गोरी के आंचल में
झिलमिल सितारे हैं
चंदा को सूरज भी
छिप के निहारे है
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रेत के समंदर में
बूँद एक उतरी तो
ललचाई नजरों ने
सोख लिया प्यारी को
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उदय अंत में त्रिशंकु -
बन ! मै लटकता हूँ
राहु -केतु से कटे भी
दंभ लिए फिरता हूँ
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चार दिन की जिन्दगी है
चार पल की यारी है
चाँद भी खिसक…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 14, 2012 at 9:24pm — 16 Comments
Added by satish mapatpuri on April 14, 2012 at 7:30pm — 9 Comments
जिंदगी के दो आयाम,
साधना और आराधना.
दोनों मार्ग हैं मुक्ति के,
पूर्ण करे हर इच्छा-कामना.
एक प्रोत्साहित करे बल-पौरुष को,
दूजा सन्मार्ग दिखाए.
हर विघ्न में, हर बाधा में,
चित्त की धैर्यता और बढ़ाये.
साधना से जीवन सधे,
केन्द्रित करे ध्यान को.
आराधना से सुमति मिले,
सन्मार्ग बताये इंसान को.
जो जन्म लिया नर रूप में,
तो सफल करें इस जीवन को.
करे आराधना उस इश्वर का,
साध लें अपने तन-मन…
Added by praveen singh "sagar" on April 14, 2012 at 7:00pm — 9 Comments
कवि और कविता १. : प्रो. वीणा तिवारी
Added by sanjiv verma 'salil' on April 14, 2012 at 6:00pm — 1 Comment
कोई बाबा निर्मल नहीं
सब मन के बड़े मैले हैं ,
दौलत के ढेर पर बैठे
ये ठग बड़े लुटेरे हैं ,
व्यापार इनका धर्म है
धर्म का करते…
ContinueAdded by अरुण कान्त शुक्ला on April 14, 2012 at 12:30am — 11 Comments
Added by AjAy Kumar Bohat on April 13, 2012 at 8:30pm — 6 Comments
मेरा यार मुझसे जुदा हुआ,
मेरी जान जैसे निकल गई.
मुझे प्यार उसका न मिल सका,
उसे चाहना या न चाहना
उसे पूजना या न पूजना
मेरी चाहतों का हिसाब क्या,
मेरी रूह भी हो विकल गई..
मुझे प्यार उसका न मिल सका,
मेरी आह मुझमे ही मिल गई..
कोई…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 13, 2012 at 8:00pm — 23 Comments
ये कौन सा मोड़ है जीवन का
जहा सिर्फ अंतर्द्वंद है
यक़ीनन मै जनता हूँ
हर उस रास्ते को
जो मेरे चौराहे से गुजरता है
परन्तु फिर भी मै अविचल हूँ
यकीन मानो ,…
ContinueAdded by arunendra mishra on April 13, 2012 at 1:00pm — 10 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 13, 2012 at 12:25pm — 12 Comments
Added by AjAy Kumar Bohat on April 13, 2012 at 8:47am — 5 Comments
धूल भरी आँधी चली, सारी धूल घर में आ गयी,
मगर आपके चरणों की धूल मेरे घर में नहीं आयी ,
आप कब आ रहे हैं मुझसे मिलने?
धूल भरी आंधी चली, सारी धूल घर में आ गयी,
आप तक पहुँचने के लिए, क्या सहारा लेना पड़ेगा आँधी का,
मुझ रास्ते की धूल को.....
धूल भरी आँधी चली, सब और धूल ही धूल छा गयी,
ओह्ह , आप तो घर के खिड़की दरवाज़े सब बंद रखते हैं,
ये गोग़ल्स भी आप पर खूब फबते हैं....
.
© AjAy Kum@r
Added by AjAy Kumar Bohat on April 13, 2012 at 8:30am — No Comments
जंग से जमीन में
घाव बहुत होते हैं
जख्म गर भरे भी तो
रोम-रोम रोते हैं !
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इन्सां ने इन्सां को
इन्सां सा प्यार दिया
स्वर्ग धरा लाये आज …
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 12, 2012 at 10:30pm — 12 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 12, 2012 at 8:00pm — 13 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 12, 2012 at 7:00pm — 5 Comments
तुम हर पल क्यूँ सजग रहे
कौन व्यथा है दबी हिय में
किस अगन में संत्रस्त रहे |
घूर रहे क्यूँ रक्तिम चक्षु
कुपित अधर क्यूँ फड़क रहे
दावानल से केश खुले क्यूँ
तन से शोले भड़क रहे |
प्रदूषण ने ध्वस्त किये
जो, बहु तेरे संबल रहे
कतरा -कतरा टूट-टूट कर
चुपके -चुपके पिघल रहे…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 12, 2012 at 6:30pm — 19 Comments
प्यार का ख्याल.....
प्यार का ख्याल गर खाब मैं ही हो आये,
तो ज़िन्दगी खूब से खूबतर हो जाये.
हर आँख से…
ContinueAdded by Monika Jain on April 12, 2012 at 4:31pm — 5 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 12, 2012 at 12:48pm — No Comments
Added by MAHIMA SHREE on April 12, 2012 at 11:45am — 12 Comments
मै भी लड़ना चाहती हूँ! मुझे लड़ने दो!
हार का मै स्वाद चखना चाहती हूँ.
जीत का अभ्यास करना चाहती हूँ.
.
प्रेयसी बन बन के हो गई हूँ बोर!
मै नए किरदार बनना चाहती हूँ.
मै भी जिम्मेदार बनना चाहती हूँ.
.
सीता-गीता मेरे अब नाम मत रखो!
धनुष का मै तीर बनाना चाहती हूँ,
गरल पीकर रूद्र बनना चाहती हूँ.
.
अपने पास ही रखो हमदर्दी अपनी!
खड़े होकर सफ़र करना चाहती हूँ,
'बसो' का मै ड्राइवर बनना चाहती हूँ.
मै…
ContinueAdded by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 12, 2012 at 11:03am — 10 Comments
आज नहीं तो कल सबके ही दिन आएँगे
Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 12, 2012 at 10:33am — 2 Comments
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