छन्न पकैया-छन्न पकैया, जीवन तेरा- मेरा.
रोज डूबता सूरज इसमे, होता रोज सबेरा.
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छन्न पकैया-छन्न पकैया, सांसें आती-जाती.
चलने का मतलब है जीवन,रुकना मौत कहाती.
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छन्न पकैया-छन्न पकैया, सुख ही दुःख का कारण.
इस धरती पर कोई घटना , होती नही अकारण.
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छन्न पकैया-छन्न पकैया, कह गए ज्ञानी-ध्यानी.
अपना ही गुण-धर्म निभाते, हवा,आग और पानी.
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छन्न पकैया-छन्न पकैया, धर्म वही है सच्चा.
जिसे जानता वसुंधरा का, साधो, बच्चा-बच्चा.
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अविनाश बागडे.
Comment
aabhar..Raj Lally Sharma ji.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, सुख ही दुःख का कारण.
इस धरती पर कोई घटना , होती नही अकारण. !!
क्या बात है
यह छन्न तो दिल को भा जा !! खूब AVINASH S BAGDE ji
aabhar Ashutosh ji.
सौरभ जी, आपके द्वारा मेरी रचना के भावों के सम्मान में खर्च किया गया एक-एक शब्द मानो मेरे लिये मोती से बढ़ कर है.यहीं ओ. बी. ओ. से जुड़ने की सार्थकता अपने -आप सिद्ध होती है.....नमन.
मात्र पाँच बंद और जीवन के शाश्वत का सान्द्र सत्त सापेक्ष है ! प्रत्येक बंद बानग़ी है गहन अध्ययन, पारखी दृष्टि और सटीक संप्रेषण की.
रोज डूबता सूरज इसमें, होता रोज सवेरा.. , इस धरती पर कोई घटना , होती नही अकारण. .. या फिर, अपना ही गुण-धर्म निभाते, हवा,आग और पानी.. इन पंक्तियों से निकलते भाव और संदेश जिस आसानी से हृदय की गहराइयों में बसते चले जाते हैं यह कवि के रचना-कर्म की प्रौढ़ता के कारण ही संभव है.
साहित्य-साधना के क्रम में एक और आयाम आध्यात्म का हुआ करता है. यह आयाम किसी रचनाकार के विचारों को स्पष्ट, उद्येश्यपरक तथा व्यापक बनाता है. प्रस्तुत छंद का आखिरी बंद तो हर उस सतही किन्तु प्रभावी संशय की जैसे खिल्ली ही उड़ाता दीख रहा है जिसके अंतर्गत कतिपय वर्ग द्वारा ’प्रकृति को धारने के उच्च मानकों’ को उथला सा नाम दे कर बदनाम करने का और एक समृद्ध वैचारिकता को नकारने का वर्षों से एक घिनौना षड्यंत्र चलाया जा रहा है.
छन्न-पकैया की ज़मीन पर जिस सहजता से आदरणीय अविनाश भाई जी ने तथ्य रखें हैं वे अभिभूत तो करते ही हैं, हमारे सामने अनुकरणयोग्य सफल उदाहरण भी रखते हैं. इसमें तनिक संशय नहीं कि भाई अविनाश जी की वैचारिक संपन्नता इस मंच के लिये थाती है...
सादर बधाइयाँ.
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