कभी प्यार हमें भी हो सकता है , हमने सोचा न था
Added by Rohit Dubey "योद्धा " on April 11, 2012 at 11:00am — 5 Comments
जान ले लेगा वो तिल, लब पे जो बनाया है .
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
मुस्कुराती हो जब तो गालों पे, जानलेवा भंवर सा बनता है.
खोलती हो अदा से जब पलकें , झील में दो कँवल सा खिलता है.
साथ जिसको नहीं मिला तेरा, क्यों यहाँ ज़िन्दगी गंवाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
हुस्न की देवी तेरे ही दम से, खिलते हैं फूल दिल के गुलशन में.
देखकर तुमको ही ये हुरे ज़मीं , पलते हैं इश्क दिल की धड़कन में.
हर कोई देखता है तुमको ही, रब…
Added by satish mapatpuri on April 11, 2012 at 12:42am — 11 Comments
सुबह-सुबह एक अजीब सा खयाल आया. आप कहेंगे ये सुबह-सुबह क्यों ? खयाल तो अक्सर रात में आते हैं, जोरदार आते हैं. फिर ये सुबह के वक्त कैसे आया ! यानि, कोई रतजगा था क्या कल रात जो इस खयाल को आने में सुबह हो गयी ? नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. वस्तुतः, मेरे हिसाब से, ये खयाल कुछ अजीब सा था, इसीलिये इसे समझते-बूझते सुबह हो गयी.
चूँकि सुबह के वक्त जो कुछ भी आता है बहुत जोर से आता है, सो, खयाल की भी हालत कुछ वही थी. एकदम से बाहर निकल आने को बेकरार ! अब सुबह-सुबह अपना खयाल कहाँ, किसपे साफ़ करुँ ? एकदम…
ContinueAdded by Shubhranshu Pandey on April 10, 2012 at 10:00pm — 19 Comments
(प्रस्तुत पंक्तियों को उल्लाला छंद में लिखने का प्रयास किया गया है,इसके प्रत्येक चरण में 13-13मात्रायें होती हैं।लघु-गुरू का कोई विशेष नियम नहीं होता,किन्तु 11वीं मात्रा लघु होनी चाहिए)
भूखी आंतों के लिए,
सेंसेक्स बस बवाल है।
तीसमार खां कह रहे,
मार्केट में उछाल है॥
जेब नहीं कौड़ी फुटी,
जनता सब बेहाल है।
भारत विकसित हो रहा,
वाह!बढ़िया कमाल है॥
कर्ज बोझ सिर पे लदा,
कृषक हुआ बदहाल है।
हम विकसित हो जायगें,
यह कोरा भौकाल…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 10, 2012 at 9:30pm — 12 Comments
फुरसत
शहर की मशहूर सी उस गली के दोनों किनारों पर बने घरों में रोशनी करने के लिए बिजली के तार एक दूसरे से उलझे हुवे एक घर से दूसरे घर में, दुसरे घर से तीसरे घर में और इसी तरह गली के सारे घरों से जुड़े हुवे थे. बिजली के इन तारों में उलझ कर एक दिन एक बंदर की मौत हो गयी. गली में बने सभी घरों में रहने वाले लोगों को बंदर की मौत से लगने वाले पाप से छुटकारा पाने की चिंता हो गयी. गली के सभी बाशिंदओं ने आपस में रायशुमारी करने के…
Added by Neelam Upadhyaya on April 10, 2012 at 8:30pm — 5 Comments
Added by MANISHI SINGH on April 10, 2012 at 6:27pm — 13 Comments
तनहा खड़ा एक पेड़ हूँ मैं
मन ही मन खड़ा छटपटाता हूँ
अतीत की धुंद में खो जाता हूँ
कभी था बाग़ ए बहार यहाँ
उजड़ा गुलशन बिखरा ये चमन
लगता अब जैसे शमशान यहाँ
आज न वो आँगन है
न ही वे संगी साथी …
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 10, 2012 at 1:17pm — 6 Comments
मुझे सुनाई दी, बोली
मुझसे मेरी आत्मा बोली
पढ़ले पहले तू वेद, पुराण
या कुरान कलमां|
मै बैठा हूँ –
गिरजाघर और मंदिरों में,
मिल जाएँगी परछाई-
गुरुद्वारों औ मस्जिदों में:
कण कण में, ख्वाईशो में,
इश्क की फरमाईशो मे
प्यार दिल से करों तो –
मै मिलूंगा सोहणी-महिवाल में
सच मानो मै मिलूँगा –
हीर-राँझा…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 10, 2012 at 11:30am — 2 Comments
Added by Lata R.Ojha on April 10, 2012 at 1:30am — 2 Comments
दूर क्षितिज छाये है लाली
पक्षी-पर -ना रुकता देखो कैसे उड़ता जाता !!
नीचे -सागर विस्तृत कितना पानी -पानी
माझी-नौका -तूफाँ -लड़ते फिर पतवार चलाता !!
मंजिल कितनी दूर -न जाने -पीता पानी
राही पल -पल जोश बढ़ाये डग तो भरता जाता !!
पर्वत नाले पार किये बढ़ जाती धरती
कहीं छुएगी आसमान को साहस बढ़ता जाता !!
बीज दबा है बोझ से फिर भी
टेढ़ी - मेढ़ी राह धरे दम भरते निकला आता !!
अपनी मंजिल सब पाए जब आस बंधी
हारे ना - दृढ निश्चय जब हो !
एक आँख…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2012 at 5:49pm — 4 Comments
ना कर खुदी को बुलंद इतना
कि अपनो का साथ छूट जाएँ
और खुदा भी ना पूछे,
बता तेरी रजा क्या हे
गर बढ़ना हे आगे
तो अपनों को साथ
लेकर चल
मंजिल पर पहुच कर
कही अकेला ना रह जाये
हर ख़ुशी बेमानी हे
गर अपनों से ना बांटी जाये
Added by Sanjeev Kulshreshtha on April 9, 2012 at 11:55am — 1 Comment
तनहा कट गया जिन्दगी का सफ़र कई साल का
चंद अल्फाज कह भी डालिए अजी मेरे हाल पर
मौसम है बादलों की बरसात हो ही…
ContinueAdded by RAJEEV KUMAR JHA on April 9, 2012 at 8:30am — 7 Comments
तम में अपनी तुणीर बाँध कर जब ये चलते हैं,
मेरे ह्रदय मन आँगन से रोज निकलते हैं,
एक बाण और कई लक्ष्य दें मन को छलते हैं,
मानव मन के इक कोने में सपने पलते हैं,
सुप्त पड़ी काया में तो निशदिन खेल ये करते हैं,
श्वेतश्याम से आकर मन में रंग ये भरते हैं,
कई बार मुरझाये मन में यह उजियारा करते हैं,
और मानव के जगने तक नैनों में ठहरते हैं,
कभी पूर्णता पा जाएँ सोच कर मन में टहलते हैं,
मानव मन के इक कोने में सपने पलते हैं,
छूकर मानव के मन…
Added by Ashok Kumar Raktale on April 9, 2012 at 6:43am — 2 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 8, 2012 at 2:56pm — 4 Comments
चीनी के दाम बढने पर
पत्रकारों ने खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री से सवाल पूछा.-
मंत्री जी ने बड़ी बेबाकी से जवाब दिया.
चीनी कम खाइए, डायबिटीज को दूर भगाइए.
मैं तो चाय भी बिना चीनी के पीता हूँ,
कहिये तो आपलोगों के लिए भी मँगा दूँ.
पत्रकारों का अगला सवाल था -
सर, दाल बहुत महंगा है,
मंत्री जी फिर बोले,
आपने सुना नहीं, अमरीका ने क्या कहा है?
वे कहते हैं, भारतीय दाल ज्यादा खाते हैं,
इसीलिये गाल भी ज्यादा बजाते हैं.
अब मेरी सलाह मानिए,
गरम पानी में…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on April 8, 2012 at 6:31am — 8 Comments
वाणी वंदना
\
रसना पर अम्ब निवास करो,
माँ हंसवाहिनी नमन करूँ.
सेवक चरणों का बना रहूँ,
नित उठ बस तेरा ध्यान धरूँ.
छंदों का नवल स्वरुप लिखूँ,
लेखनी मातु रसधार बने.
हो प्रबल काव्य उर वास करो,
हर छंद मेरा असिधार बने.
मन…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 7, 2012 at 11:00pm — 12 Comments
अहसास
श्वेत वसन में लिपटा जीवन
जन गण का सम्मान लिए !
चूसें रक्त सदा वे विचरें
कानून न उन पर हाथ धरे !!
भले दीखते ऊपर ही चंगे
जब मन को साफ रखे ना !…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 6, 2012 at 10:00pm — 12 Comments
आज वह (मानव )
पंचभूत में विलीन हो गया
कुछ भी तो नहीं ले जा सका
सबकुछ
जहाँ का तहां विद्यमान हैं
जब जीवन था
तब उसे फुर्सत था कहाँ ?
न संतुष्टि थी
न खुशिया
नित नए खोज में उलझे
वह प्राणी
भाग रहा था
परन्तु आज सबकुछ
ख़त्म हो गया
खाली हाथ आया था
खाली हाथ ही चला गया l
Added by Rita Singh 'Sarjana" on April 6, 2012 at 9:30pm — 20 Comments
(गणबद्ध) मोतिया दाम छंद
सूत्र = चार जगण (१६ मात्रा) यानि जगण-जगण-जगण-जगण (१२१ १२१ १२१ १२१)
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दिखी जब देश विदेश अरीत.
दिखा शिशु भी हमको भयभीत .
तजें हम द्वैष बनें मनमीत.
लिखूँ कुछ काव्य अमोघ…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 5:30pm — 12 Comments
Added by Sarita Sinha on April 6, 2012 at 2:30pm — 9 Comments
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