समाजसेवी अन्ना हजारे ने पिछले दिनों तेरह दिनों तक अनशन करके ‘अन्नागिरी’ को हवा दे दी है। देश में अब तक नेतागिरी, चमचागिरी, बाबागिरी की हवा चल रही थी। अन्नागिरी के हावी होते ही अभी भ्रष्टाचारियों के मूड खराब हो गए हैं, क्योंकि जहां-तहां अन्नागिरी ही छाई हुई है। हर जुबान से बस अन्नागिरी की लार लपक रही है। किसी को अपनी बात मनवानी है तो वह, बस अन्नागिरी करने लग जा रहा है। वैसे हमारे समाजसेवी अन्ना जी ‘अनशन’ के लिए माहिर माने जाते हैं, लेकिन उनके पीछे जो लोग ‘अन्नागिरी’ का सहारा लेने लगे हैं, उनका ऐसा कोई अनुभव नहीं है। वे गाहे-बगाहे चल पड़े हैं, अन्नागिरी की राह पर। अन्ना जी जब भी अनशन करते हैं, उन्हें पता है कि जीत उन्हीं की ही होगी, क्योंकि वे अब तक दर्जन भर से अधिक बार ‘अनशन’ के जादू की झप्पी ले-दे चुके हैं। आधुनिक युग के गांधी के बताए मार्ग पर चलने वालों को पता ही नहीं कि उनकी जैसी जादू की झप्पी कैसे दी जाए। कोशिश हो रही है, अन्नागिरी की कतार में खड़े होने की।
आजादी के पहले गांधी जी उपवास करते थे। मौन व्रत रखते थे। उनका मकसद होता था, देश की जनता को जगाना और अंग्रेजों को भगाना। नए भारत के गांधी कहे जा रहे अन्ना जी, केवल भ्रष्टाचार के भूत के पीछे पड़े हैं। वे जन लोकपाल बिल लाना चाहते हैं। वे खुद कहते हैं, भ्रष्टाचार का भूत, देश के भ्रष्टाचारियों में पूरी तरह से समाया हुआ है और इसे फिलहाल आधे ही दूर किया जा सकता है। भ्रष्टाचार के भूत को भगाने वे ‘अनशन’ का मंत्र भी मार रहे हैं, लेकिन सरकार उन्हें बस बरगलाए जा रही है और भ्रष्टाचार, उनकी आंखों को खटक रहा है।
अन्ना जी जो चाहते हैं, उसके लिए उन्हें कुछ महीने और रूकना पड़ेगा, क्योंकि भ्रष्टाचार की काली छाया के आगे किसी की नहीं चल पा रही है। सरकार की तो घिग्घी बंध गई है। उसे न तो खाते बन रहा है और न ही उगलते। भ्रष्टाचार के साये में आने वालों की फेहरिस्त बढ़ती जा रही है, जो कभी सरकार से कंधे से कंधा मिलाकर चला करते थे। ऐसे भ्रष्टाचारियों को कंधे का साथ तो दूर अब उनसे हाथ मिलाने वाला भी नहीं मिल रहा है, क्योंकि हाथ लगे कालिख को छूने की हिम्मत कैसे जुटाई जा सकती है ? भ्रष्टाचार के खिलाफ जो हालात बने हैं, वह तो बस अन्नागिरी का ही कमाल है, नहीं तो मजाल है, किसी का बाल-बांका भी होता।
करोड़ों जनता की तरह मैंने भी देखा है कि देश में भ्रष्टाचार कैसे पनपा है और भ्रष्टाचार के आगोश में अनगिनत चेहरे समाए रहे हैं, किन्तु किसी को आंच आ सकी ? वो तो अन्नागिरी की कृपा है, जिसकी बदौलत भ्रष्टाचारियों की करतूतों पर लगाम कसी जा रही है। कुछ दिनों के अंतराल में भ्रष्टाचारियों की एक नई सूची तैयार हो रही है। कई बड़े नाम तिहाड़ की जिंदगी जी रहे हैं। अन्नागिरी से सरकार की फजीहत तो हुई ही, अब अन्न्नागिरी के कारण कइयों की किरकिरी होने लगी है, क्योंकि अपनी मांग या बात मनवाने के लिए ‘अन्नागिरी’ किसी ब्रम्ह शस्त्र से कम साबित नहीं हो रही है।
जिधर देखो, वहां अन्नागिरी की धूम है। आजादी के पहले ‘गांधीगिरी’ छाई रही। बाद में ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ फिल्म में गांधीगिरी की झलक दिखी, उसके औंधे मुंह सोए लोगों को एकबारगी गांधी जी की गांधीगिरी याद आई। मैं तो यही कहूंगा कि देश में इंकलाब का रूप ले लिया है, अन्नागिरी ने। अन्ना के अनशन के दौरान मशाल उठाए लोगों की सोच ‘भ्रष्टाचारियों की मानसिकता से ‘भ्रष्टाचार के भूत’ उतारने की रही और वे सड़क पर उतर आए।
अब तो ‘अन्नागिरी’ भी सड़क पर आ गई है। मांग या अपने समर्थन में अन्नागिरी एक सशक्त माध्यम बनी हुई है। जितनी शक्ति व समर्थन अन्नागिरी को मिल रहा है, उतना मीडिया को अभी नसीब नहीं हो रहा है। अन्नागिरी के आगे हर बात व चीज धुंधली हो गई है। जब बात बिगड़ती दिखे और कोई आपकी मांगों को गौर नहीं कर रहा है तो बस अन्नागिरी की राह पर उतर आइए। देश में अन्नागिरी का ही धमाल है, क्योंकि यही सबसे ताकतवर टीम साबित हो रही है। वर्ल्ड कप जीता चुके भारतीय किकेट टीम के खिलाड़ी भी, अन्नागिरी के खिलाड़ियों के आगे कमतर ही नजर आ रहे हैं, क्योंकि मीडिया इन जैसों को हाथों-हाथ ले रहा है। फिलहाल देश में केवल अन्नागिरी का ही जलवा है, नेतागिरी व बाबागिरी दूर-दूर तक नहीं फटक रही हैं। चमचागिरी का तो नामो-निशान मिटती नजर आ रही है, क्योंकि अन्ना टीम यही कह रही है कि हम हैं तो दम है। मुझे लगता है कि आपके आसपास भी ‘अन्नागिरी की बाजीगरी’ जरूर दिख रही होगी।
राजकुमार साहू
लेखक व्यंग्य लिखते हैं।
जांजगीर, छत्तीसगढ़
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