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बुझना ही होता है

वोह जाना चाहते थे दूर

किनारा कर किया हमनें
न हो तकलीफ उनको
यह ईरादा कर लिया हमनें 
वोह जाना चाह----------
बड़ा मुश्किल था जीना क्या करें
कुछ कर नहीं सकते
दिल अपना ग़मों से यूँ ही 
खुद ही भर लिया हमनें
वोह जाना चाह-------------
मैं 'दीपक' हूँ जलूँ कितना 
मुझे बुझना ही होता है
हवाओं के भरे गुलशन में 
बनाया आशियाँ हमने 
वोह जाना चाह------------
दीपक 'कुल्लुवी' 
9350078399
२६/०३/१२.

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Comment

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Comment by Deepak Sharma Kuluvi on March 28, 2012 at 10:07am

bagi it was liya...mistakenly wrote kiya

thanks


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 27, 2012 at 8:46pm

किनारा कर किया हमनें

न हो तकलीफ उनको
मुझे लग रहा है की कही न कही टंकण त्रुटी है शायद आप किया =लिया होना चाहिए था

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on March 27, 2012 at 11:56am
शुक्रिया डा0 प्राची 
हमनें तो पायी सज़ा अपनी ही शराफत की
सच कहा है नहीं आसाँ राहें उल्फ़त की
दीपक 'कुल्लुवी' सा उन्हें शायर नादान मिला 
बस मुहब्बत का यह ईनाम मिला 
दीपक 'कुल्लुवी'

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 27, 2012 at 11:13am

मैं 'दीपक' हूँ जलूँ कितना 

मुझे बुझना ही होता है
हवाओं के भरे गुलशन में 
बनाया आशियाँ हमने ...bahut hi khaas bahut kuch kahti tyaag se samarpit alfaaj.
Comment by Deepak Sharma Kuluvi on March 27, 2012 at 10:11am
नीरजा जी प्रदीप जी रविन्द्र जी 
             शुक्रिया 

मैं दीपक हूँ तिल तिल जलता करता रौशन अंधियारों को

राख और धुआं ही मिलता है मेरे हिस्से के उजालों को 
'कुल्लुवी'
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 26, 2012 at 9:08pm

मैं 'दीपक' हूँ जलूँ कितना 

मुझे बुझना ही होता है
हवाओं के भरे गुलशन में 
बनाया आशियाँ हमने 
वोह जाना चाह------------
bahut sundar prastuti vah, aadarniya dipak ji, sadar abhivadan ke sath badhai.

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