मैं जुबां पर सिर्फ मैं, यह बात है अभिमान की,
छोड़ मैं को अब बनें हम बात ये ही ज्ञान की. |१|
जो किसी को भी न भातीं छोड़ दो वो आदतें,
दोस्तों अब फिक्र हो इस देश के सम्मान की. |२|
माँ से हमको है मिलाया बाप का साया दिया,
हम चुका सकते नहीं कीमत तेरे एहसान की. |३|
जान देकर जो गये अपनी शहीदाने वतन,
कीजिये अब क़द्र उन जाबांज़ के बलिदान की. |५|
जिंदगी है चार दिन की जिंदगी खुल के जियो,
बात आये सामने गर दान की बलिदान की. |६|
एक है अपना लहू औ एक है अपना वतन,
जो अलग हमको करे वो चाल है शैतान की. |७|
आसमां से हो रही हैं रहमतों की बारिशें,
भक्ति निर्गुण की भली है दोस्ती गुणवान की. |८|
राह सच्ची हम चले तो हाथ आई मुफ़लिसी,
जी रहे हैं आज 'अम्बर' जिन्दगी वह शान की. |९|
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
आदरणीय सौरभ जी ! आप ने इस ग़ज़ल के के एक-एक शेर को तबज्जो देकर इसे इज्जत बख्शते हुए हमारी जिस तरह से हौसला आफजाई की है उसके लिए आपका से दिल से शुक्रगुजार हूँ ! सादर:
एक अच्छी ग़ज़ल के लिये साधुवाद. वैसे तो सारे अश’आर बेहद खूबसूरत बन पड़े हैं. जहाँ आत्म-सम्मान और देश की शान की चर्चा खुल कर की गयी है. इस खुसूसी रुमानियत से बढ़ कर भला और कौन सी भावना होगी जो सर चढ़ कर बोले. भाई अम्बरीषजी, बधाई हो कि ये भावना सर चढ़ी है और खूब चढ़ी है.
मतले से जो आपने समाँ बाँध है वो मकते तक पुरजोर तरीके से तारी है. जिन अशा’आर की रुहानी रवानी में मैं डूब-डूब गया हूँ, भाई साहब, आपसे साझा कर रहा हूँ.
मैं जुबां पर सिर्फ मैं, यह बात है अभिमान की,
छोड़ मैं को अब बनें हम बात ये ही ज्ञान की.
जिस साफ़गोई से और जिस सीधी-सादी ज़ुबान में आपने इतना कुछ कहा है यह सबके बस की बात नहीं है. अफ़सोस, इतना सही मशविरा फिर भी लोगों को समझ नहीं आता. लोग हैं कि पता नहीं किस ज्ञान-प्राप्ति और सत्यानुभूति की बात करते दीखते हैं. लाहौलबिलाकूव्वत ! ..
माँ से हमको है मिलाया बाप का साया दिया,
हम चुका सकते नहीं कीमत तेरे एहसान की.
परस्तिश के नाम पर सिर्फ़ सजदे किये जायँ यह कहीं नहीं कहा गया है. एक शुक़्रगुज़ार शख़्स के लिये कहने को और भी बहुत कुछ हैं, इस शेर के मार्फ़त आपने इस बात को बखूबी सामने रखा है.
आसमां से हो रही हैं रहमतों की बारिशें,
भक्ति निर्गुण की भली है दोस्ती गुणवान की.
वाह-वाह ! एक अनुभवी आदमी से ही यह आशा हो सकती है कि वह इस फ़लसफ़े को साझा करे.
राह सच्ची हम चले तो हाथ आई मुफ़लिसी,
जी रहे हैं आज 'अम्बर' जिन्दगी वह शान की.
सारे लोग मेरे अपने-अपने और सारा जहाँ हमारा की तान इस तरह का मुफ़लिस ही कह सकता है. शायर की इस मुफ़लिसी का ताव सभी महसूस कर रहे हैं. इस मर्दाना अंदाज़ के लिये आपको दिली दाद पेश है. बहुत अच्छा मक्ता है भाई जी. ..
एक क़ामयाब ग़ज़ल के लिये बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय अम्बरीषजी.
माँ से हमको है मिलाया बाप का साया दिया,
हम चुका सकते नहीं कीमत तेरे एहसान की.
आसमां से हो रही हैं रहमतों की बारिशें,माँ से हमको है मिलाया बाप का साया दिया,
हम चुका सकते नहीं कीमत तेरे एहसान की.
आसमां से हो रही हैं रहमतों की बारिशें,आदरणीय भाई बागी जी ! इस ग़ज़ल को पसंद करने व इस तरह से सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार मित्रवर!
एक है अपना लहू औ एक है अपना वतन,
जो अलग हमको करे वो चाल है शैतान की
अम्बरीश भाई बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने सभी शे'र उच्च ख्यालात से लबरेज है, बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें मित्र |
स्वागत है भाई आशीष जी ! आपको यह ग़ज़ल पसंद आई इसके लिए आपका हार्दिक आभार मित्रवर !
ek bahut hi achchhi ghazal kahi hai aapne. bhaw bahut hi shandar hai.
आदरणीय अरुण जी ! आपका हार्दिक स्वागत है ! गज़ल के एक एक शेर की समीक्षा करते हुए आपने इसे जो मान दिया है उसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया मित्रवर ! जय हो !!! :-)
बहुत खूब बेहतरीन संदेशपरक सकारात्मक विचारों की ग़ज़ल--
मैं जुबां पर सिर्फ मैं, यह बात है अभिमान की,
छोड़ मैं को अब बनें हम बात ये ही ज्ञान की. |१|
सही कहा स्वाभिमान को त्यागे बिना ज्ञान प्राप्ति संभव नहीं
जो किसी को भी न भातीं छोड़ दो वो आदतें,
दोस्तों अब फिक्र हो इस देश के सम्मान की. |२|
वाह देश प्रेम से बढ़कर और भला क्या हो सकता है यह सोच सब की हो ! अमीन !!
माँ से हमको है मिलाया बाप का साया दिया,
हम चुका सकते नहीं कीमत तेरे एहसान की. |३|
वाह कमाल का अंदाज़ .. ताकतवर बयान
जान देकर जो गये अपनी शहीदाने वतन,
कीजिये अब क़द्र उन जाबांज़ के बलिदान की. |५|
सही बात ..आज शहीदों के आदर्श अपनाने की ही ज़रूरत है
जिंदगी है चार दिन की जिंदगी खुल के जियो,
बात आये सामने गर दान की बलिदान की. |६|
ये मन्त्र ही मूल है
एक है अपना लहू औ एक है अपना वतन,
जो अलग हमको करे वो चाल है शैतान की. |७|
अच्छा संकेत संभल जाएँ वो जो भटके हैं
आसमां से हो रही हैं रहमतों की बारिशें,
भक्ति निर्गुण की भली है दोस्ती गुणवान की. |८|
अब्मरीश जी आपकी इस साफगोई को सलाम है
राह सच्ची हम चले तो हाथ आई मुफ़लिसी,
जी रहे हैं आज 'अम्बर' जिन्दगी वह शान की. |९|
जी यही हासिल है आज ... सच के पैरोकारों की
अम्बरीश जी जिंदाबाद ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकवाद !
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