूजे पर

आज मार रहे

एक-दूजे को

कभी कहते थे

हिन्दू- मुस्लिम- सिख- ईसाई

आपस में है भाई-भाई

कैसे बदलती है सोच

यह भी देख रहे

गैरों से लड़ते-लड़ते

अपनों से लड़ बैठे

शान्ति की तलाश में

अमन को खो…

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Added by Harish Bhatt on March 25, 2012 at 12:02pm — 2 Comments

गज़ल - फरियाद करने जा रहे हो

और किसको शाद करने जा रहे हो

क्यों  मुझे बरबाद करने जा रहे हो

 

बज्म में चर्चा मेरी बदनामियों का  

और  तुम इरशाद करने जा रहे हो

 

जो हकीकत थी सुनानी तुम उसे ही

अन- कही रूदाद करने  जा  रहे हो

 

जिस चमन में फूल नफरत के उगे हैं

तुम  उसे  आबाद करने  जा रहे हो

 

ठोकरों  से  चोट खाकर पत्थरों  के

द्वार  पर फरियाद  करने जा  रहे हो

 

 

..................................... अरुन श्री !

Added by Arun Sri on March 25, 2012 at 11:00am — 17 Comments

हमको बहुत लूटा गया - 2

हमको बहुत लूटा गया,

फिर घर मेरा फूंका गया.

 

झगड़ा रहीम-औ-राम का,

पर, जान से चूजा गया.

 

दर पर, मुकम्मल उनके था,

बाहर गया, टूटा गया.

 

भारी कटौती खर्चो में,

मठ को बजट पूरा गया ,

 

मजलूम बन जाता खबर,

गर ऐड में ठूँसा गया. (ऐड = प्रचार/विज्ञापन/Advertisement)

 

उत्तम प्रगति के आंकड़े,

बस गाँव में, सूखा गया.

 

वादा सियासत का वही,

पर क्या अलग बूझा गया!!

 

है चोर, पर…

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 24, 2012 at 11:30pm — 22 Comments

बेटियाँ



बेटियाँ



बेटियाँ 

बेटियां घर-घर की 

चहकती किलकारी हैं, …
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 24, 2012 at 5:30pm — 3 Comments

हमको यहाँ लूटा गया

हमको यहाँ लूटा गया,

वादा तेरा झूठा गया.



वो कब मनाने आये थे?

हम से नहीं, रूठा गया.



चोटें तो दिल पर ही लगी,

खूं आँख से चूता गया.



जो चुप रहे, ढक आँख ले,

राजा ऐसा, ढूंढा गया.



पैसों से या फिर डंडों से,

सर जो उठा, सूता गया.



दारु बँटा करती यहाँ!

यह वोट भी, ठूँठा गया. (ठूँठ = NULL/VOID)



संन्यास ले, बैठा कहीं,

घर जाने का, बूता गया.



नव वर्ष 'मंगल' कैसे हो?

दिन आज भी रूखा गया.…

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Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 24, 2012 at 12:30am — 16 Comments

हम पागल ही अच्छे

तेरी खामोशी

ये कहां ले आई मुझे

तेरी एक

हां के इंतजार में

बदल गए

रास्ते जिंदगी के

जाना था कहां

पहुंच गए यहां

तेरी राह

देखते-देखते

इरादे पस्त हो गए

अब तो यह आलम है

दिल रोता है

शब्द निकलते है

दुनिया हंसती है

और

कहती है…

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Added by Harish Bhatt on March 23, 2012 at 11:50am — 5 Comments

दिल की आवारगी

अब तो आहट सी रहती है आवाज़ की,

किसी की आवाज़ आये,
तो ज़माना गुज़र गया...
हम तो सपनों को ही,…
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Added by Yogyata Mishra on March 23, 2012 at 11:49am — 5 Comments

करुण व्यथा

     (प्रेमी की मनः स्थिति )

कोई  नहीं  है  चाहता  विछड़े  वो  यार  से,

दोनो का यदि मिलन हो विदाई भी प्यार से .

हो आत्मा में वास तो फिर प्रियतमा मिले ,

होता  चमन  गुलिस्तां  है  जैसे  बहार  से ..

*          *         *          *        *        

मुझको ये था यकीन कि है प्यार भी तुम्हे,

मेरे  बगैर  जीना  तो   दुश्वार  है  तुम्हे.

ये बंदिशें थीं प्यार की जो उलझने मिली,

ये सोंचना गलत था कि स्वीकार है…

Continue

Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 23, 2012 at 12:00am — 16 Comments

वतन के लिए

भुजंग तुम 

वतन  के  लिए 

व्याल हम 

वतन  के  लिए 

कलंक तुम

वतन  के  लिए

तिलक हम 

वतन  के  लिए 

दुश्मन हो  

वतन  के  लिए …

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 22, 2012 at 11:06pm — 20 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
समय सँपेरा बीन बजाता छलता जाये......

समय सँपेरा बीन बजाता छलता जाये

नागिन जैसी उम्र संग ले चलता जाये.

तन्त्र -मंत्र के जाल सुनहले पग पग पर हैं

नख शिख पल पल मोम सरीखा गलता जाये.

रीझ न जाओ माया नगरी पर जगती…

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Added by अरुण कुमार निगम on March 22, 2012 at 11:00pm — 6 Comments

प्रेम दिवस -शहीद दिवस

राष्ट्र धर्म राष्ट्र  चेतना

की सुधि किन्हें कब आती है

घर की देहरी पर चुपके से वो

जलते दीपक को आँचल उढ़ाती है

 

कुछ करते नमन शहीदों को

कुछ घर में ही रह जाते हैं…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 22, 2012 at 9:00pm — 21 Comments

वेदर्द



वेदर्द 


मेरी ज़िन्दगी मुझसे रूठी रही

हम मनाते रहे वोह रुलाती रही 
दूर जाने की कोशिश बहुत की मगर
याद उनकी  तो अक्सर ही  आती रही 
भूलना भी न था  हम भी करते तो क्या
बेवफाई से बेहतर था अपना…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 22, 2012 at 5:46pm — 7 Comments

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