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(गणबद्ध)                  मोतिया दाम छंद

सूत्र = चार जगण (१६ मात्रा) यानि  जगण-जगण-जगण-जगण (१२१ १२१ १२१ १२१)

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दिखी  जब  देश  विदेश  अरीत.

दिखा शिशु भी हमको भयभीत .

तजें हम  द्वैष  बनें  मनमीत.

लिखूँ कुछ काव्य अमोघ पुनीत..

.

चढ़ा जब  द्रोह  यहाँ  परवान.

चला जब देश अलंग विवान.

दिखे चुप आज सुदेश दिवान.

दुखी मन खोज अनूप सिवान..

.

चली तब लेखन की असिधार.

बनी यह रीत  अरीत  अधार.

मिला कुइ अंत न और सुधार.

घिरी यह नाव पड़ी मझधार..

.

मिटी तहजीब  मिटी  हर  रीत.

किया फिर क्यों हमने यह प्रीत.

थका लिख आज सुदेश कुरीत.

लिखे हमनें नित ही नवगीत..

.

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अरीत = कुप्रथा या कुरीति

अलंग = की ओर

विवान = अर्थी

सिवान = परिसीमा

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Comment

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Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 19, 2012 at 11:31pm

आदरणीया महिमा जी उत्साहवर्धन हेतु कोटि कोटि धन्यवाद

Comment by MAHIMA SHREE on April 19, 2012 at 11:02pm

चढ़ा जब  द्रोह  यहाँ  परवान.

चला जब देश अलंग विवान.

दिखे चुप आज सुदेश दिवान.

दुखी मन खोज अनूप सिवान.......bahut sunder

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 7, 2012 at 3:47pm

आदरणीय राजीव सर सादर नमन ,सराहना के लिए ह्रदय से आभार

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on April 7, 2012 at 3:33pm

बहुत अच्छी  कविता,मृदु जी.बहुत सुन्दर भाव हैं.

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 7, 2012 at 2:43pm

आदरणीय वाहिद सर आपका स्नेह मिला आपका बहुत बहुत आभार , आप लोगों के बीच रहकर सीख रहा हूँ . आपका आशीर्वाद मिलता रहे कभी न कभी साहित्य के पटल पर सफलता मिल ही जायेगी . पुनः बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 7, 2012 at 1:42pm

प्रिय मृदु जी,

जिस तरह से आप नित नए नए छंदों पर आधारित अपनी रचनाएँ मंच पर प्रस्तुत कर रहे हैं वह आपकी बहुआयामी सृजनशीलता का परिचायक है| साथ ही यह आपकी साहित्यिक अभिरुचि और आपकी सीखने की ललक को भी दर्शाता है| भाव पक्ष तो आपका सदैव ही सशक्त रहा है| भाई गणेश जी की बातों से मैं भी पूरी सहमति रखता हूँ| आप निश्चित ही अपने जीवन में बहुत ऊंचाइयों को छुएंगे| हार्दिक बधाई आपको| :))

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 7, 2012 at 8:06am

आदरणीय जवाहर सर सादर नमन , उत्साहवर्धन के लिए हृदय से आभार

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 7, 2012 at 7:50am
बहुत ही सुन्दर! मृदु जी, आप तो तूफ़ान से कश्ती निकल कर लाये हैं ऐसा लगता है!
Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 11:51pm

आदरणीय प्रदीप सर आप लोगों के  स्नेह, मार्गदर्शन  और आशीर्वाद के बल पर ही साहित्य क्षेत्र में उन्नति की ओर बढ़ सकूंगा.रचना की सराहना और मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करने के लिए आपको मेरा शत-शत वंदन

                                                                                                          सादर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 6, 2012 at 11:43pm

snehi. rachana ka bhav pasand. aaya. aesi hindi samjhne main mujhe kathinai hoti hai. par aapne arth de diya . kaam ban gaya. agar aage bhi aesa karenge to main to labhanvit hunga. gyan bhi badhega. ashirvad de raha hoon.

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