(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)
प्रेम का वक्तव्य...
प्रेम का वक्तव्य छुपाते-छुपाते
मैंने अपनी आँखों में
अनुभूतियों का जो मौन
लिख डाला है
मुझे भय है वो
किसी निर्मेघ आकाश सा
अनिभृत न हो जाए तुमपे
और यदि खोकर भी
उस मौन आमंत्रण का
अस्फुट संवाद
मैं तुम्हारी स्निग्ध दृष्टि का
एक सलज्ज उन्मेष भी न पा सकूँ
तो फिर से
प्रेम की वंचना का बोझ
किस प्रकार ढो सकूँगा
जीवन भर ?
© राज़ नवादवी
सोशल वर्क हॉस्टल, नई दिल्ली
(०७/०२/१९९३)
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