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अनछुआ एहसास

बहुत सोचा कि लिख ही डालूँ 

यादों और एहसासों को साँस दे ही डालूँ...
आई जब तन्हाई की आगोश में,
लायी जब यादों को होश में...
तब जेहन में आया किसी का जिक्र,
एहसासों का वो गुबार, 
जिसकी नहीं थी कोई फिक्र....
यादों के झरोके में पाया वो एहसास,
जिससे न थी कभी टकराने की कोई आस....
उन एहसासों को दी अल्फाजो की साँस,
उठाया लिखने को कलम,
पर पाया हमेशा शब्दों को कम...
वो बिछड़ने वाले रुदन को क्या शब्द दूँ ...
वो प्यार वाले मिलन को क्या शब्द दूँ.....
कहने को तो बहुत है पास,
पर शायद अभी कही है कोई फाँस...
रुदन हो या मिलन,
है तो सिर्फ एक अनछुआ बंधन,
जिसने शब्द तो क्या साँसों को भी बाँध दिया,
और इस जीवन के बंधन को नया नाम दिया...
आज फिर से चेष्टा की थी
एहसासों को शब्दों में बाँधने की,
आज फिर से दिल ने सोचा,
कलम को नयी दिशा देने की,
लेकिन जब बैठी तो,
फिर से एहसासों का एक जाल पाया...
लिखने बैठी तो,
एक भी एहसास कलम के साथ न आया, 
रह गया फिर से वही अनचाहा, अनसुलझा एहसास,
कभी न खत्म होने वाली एक अधूरी आस....
कभी न खत्म होने वाली एक अधूरी आस....

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Comment by Yogyata Mishra on February 6, 2012 at 7:07pm
thnx...

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Comment by rajesh kumari on February 6, 2012 at 12:42pm

umda rachna yogyata ji.

Comment by AVINASH S BAGDE on February 6, 2012 at 11:01am
आज फिर से दिल ने सोचा,
कलम को नयी दिशा देने की,
लेकिन जब बैठी तो,
फिर से एहसासों का एक जाल पाया...
लिखने बैठी तो,
एक भी एहसास कलम के साथ न आया, bahut khoob Yogyata ji....aapke ye ahsas....

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