For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,932)

मॆरी बात तॊ समझॊ,,,,,,,,,

मॆरी बात तॊ समझॊ,,,,,,,,,

-----------------------------

उछलॊ मत यार ज़रा,हालात तॊ समझॊ ॥

मैं कह रहा हूं कि, मॆरी बात तॊ समझॊ ॥१॥…



Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 6, 2012 at 10:00pm — 3 Comments

मासूम इश्क

देखें हैं हमने नज़ारे कई , शरारे कही  तो बहारें कई ,

लिखी-पढ़ी  है खूबसूरती की कई परिभाषाएं 

कही-सुनी है इबादत ए हुस्न की कई कवितायेँ …
Continue

Added by Rohit Dubey "योद्धा " on February 6, 2012 at 9:00pm — 2 Comments

वो कोशिश करते रहे रुसवा करने की ,

मांगी जो उनसे जिगर में पनाह हमने ||

देखें ऐसे जो किया हो गुनाह हमने ||

आज तक न मिला मुहब्बत सा बहर गहरा,

देखे लाखों बहर गहरे अथाह हमने ||

हमको उसने भी दिया ना जवाब कोई ,…

Continue

Added by Nazeel on February 6, 2012 at 8:10pm — No Comments

छन्न पकैया

छन्न पकैया-छन्न पकैया, जीवन तेरा- मेरा.

रोज डूबता सूरज इसमे, होता रोज सबेरा.

**

छन्न पकैया-छन्न पकैया, सांसें आती-जाती.

चलने का मतलब है जीवन,रुकना मौत कहाती.

**

छन्न पकैया-छन्न पकैया, सुख ही दुःख का कारण.

इस धरती पर कोई घटना , होती नही अकारण.

**

छन्न पकैया-छन्न पकैया, कह गए ज्ञानी-ध्यानी.

अपना ही गुण-धर्म निभाते, हवा,आग और पानी.

**

छन्न पकैया-छन्न पकैया, धर्म वही है सच्चा.

जिसे जानता वसुंधरा का, साधो, बच्चा-बच्चा.…

Continue

Added by AVINASH S BAGDE on February 6, 2012 at 8:00pm — 5 Comments

अनछुआ एहसास

बहुत सोचा कि लिख ही डालूँ 

यादों और एहसासों को साँस दे ही डालूँ...
आई जब तन्हाई की आगोश में,
लायी जब यादों को होश में...
तब जेहन में आया किसी का जिक्र,
एहसासों का वो गुबार, 
जिसकी नहीं थी कोई फिक्र....
यादों के झरोके में पाया वो एहसास,
जिससे न थी कभी टकराने की कोई आस....
उन एहसासों को दी अल्फाजो…
Continue

Added by Yogyata Mishra on February 5, 2012 at 4:00pm — 3 Comments

तीन कुंडलियां / अविनाश बागडे

(१)

शक्तिशाली खूब बनो,साहस हो भरपूर.

विनम्रता के भाव ही,मन में रहे प्रचूर.

मन में रहे प्रचूर ,सादगी का गहना हो.

अपनी जरुरत की सरहद में ही रहना हो.

कहता है अविनाश,बढ़ेगी तब खुशहाली.

जीवन अपना और बनेगा शक्तिशाली.

(२)

भाई से भाई टकरा के होते है बरबाद.

दुश्मन के सारे मंसूबे हो जाते आबाद.

हो जाते आबाद,सभी तुम पर हंसते है.

टूटा घर दिखलाकर सब फिकरे कसते हैं.

कहता है अविनाश रोकिये जगत हंसाई

घर का झगडा घर में…

Continue

Added by AVINASH S BAGDE on February 5, 2012 at 1:00pm — 6 Comments

वक्त,,,,

वक्त,,,,

--------------

किसी किसी कॊ भला खासा, बना दॆता है वक्त ॥

किसी की ज़िंदगी का तमाशा,बना दॆता है वक्त ॥१॥





कभी चुल्लू भर पानी सॆ, भर दॆता है समंदर कई,…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 5, 2012 at 11:30am — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
इन्तजार में

बिखरे  हुए हैं गेसू इस इन्तजार में 

आये कोई झोंका  हवा का 
और संवार दे !
ढलका हुआ है आँचल 
नर्म  जमीं के बदन पर   
कि चांदनी भी 
तारों की लड़ियाँ निसार दे !
वो बैठे हैं गिराकर 
पलकों की झालरें 
चल के आये जवां ख़्वाब कोई 
और पहलू में जिंदगी गुजार दे !
ऐ काली घटाओ !
तिल सा…
Continue

Added by rajesh kumari on February 5, 2012 at 10:00am — 10 Comments

ये आज का युवा हैं

आंधी हैं हवा हैं

बंधनों में क्या हैं

ये उफनता दरिया हैं  

किनारे तोड़ निकला हैं

मस्ती में मस्तमौला हैं

मुश्किल में हौसला हैं

अपनी पे आजाए तो जलजला हैं

ये आज का युवा हैं

 

कभी बेफिक्री का धुआँ हैं

कभी पानी का बुलबुला हैं

कभी संजीदगी से भरा हैं

ये आज का युवा हैं

पंखों को फडफडाता हैं

पेडों पे घोंसला बनाता है

अब की उड़ना ये चाहता हैं

दाव पे ज़िंदगी लगता हैं

हारा भी…

Continue

Added by shashiprakash saini on February 5, 2012 at 12:22am — 8 Comments

भरत की व्यथा

            

भरत की व्यथा 

घनी अंधियारी  काली रात ।

सूझता नहीं हाथ को हाथ ।

घोर सन्नाटा सा है व्याप्त ।

नहीं है वायु भी पर्याप्त ।



नहीं है काबू में अब मन ।

हुआ है  जब से राम गमन ।

भटकते होंगे वन और वन ।

सोंच यह व्याकुल होता मन ।



नगर से बाहर सरयू…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on February 4, 2012 at 8:51pm — 5 Comments

सुन रहा रात की धमनी शिराओं से

बन गया मुसाफिर इस दुनिया में

सुख दुःख की लाँघ सीमाओं को

सुबह से चलता चलता अब

सुन रहा रात की धमनी शिराओं से

 

कोई पुकारता है दूर चट्टानों से

कोई ढूंढ़ता है मुझे मेरे बहानो से

उन झुरमुटों को साथ ले चला आया

मैं अब किस दिशा को बढ़ चला हूँ

कंधे पर भार लगते नहीं हैं

कोई पूछे सवाल कहारों से

सुबह से चलता चलता अब

सुन रहा रात की धमनी शिराओं से

रोक कर कई पूंछते हैं 

शहर  किधर को…

Continue

Added by AJAY KANT on February 4, 2012 at 8:07pm — No Comments

हाईटैक भक्त – हाईटैक भगवान

भगवन कहां छिपे हो मुझको काल करो,

काल नहीं ना सही, प्रभु मिस काल करो ।

इक पल में ही काल रिटर्न करूँगा मैं,

किसी बात पर प्रभु ना ध्यान धरूँगा मैं,

अब तो मिलने की प्रभु कोई चाल करो।     (भगवन कहां छिपे …)

 

अगर लाँग डिस्टेंस है तो कुछ बात नहीं,

चैटिंग का पैकेज तो मंहगी बात नहीं,

डेटिंग, चैटिंग कुछ तो सूरत-ए-हाल करो।   (भगवन कहां छिपे…)

 

फ़ोन नहीं तो इंटरनैट पर आ जाओ,

स्काइप पे आकर प्रभुवर दरश दिखा…

Continue

Added by Prof. Saran Ghai on February 4, 2012 at 8:00pm — 3 Comments

बात करियॆ,,,,

बात करियॆ,,,,

-------------------

साफ़गॊई सॆ आप यूं, सब सॆ बात करियॆ ॥

जिस सॆ भी करियॆ, अदब सॆ बात करियॆ ॥१॥



बॆ-वज़ह बात करना, भी मुनासिब नहीं,…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 3, 2012 at 7:30pm — 9 Comments

ग़ज़ल

गरीबी के अब तो जमाने हुए |

मुहब्बत से खाली खजाने हुए |


नहीं मिटता…
Continue

Added by dilbag virk on February 3, 2012 at 5:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल...

ग़ज़ल...

पीले हुए हैं हाँथ जब से मेरे लाल  के,
आये समझ में भाव उसको आटे- दाल  के.
##
आना तू पूछने को जरा इंतजाम से,
दूंगा जवाब मै तुम्हारे हर सवाल के.
##
होते है ऐसे लोग भी अपने समाज में,
मारते हैं मखमली जूते निकाल  के.
##
हमको किसी सय्याद की बातों का डर नहीं,
पंछी चहकते हम सभी हैं एक डाल के.
##
कपड़ों…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on February 2, 2012 at 4:30pm — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
तुम्हारी आदत

अभी तक गई नहीं तुम्हारी  आदत 

हर जगह मेरा नाम लिखने की !
वो भी दिन थे 
जब तुम रंग बिरंगी चॉक से 
लिख देते थे मेरा नाम श्यामपट्ट पर 
और उपहास के पात्र बनते थे हमदोनो!
कभी मेरे घर के इर्द गिर्द घूमते हुए 
दीवारों पर 
कभीचुपके से फेंके हुए मेरे आँगन में 
अपने ख़त में ,
 लिख देते थे खून से मेरा नाम !
फिर तुमने उस…
Continue

Added by rajesh kumari on February 2, 2012 at 11:39am — 11 Comments

कुछ दोहे श्रृंगार के --संजीव 'सलिल'

कुछ दोहे श्रृंगार के

संजीव 'सलिल'

*

गाल गुलाबी हो गये, नयन शराबी लाल.

उर-धड़कन जतला रही, स्वामिन हुई निहाल..

पुलक कपोलों पर लिखे, प्रणय-कथाएँ कौन?

मति रति-उन्मुख कर रहा, रति-पति रहकर मौन..

बौरा बौरा फिर रहे, गौरा लें आनंद.

लुका-छिपी का खेल भी, बना मिलन का छंद..

मिलन-विरह की भेंट है, आज वाह कल आह.

माँग रहे वर प्रिय-प्रिया, दैव न देना डाह..

नपने बौने हो गये, नाप न पाये चाह.

नहीं सके विस्तार लख, ऊँचाई या थाह..

आधार चाहते…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on February 1, 2012 at 10:30pm — 3 Comments

कामनाएँ

कामनाएँ

साल दर साल रैन बसेरा के साथ मत दो

बस एक ख्याल ही अपना आने दो ।

गगन के विस्तार सा आयाम मत दो

बस एक कोने में सिमटा सूर्य बन रहने दो ।

सावन की हरियाली सा संजीवनी अहसास मत दो

बस एक अमलतास बन मुस्काने दो ।

सर्द रातों में बाहों के घेरे का जकड़न मत दो

बस टिकने के लिए कंधे का सहारा दे दो ।

आँखों में बंद ख्वाबों का आसरा मत दो

बस अपनी एक बेचैन पल का हवाला दे दो ।

दूब की मखमली चादर पर साथ न चलने दो

बस ओस की एक बूँद बन गिर जाने…

Continue

Added by kavita vikas on February 1, 2012 at 10:25pm — 3 Comments

मेरे घर के नज़दीक दीवारों पे

मेरे घर के नज़दीक दीवारों पे ||
आए नज़र मुझे तू इश्तिहारों पे ||

है सच्चाई की शरीफ कूचों में भी ,
अक्सर बिकता है हुस्न चौबारों पे ||

शायद सब जायज है इस सियासत में,
बस मुद्दे ही हैं किस्मत के मारो पे ||

मुमकिन ना है अब वस्ल होगा उनसे ,
बसते हैं जो आजकल वो सितारों पे ||

आखिर आए है मौसिमे -वीरानी ,
इस फिजा को महकाती इन बहारों पे ||

Added by Nazeel on January 31, 2012 at 4:30pm — 5 Comments

एक बार मेरे आँगन में कदम रखो श्रीमान ,

एक बार मेरे आँगन में कदम रखो श्रीमान ,

फिर समझ में आएगा कितने हो महान ,

एक तस्वीर जिसपे हम वर्षो से फूल चढ़ाते हैं ,

एक तस्वीर ऐसा  भी आओ तो तुझे दिखाते हैं ,

मरने वाला मर गया तुम बन गए महान ,

एक बार मेरे आँगन में कदम रखो श्रीमान ,

पार्टी बाजी गुट बाजी उनको हमसे दूर किया ,

आपने उनको बा इज्जत शहीद ऐलान किया ,

फिर मेरे आँगन में उनका पुतला लगा दिया ,

कमाने वाला चला गया हमें मझधार दिया ,

और आप…

Continue

Added by Rash Bihari Ravi on January 31, 2012 at 4:00pm — 2 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। रोटी पर अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
yesterday
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Thursday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service