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राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १९

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

मुझे प्यार की सज़ा दो.......

 

तुमसे बगैर पूछे मैंने

तुम्हें सोचा है कई बार

कभी शाम की लम्बी सड़क पे

तन्हा टहलते समनज़ारों तक

कभी रात की सियाह खामोशी में

चहलकदमी करते घर के चौबारे पर

कभी कमरे के रौज़न से

दूर बाहर खलाओं में देखते हुए

कभी शहर की भीड़-भाड़ सड़कों में

दफतर से लौटते हुए

यूँ ही कभी

कुछ करते, कुछ न करते हुए

सोचा है कई बार…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 4:04pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १८

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

अपनी हताशा से फिर इक बार उठूँगा....

 

मैं मानता हूँ,

तुम्हारी उपेक्षा का प्रहार सह न सका

और गिर गया निराशा की कठोर धरा पे

अपनी व्यथा का भार लिए!

 

मैं मानता हूँ

मेरी पीड़ाका अतिस्राव

अभी और भी दुखायेगा मुझे

जब तुमसे बह कर आने वाली हवा

स्मृतियों का एक पूरा संसार

छोड जाएगी पीछे!

 

मैं मानता हूँ

अभी और भी जलेंगे

मेरी…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 3:59pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १७

(आज से अट्ठारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

सूखे फूल खिल उठेंगे.......

 

सूखे फूल जो फिर खिल उठेंगे पेड़ों पे

क्षीण आशाएँ जो पुन: जाग जाएँगी हृदय में

भूले रास्ते

जो फिर से आ मिलेंगे मेरी असीम यात्रा पथों से

बिछड़े लोग, छूट गये घर, पुरानी किताबें

जिनसे फिर होगा समागम

जीवन के किसी अकल्पित क्षण में.........

मैं जी रहा हूँ उसी फूल

उन्हीं आशाओं

उन्हीं रास्तों

उन्हीं लोग

उन्हीं घर और किताबों…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 3:54pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १६

(आज से अट्ठारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

एक तुम्हारे खत ने....

 

नदी के वे द्वीप

जो दिशांतर में लुप्त नहीं हुए अभी

संबंधों के निष्कर्ष

जो लिखे नहीं गये अब तक

वे लोग जो अभी

आधे-अधूरे हैं विश्वासों की परिधि में

वे आहटें

जिनके सोते से जागने का भय

आशंकाओं ने संभाल रखा है अब तक

दूरियों के गहराये भँवर

जिनमें अभी शेष नहीं हुआ है सब कुछ

आशा-निराशा की वीथि

सोते जागते के सपने

सच…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 3:48pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १५

(आज से अट्ठारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

किंचित इतना है....

 

इतिहास के भुला दिये जाने वाले चरित्रों की तरह

अपने जीवन की कामना नहीं की है मैंने,

न ही देश और काल की सत्ताओं में लक्षित

अपने सुख दुख के व्यापारों का इष्ट ही

मेरे जीवन का ध्येय है,

मैं यह भी नहीं सोचता कि समय से परे

स्मरणीय लोगों में एक

मेरा जीवन चरित भी उल्लेख्य हो,

मैं अकिंचन हूँ

या अजस्र संभावनाओं का पुंज

इन गहन विवेचनों का…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 3:42pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १४

(आज से अट्ठारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

प्रणय.....

 

जिन संस्कारों ने

जीवन के  साहसिक निर्णयों से वंचित रखा अब तक/

जिन इच्छाओं की काल्पनिक प्रतिबद्धताओं ने

वंचना और अवंचना के  द्वंद्वों में

सीमायित रखा मुझे/

जो अनाख्यायित जिजीविषा

हर प्रवृति, हर लिप्तता में निभृत रही

और जिनसे उद्भास न हो सका सच का/

जिन मोहों को लेकर जीता रहा

उनका अभिशाप/

जो –दृष्टि नित्यानित्य के  विवेक से…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 3:36pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १३

(आज से अट्ठारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

क्या होता.....

 

यदि मैं अनेक सम्पन्नताओं से युक्त भी होता

तो क्या होता

मेरे जीवन में यदि धनाभाव न होता

और स्पृह लोगों की वन्चना न होती

यदि प्रतिदिन की उलझनें ना होतीं संताप देने को

और सब कुछ सुलभ और सुगम भी होता

तब भी जीवन का उतकर्ष अपरिहार्य  था....

अपने अस्तित्व से जुड़े भव्य कथानकों का

मेरे पश्चात मूल्य भी क्या होता

इसके अतिरिक्त कि

समीक्षाओं और…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 3:03pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १२

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

हताशा...

 

हर जन्म में

अपने सीमित प्रत्यक्षों से छले जाने के बाद भी

सत्य की अन्येतर संप्रभुता को नकारता रहा हूँ

ये जानते हुए भी कि

संबन्धों का सत्व विषाद से अतिरंजित है

जीवन के विषयीगत समीकरणों में

अनुबध्द होने की चेष्टा करता रहा हूँ

और अनादि काल से

प्रेम के जिस सम्पूरक आधेय की तलाश रही है

उसे वायव्य पिन्डों के सदृश

कभी प्राप्त नहीं कर सका…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 3:00pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ११

(आज से अट्ठारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

बैचलर.....

 

मेरे घर भी मनुहारों का खेल होता

मेरे पत्नी होती, मेरे बच्चे होते

कभी बच्चों की किलक, कभी माँ की छीज

घर गृहस्थी के सामानों के अभाव का

कभी होता अनुभव

समय से खाने और

समय से घर लौटने के बंधनों का बोध

कभी यूँ ही छुट्टी के रोज़

देर तक अकर्मण्य बने रहने का सुख होता

और होता

पत्नी की शिकायत और

बच्चों के प्रतिवेदनों में गुम्फित

एक…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 2:55pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १०

(आज से सत्रह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

वे दिन फिर आयेंगे.....

 

अनखिली कलियों के वैभव भी

सृजित होंगे कभी किन्हीं जन्मों में

अनकहे शब्दों के अर्थ

और अनसुनी बातों के अभिप्रेय भी

अनिभृत होंगे हमारे मन में

पनप रही मृदुल आशाओं के उत्कर्ष भी

विदित होंगे जीवन में..

 

जो सानिध्य अधूरा है

और जो सामीप्य अप्राप्य

वे भी नहीं रहेंगे सदैव ऐसे

इन अपरिचित देशों में....

 

पौष की काली…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 2:51pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ९

(आज से सत्रह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

आरोप....

 

तुम्हारी मृदा में उपजे हैं

ये शूल मेरे स्वार्थ के

तुम्हारी हवाओं ने रूक्ष किया है

मेरे अकिन्चन स्पेशों को

तुम्हारे प्रसंगों की कठोरताओं ने

मेरी संरचना को भार दिया

मेरे उच्चारों के प्रपंच

तुम्हारी छलनाओं से ही निगमित हुए हैं.

 

परिवर्तन की जिस प्रक्रिया ने मुझे

तुमसे एकरूपता दी है

जीवन का जो क्रम

और मूल्यों के जो अर्थ

अब…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 2:47pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ८

(आज से अट्ठारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

मैं सोचता था.......

 

मैं सोचता था-

वे दीये बुझ चुके हैं

जिनसे रौशनी नहीं आती

 

जिनके दरवाज़े बन्द हो चुके हैं

और खिड़कियाँ नहीं खुलीं बरसों से

उन घरों में कोई नहीं रहता

जो गीत होटों पे खेले नहीं मुद्दत से

और जिन सुरों का आलाप किया नहीं सालों से

वे सर्फ हो गये न दीखने वाले

वक्त के बियावानों में

 

मैं सोचता था-

वे दीये बुझ चुके…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 2:41pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ७

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

कब तक...

 

स्वप्न की इस दीर्घ निशा में

कब तक यूँही

अपनी अभीप्साजनित कल्पनाओं के

निराकार सत्त्व को

तुम्हारा नाम देता रहूँ

 

कब तक कहता रहूँ

अपने विषण्ण मन को

व्यग्र आग्रहों की निविड़ प्राची से

जब तुम्हारे नयन

अनिमेष देखेंगे मुझे

व्यथा भार से क्लांत

कांतिविहीन

तब रक्तांशुक किरणें बन

तुम्हारी स्निग्ध दृष्टि का…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 2:36pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ६

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

तुम्हें भूल सकता हूँ .......

 

मैं सोचता तो हूँ

परिस्थितियों से हार जाऊँ,

तुम्हें भूलजाऊँ;

 

मैं चाहता तो हूँ

तनावों के असंपादित अध्यायों से

दूर निकल जाऊँ,

कहीं एक शब्द, एक वाक्य बनकर

इस निस्सीम व्योम में

किन्हीं वायव्य माध्यमों से उच्चरित होकर

अपनी अस्मिता की समिधा जलाऊँ;

 

मैं चाहता तो हूँ

कि क्रिया-अनुक्रिया…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 2:32pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ५

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

प्रेम का वक्तव्य...

 

प्रेम का वक्तव्य छुपाते-छुपाते

मैंने अपनी आँखों में

अनुभूतियों का जो मौन

लिख डाला है

मुझे भय है वो

किसी निर्मेघ आकाश सा

अनिभृत न हो जाए तुमपे

और यदि खोकर भी

उस मौन आमंत्रण का

अस्फुट संवाद

मैं तुम्हारी स्निग्ध दृष्टि का

एक सलज्ज उन्मेष भी न पा सकूँ

तो फिर से

प्रेम की वंचना का बोझ

किस प्रकार ढो…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 2:18pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ४

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

शून्य से आपादित जीवन में.....

 

अनुभूतियों की शिराओं में

तुम्हारे प्रेम की आँच अब भी  शेष है

और

संवेदनाओं की धमनियाँ अब भी

तुम्हारे आकर्षण का आस्वाद

अहर्निश ढोती हैं

 

जीवन की विषमताओं का गरलपान करते हुए

तुम्हारी अनेकश: उपेक्षाओं का प्रहार सहते हुए

मन के कोने में

प्रेम का जो इक दीप जला रक्खा है

उसने सदैव

संध्यानुगामी, क्लान्त, विषण्ण…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 2:14pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ३

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

एक घर मेरा भी  होगा......

 

सोचा था

चाँद की उपत्यका में

एक घर मेरा भी  होगा

जहाँ और न होंगे इस धरा के तनाव

जहाँ और न होगा

मानवी संबंधों का छुपाव

जहाँ शब्द

समय के परिप्रेक्ष्य में न देखे जाएँगे

जहाँ निरभ्र आकाश सा होगा

निरायाम, अतल जीवन

संवेदनाओं की उर्मियों में जहाँ

कोई न होगा अन्येतर बल

हाँ , बस होगा…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 1:34pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- २

(आज से बारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

तुम्हारे नाम की कविता...

 

शब्दों के टूटते बिखरते झरने में बह जायेंगे

मेरे प्यार के अनकहे बोल,

नहीं रोक पाऊँगा अब और

जो मैंने लिखी थी इन अबाध धाराओं में

तुम्हारे नाम की इक कविता।

 

समय तो अविरल है

अनन्तताओं में बहता रहता है

यह हृदय नहीं जो कभी कुछ कहता है

और कभी / यूँ ही ख़ामोश रहा करता है

कदाचित् , एक शाश्वत गीत है यह समय

जिसे हर…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 1:28pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १

(आज से बारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

काव्य भी एक प्रसव है...

 

काव्य भी एक प्रसव है

जिसकी पीड़ाओं से ही जन्म लेते हैं मेरे गीत ।

 

शब्दों में गूँथकर, और भावनाओं में पिरोकर

काग़ज़ पे जिन्हें उतारता हूँ

वो गीत,

तुम्हारे ही श्रृंगारित प्रणय की स्मृतियों से उदभूत हुए हैं

तुम्हारी ही अथक कल्पनाओं ने

कायिक आयाम दिया है उन गीतों को

जो गीत प्राणों से उठकर

और मेरी आँखों में लहराकर

मेरे…

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Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 1:22pm — No Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
"डोरी बंधन की........"

ये कैसी डोरी बंधन की,  है जैसे कच्चे रेशम की..
डर लगता है टूट न जाए, साथ कहीं ये छूट न जाए..
 
इस से मन के तार जुड़े हैं, सपनों के संसार जुड़े हैं..
सप्त सुरों में इसकी लय है, हर सावन इस की ही शय है..
 
गुँथे …
Continue

Added by Dr.Prachi Singh on June 29, 2012 at 11:46am — 4 Comments

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