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     (प्रेमी की मनः स्थिति )

कोई  नहीं  है  चाहता  विछड़े  वो  यार  से,

दोनो का यदि मिलन हो विदाई भी प्यार से .

हो आत्मा में वास तो फिर प्रियतमा मिले ,

होता  चमन  गुलिस्तां  है  जैसे  बहार  से ..

*          *         *          *        *        

मुझको ये था यकीन कि है प्यार भी तुम्हे,

मेरे  बगैर  जीना  तो   दुश्वार  है  तुम्हे.

ये बंदिशें थीं प्यार की जो उलझने मिली,

ये सोंचना गलत था कि स्वीकार है तुम्हें..

*        *         *         *         * 

मैं जितना पास जाऊँ वो उतना ही दूर है,

वो मानती नहीं है  कि  वो  मेरी  हूर  है.

जीता हूँ आज भी मैं उसी को ही देखकर,

उसको नहीं पता मेरे  चेहरे  का  नूर  है...

*      *        *          *          *

मेरी  कहानी  का  कोई  किरदार  नहीं  है,

मैं  बेंचता   हूँ  प्यार   खरीदार  नहीं   है.

मृदु भी तो दफ़न हो गया  है उनके प्यार में,

क्या मेरा प्यार अब भी असरदार  नहीं  है..

*        *         *         *           *

                                                      शैलेन्द्र कुमार सिंह 'मृदु'

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Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 24, 2012 at 10:52am

श्री आशीष जी रचना  की सार्थकता सिद्ध करने के लिए  आपका ह्रदय से आभार

Comment by आशीष यादव on March 24, 2012 at 7:55am

मनःस्थिति का सुन्दर वर्णन।

मेरी कहानी का कोई किरदार नहीं है,
मैं बेंचता हूँ प्यार खरीदार नहीं है.
मृदु भी तो दफ़न हो गया है उनके प्यार में,
क्या मेरा प्यार अब भी असरदार नहीं है.
ये पंक्तियाँ मुझे खासतौर पर पसन्द आयीं।
बधाई

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 24, 2012 at 12:49am

सौरभ सर सादर नमन  आपकी प्रतिक्रिया मात्र से एवं आप से समय समय पर मिलते रहने वाले सुझवों के कर कारण मन में एक नया जोश आ जाता है . रचना पसंद करने के लिए आपका कोटि कोटि धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 24, 2012 at 12:33am

मुक्तकों के लिये बधाई.  अच्छा प्रयास हुआ है शलेन्द्रजी.

बहुत खूब.

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 23, 2012 at 8:32pm

राजेश कुमारी मैम आपने रचना के  गहन दर्शन कर अपनी प्रतिक्रिया दी इसके लिए बहुत बहुत आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 23, 2012 at 3:29pm

karunras ke aalamban se premi harday ki samvedna se autprot rachna bahut pasand aai.badhaai aapko.Shalendra ji.

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 23, 2012 at 2:46pm

महिमा जी भावाभियक्ति को सराहने के लिए हृदय से आपको कोटि कोटि धन्यवाद

Comment by MAHIMA SHREE on March 23, 2012 at 2:39pm
नमस्कार मृदु जी...
क्या बात है..... एक तरफ़ा प्रेम की गहराई और प्रेमी के ह्रदय की पीड़ा....का बहुत ही सहजता के साथ वर्णन ....बधाई आपको ...
Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 23, 2012 at 2:23pm

हरीश सर सादर नमन रचना पसंद करने के लिए ह्रदय से आभार

Comment by Harish Bhatt on March 23, 2012 at 2:20pm
शैलेंद्र जी नमस्‍कार........ सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई

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