122 - 122 - 122 - 122
जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते
तो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते
*
न तिनके जलाते तमाशे की ख़ातिर
न ख़ुद आतिशों के ये बोहरान लेते
*
ये घर टूटकर क्यूँ बिखरते हमारे
जो शोरिश-पसंदों को पहचान लेते
*
फ़ना हो न जाती ये अज़्मत हमारी
जो बाँहों के साँपों को भी जान लेते
*
न होता ये मिसरा यूँ ही ख़ारिज-उल-बह्र
दुरुस्त हम अगर सारे अरकान लेते
*
"अमीर'' ऐसे सर को न…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 2, 2025 at 6:12am — 6 Comments
दोहा सप्तक. . . . विविध
कह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।
क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों हालात ।।
गले लगाकर मौन को, क्यों बैठे चुपचाप ।
आखिर किसकी याद में, अश्क बहाऐं आप ।।
बहुत मचा है आपकी. खामोशी का शोर ।
भीगे किसकी याद से, दो आँखों के कोर ।।
मन मचला जिसके लिए, कब समझा वह पीर ।
बह निकला चुपचाप फिर, विरह व्यथा का नीर ।।
दो दिल अक्सर प्यार में, होते हैं मजबूर ।
कुछ पल चलते साथ फिर, हो जाते वह दूर ।।
कहते हैं मजबूरियाँ,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 1, 2025 at 12:52pm — No Comments
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मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
मगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना है
मैं देखता हूँ तुझे भी वो सब दिखाई दे
मुझे कभी न कोई ऐसा शग्ल करना है
नज़ारा कोई दिखा दे ये शब तो वक्त कटे
इसी के साथ सहर होने तक ठहरना है
न जाने कितने मराहिल हैं ज़ह'न में मेरे
कोई ये काश बता दे कहाँ उतरना है
ये…
Added by शिज्जु "शकूर" on May 1, 2025 at 12:20pm — 2 Comments
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