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होना चाहिए

 

हुस्न है तो हुस्न का सिंगार होना चाहिए.

 

है किसी से इश्क तो इज़हार होना चाहिए.

 

गर क़यामत आ भी जाए तो भी कोई ग़म नहीं.

 

बस नज़र में खुबसूरत प्यार होना चाहिए.

 

जीतने के बाद गिरगिट सा बदलते रंग जो.

 

उनको वापस लाने का अधिकार होना चाहिए.

 

ताज़ और तख़्त का कब का ज़माना लद गया.

 

आज तो जनहित का ही सरोकार होना चाहिए.

 

चाहते हैं हमसे वो जुड़ना…
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Added by satish mapatpuri on October 25, 2011 at 12:53am — 1 Comment

आज तिमिर का नाश हुआ

आज तिमिर का नाश हुआ
दीपों की लगी कतार
कार्तिक अमावस्या लेकर आई
यह आलोकित उपहार

द्वार द्वार पर दीप जलें
घर घर हुआ श्रृंगार
हर देहरी प्रदीप्त हुई
बिखरा हर्ष अपार

झाड़ बुहार आँगन को
लक्ष्मी को दें आमंत्रण
करबद्ध हो सब करें
मन से रमा का वंदन

सभी को शुभ दीपावली...
दुष्यंत..........

Added by दुष्यंत सेवक on October 24, 2011 at 6:38pm — 4 Comments

कविता :- शब्द - दीप !

 कविता :-  शब्द - दीप !

 

एक दीप उस द्वार भी जले

खुला जो रहा कई बरस

रोशनी को जो रहा तरस…

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Added by Abhinav Arun on October 23, 2011 at 8:30pm — 10 Comments

- - - - माँ - - - -

कैसे तुझे  बताऊँ माँ कि

याद तेरी यहाँ आती  है

तेरे प्यार की वो दुनियां अब

आँख मेरी भर जाती  है |



भूखी तू रह जाती है पर

खाना मुझे  खिलाती  है

राह का मेरी मिटाने अँधेरा

तू दीपक बन  जाती  है |



घिर जायें हज़ार दुखों से

जब,राह नजर न आती है

गोद तेरी तो उस पल भी माँ

स्वर्ग  धरा  बन  जाती  है |



दया  भाव …

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Added by Ajay Singh on October 23, 2011 at 12:53pm — 1 Comment

गुरु दोहावली

मन पागल बौराय है, इसे कोउ समझाय,

बीत गया है जो समय, लौट कभी न आय  !   
.
जिसकी जो गति वो लिखा वही बने तक़दीर ,
होनी तो होके रहे, सहज हो या गंभीर  ,
.
दुःख से घबराओ नहीं, सुख का ये आधार,
दुःख से डर के भागना, बदलो ये व्यवहार,…
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Added by Rash Bihari Ravi on October 22, 2011 at 2:00pm — 8 Comments

दीपावली अयोध्या में

श्री रामचंद्र जी के अयोध्या लौटने पर उनके स्वागत में एक गीत -

 

हेली मंगल गाओ आज ,

सहेली मंगल गाओ आज |

 

ढोल नगाड़ा नौपत बाजे 

अयोध्या  में आज 

तोरण द्वार सजे सब आँगन

कौशल्या घर आज |

 

मोत्यां चौक पुरावो है सखी 

झिलमिल आरती थाल

रामचंद्र जी लौटेंगे सखी 

सीता लखन संग आज |

 

शुभ घड़ी आई भ्राता मिलाई

दशरथ के घर आज 

भरत की तपस्या लायेगी  

सखी ! खुशियों का अम्बार…

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Added by mohinichordia on October 21, 2011 at 9:00pm — No Comments

शुभ दीपावली

सदियों से हम, साल में इक दिन, घर-घर दीप जलाते हैं |

इस दिन को कह कर दीवाली, खुशियाँ बहुत मनाते हैं ||



दीप जलें, अंधियारा भागे, हो जाता उजियारा है |

हर दिन ख़ुशी के दीप जलाएं, बनता फ़र्ज़ हमारा है ||…

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Added by Shashi Mehra on October 21, 2011 at 9:30am — No Comments

चाहरदीवारी

Added by Vasudha Nigam on October 20, 2011 at 2:07pm — 4 Comments

कविता : लद गया जमाना शराफत का भाई.....

लद गया जमाना शराफत का भाई
 साधू के भेष में  घुमने लगे कसाई.
        अब तो बिकने लगा इमान कौड़ीयों के भाव में.
        झूठ की हुकूमत हो गयी सच्चाई के गावं में.  
बेआबरू होखे दर-दर भटके बिश्वास.
रिश्तों-नातों से हमदर्दी ने ले ली बनवास.
         बड़ों से बड़प्पन मिटा छोटों से मिटा लिहाज़.
        नारी के कोमल ह्रदय से मिट गया पावन लाज.
चारों तरफ बेशर्मी की घनघोर घटा है छाई.
लद गया जमाना शराफत का…
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Added by Noorain Ansari on October 20, 2011 at 9:06am — 4 Comments

कंदील नहीं मिलते

कभी रास्ते कभी निशाने-मंजिल नहीं मिलते.

 सफीने डूब जाते है उन्हें साहिल नहीं मिलते.…

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Added by AVINASH S BAGDE on October 19, 2011 at 8:00pm — 4 Comments

लघुकथा - बकाया !

लघुकथा -  बकाया !

डॉ धीरज आज सुबह कुछ देर से अस्पताल में पहुंचे थे | सीधे आई सी यू में भर्ती…

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Added by Abhinav Arun on October 19, 2011 at 9:00am — 16 Comments

ग़ज़ल





मैं जुबां पर सिर्फ मैं, यह बात है अभिमान की,

छोड़ मैं को अब बनें हम बात ये ही ज्ञान की. |१|

 

जो किसी को भी न भातीं छोड़ दो वो आदतें,

दोस्तों अब फिक्र हो इस देश के सम्मान की.   |२|



माँ से हमको है मिलाया बाप का साया दिया,

हम चुका सकते नहीं कीमत तेरे एहसान की. |३|



जान देकर जो गये अपनी शहीदाने…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on October 19, 2011 at 12:30am — 8 Comments

व्यंग्य - जहां-तहां अन्नागिरी

समाजसेवी अन्ना हजारे ने पिछले दिनों तेरह दिनों तक अनशन करके ‘अन्नागिरी’ को हवा दे दी है। देश में अब तक नेतागिरी, चमचागिरी, बाबागिरी की हवा चल रही थी। अन्नागिरी के हावी होते ही अभी भ्रष्टाचारियों के मूड खराब हो गए हैं, क्योंकि जहां-तहां अन्नागिरी ही छाई हुई है। हर जुबान से बस अन्नागिरी की लार लपक रही है। किसी को अपनी बात मनवानी है तो वह, बस अन्नागिरी करने लग जा रहा है। वैसे हमारे समाजसेवी अन्ना जी ‘अनशन’ के लिए माहिर माने जाते हैं, लेकिन उनके पीछे जो लोग ‘अन्नागिरी’ का सहारा लेने लगे हैं,…

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Added by rajkumar sahu on October 18, 2011 at 1:17am — No Comments

प्यार

ऐ खुदा तुझे मैं मेरे दोस्तों मे शुमार करता हूँ 

ध्यान से सुन तुझे मैं मेरा राज़दार करता हूँ 

 

मुझको दे जाता है वो शख्स हमेशा ही धोखा 

फिर भी भरोसा मैं उसका बार-बार करता हूँ 

 

देगी…

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Added by Vikram Srivastava on October 17, 2011 at 8:00pm — 2 Comments

व्यंग्य - अस्पताल का मनमोहक सुख

एक बात सब जानते हैं कि जब हम बीमार होते हैं, तब इलाज के लिए अस्पताल पहुंचते हैं और डॉक्टर नब्ज समझकर इलाज करते हैं। अस्पताल जाने के बाद बीमारी छोटी हो या बड़ी, गरीबों के लिए कुछ ही दिन अस्पताल ठिकाना बन पाता है। गरीबों के लिए ‘गरीबी’ अभिशाप अभी से नहीं है, जमाने से ऐसा ही क्रूर मजाक चल रहा है। हर हालात में गरीब ही बेकार का पुतला होता है, जिसकी ओर देखने की किसी को फुरसत तक नहीं होती, वहीं जब कोई मालदार, अस्पताल की दहलीज पर पहुंचता है, उसके बाद गरीबों को हेय की दृष्टि से देखने वाले भी, उनकी…

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Added by rajkumar sahu on October 16, 2011 at 4:49pm — No Comments

क्यों अदीब अब तक है खोये ज़ुल्फ़ और रुखसार में !!

हमको  रहना  चाहिए  अब  सोह्बते  तलवार  में !

क्यों अदीब अब तक है खोये ज़ुल्फ़ और रुखसार  में !!


जब  तलक  उलझा  रहेगा  दामने  दिल  खार  में !
हम  सुकू  से  रह  नहीं  पाएंगे  इस  गुलज़ार  में  !!


नकहते  गुल  सुबहे  नौ शम्सो  कमर  अंजुम  जिया ! 
नेमतें  क्या  क्या  छुपी  है  यार  के  दीदार  में !!


मुद्दतो  जिस …
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Added by Hilal Badayuni on October 15, 2011 at 5:00pm — 9 Comments

मरना चाहू मर ना पाउ ये क्या किया तू महंगाई ,

मरना चाहू मर ना पाउ ये क्या किया तू महंगाई ,

निर्लज हैं मनमोहन तुझे शर्म क्यों नहीं आई ,
बतीस के आधार बाना कर गरीबी ये मिटायेंगे ,
गरीबी से नाम कटेगा खाना फिर ना पाएंगे ,
हमको कहते बतीस में तुम अपना दिन बिताओ ,
क्या होगा अब बतीस अब कोई इन्हें समझाओ ,
लुट के घर ये भर लेते हैं देते महंगाई के दुहाई ,
मरना चाहू मर ना पाउ ये क्या किया तू महंगाई ,

Added by Rash Bihari Ravi on October 15, 2011 at 1:16pm — No Comments

क्रेडिट कार्ड, पर्सनल लोन,

क्रेडिट कार्ड

 

सपना दिखता हैं ,

पावर दिलाता हैं ,

खर्चे में तो तो पंख लगता हैं ,

ना हो पैसा फिर कम हो जाता हैं ,

लगे की दोस्तों में इज्जत बढ़ता हैं,

बिल जब आता हैं ,

पागल बनाता हैं ,

क्यों ली क्रेडिट कार्ड ,

समझ ना आता हैं ,

भाई ये इज्जत लेकर ही जाता हैं ,

.

.

बैंक ऋण

 

पहली पहली बार ये ,

झट पट मिल जाता हैं ,

क्यों की अन्दर की बात ,

समझ में ना आता हैं…

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Added by Rash Bihari Ravi on October 15, 2011 at 11:30am — 2 Comments

ग़ज़ल :- धमा चौकड़ी करता बचपन

ग़ज़ल :-  धमा चौकड़ी करता बचपन
 
धमा चौकड़ी करता बचपन ,…
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Added by Abhinav Arun on October 15, 2011 at 10:50am — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
जो बीते... तो बीत गये --- सौरभ

 

कंधे पर मेरे एक अज़ीब सा लिजलिजा चेहरा उग आया है.. .

गोया सलवटों पड़ी चादर पड़ी हो, जहाँ --

करवटें बदलती लाचारी टूट-टूट कर रोती रहती है चुपचाप.



निठल्ले आईने पर

सिर्फ़ धूल की परत ही नहीं होती.. भुतहा आवाज़ों की आड़ी-तिरछी लहरदार रेखाएँ भी होती हैं

जिन्हें स्मृतियों की चीटियों ने अपनी बे-थकी आवारग़ी में बना रखी होती हैं

उन चीटियों को इन आईनों पर चलने से कोई कभी रोक पाया है क्या आजतक?..

 …

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Added by Saurabh Pandey on October 15, 2011 at 9:30am — 20 Comments

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