दिल में चंद पल तन्मय रब रीझाना भी होता था।
हरिक आबाद घर में एक वीराना भी होता था।।
ि
तश्नगी से सहरा में तूं पी करते मर जाना भी होता था ।
हैरतअंगेज गजाला-गजाली सा याराना भी होता था ।।
वादाफर्मा को वादा निभाना भी होता था ।
दिले-नाशाद को जाके मनाना भी होता था ।।
आजकल गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं लोग ।
पहले अपना मजहबीं इक बाना भी होता था।।
अब तो अजीजों का हमें सही पत्ता नहीं मिलता।
किसी जमाने में दुश्मन का भी ठिकाना भी होता था ।।
अब न…
ContinueAdded by nemichandpuniyachandan on April 23, 2011 at 3:30pm — No Comments
Added by Raj on April 23, 2011 at 11:22am — No Comments
अमझर गांव में संचालित छत्तीसगढ़ स् टील एण्ड पावर लिमिटेड द्वारा पिछले 3 वर्षो से भू-जल की चोरी कर बिजली पैदा किया जा रहा है। भू-जल दोहन की शिकायत पर प्रशासनिक अधिकारियों ने प्लांट में छापामार कर कंपनी प्रबंधन को बोर से पानी चोरी करते…
ContinueAdded by rajendra kumar on April 23, 2011 at 10:49am — No Comments
विकास की अंधी दौड़ में हम मं गल और चन्द्रमा पर आशियाना बनाने के सपने देख रहे हैं, लेकिन इस आपाधापी में पृथ्वी को भूल रहे हैं। आज पृथ्वी के बेहतरी लिए गंभीरता से कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। एक ओर हम वातावरण में कार्बन बढ़ाने वाले स्त्रोत बढ़ाते जा रहे…
ContinueAdded by rajendra kumar on April 23, 2011 at 10:45am — 1 Comment
Added by rajendra kumar on April 23, 2011 at 10:33am — No Comments
Added by Abhinav Arun on April 23, 2011 at 9:00am — 4 Comments
Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on April 22, 2011 at 8:00pm — 2 Comments
Added by rajni chhabra on April 22, 2011 at 1:00pm — 4 Comments
Added by Saahil on April 22, 2011 at 2:30am — 4 Comments
अन्वेषण स्वयं का
जैसे
अनंत शून्य में भटकना
क्या सत्य है मेरा ,
या कोई मिथ्या
अंतरद्वंद या छलावा
मैं बुद्ध नहीं
महावीर भी नहीं हूँ
जो संसार के कष्टों से भाग चलूँ |
नहीं बैठ सकता कंदराओं में…
Added by Shashi Ranjan Mishra on April 21, 2011 at 6:39pm — 10 Comments
जो पत्थर दिल थे आँसू बहानें लगें हैं,
रु-ब-रु गर हो तो मुस्कुराने लगें हैं.
अज़ीब तर्ज है तकल्लुफ़ का फ़िज़ायों में,
छुपाते थे जो, सिलसिलें बतानें लगें हैं.
कल तलक मायूस थे जो ईद पर हम से,
अब मुखबरी मुहल्लें की सुनानें लगें हैं.…
Added by अमि तेष on April 21, 2011 at 1:30pm — 4 Comments
सब कुछ शांत है...मौन | दो छूहों पर टिकी छप्पर वाली दालान में रजाई ओढ़े हुए मैं इस सन्नाटे की आवाज़ सुनने की कोशिश करता हूँ | इस रजाई की रुई एक तरफ को खिसक गयी है; लिहाज़ा जिस तरफ रुई कम है उस तरफ से सिहरन बढ़ जाती है | हल्का सा सर बाहर निकालता हूँ तो तैरते हुए बादल दीखते हैं; कोहरा है ये जो रिस रहा है धरती की छाती पर | छूहे की खूँटी पर टंगी लालटेन अब भी जल रही है...हौले हौले | अम्मा देखेंगी तो गुस्सा होंगी; मिटटी का तेल जो नहीं मिल पाता है गाँव में....दो घंटों तक खड़ा रहा था कल, तब जाकर तीन लीटर…
ContinueAdded by neeraj tripathi on April 21, 2011 at 1:00pm — 2 Comments
करना रुखसत मुझे तो यूं करना ..
मेरे शब्दों को साथ कर देना..
मेरे स्वप्नों को हार कर देना..
गीत जो संग संग गाए थे..…
ContinueAdded by Lata R.Ojha on April 20, 2011 at 11:00pm — 7 Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on April 20, 2011 at 9:30pm — 5 Comments
तुमने चाहा मेरा वजूद ही मर जाए
किन्तु तुम्हारे प्यार में मै बुत था,
मेरे प्रेम तप से अनजान बने क्यूँ.
क्या तुम्हें मेरा विश्वास कम था...........,
तुम शौके बहार बन आए जीवन में
मैंने भी सब कुछ नाम किया तुम्हारे
प्रीत प्याले को हाथ में देकर
तुम अमृत की जगह विष दे डाले.......
तुम एक प्रेयसी बन के आए थे
तुम्हारी खुशबू से महक उठा मै
नए जोश उमंग से घड़ियाँ प्रेम की बीतीं.
ऐसा जख्म दिया साथी, ये जिंदगी है मुझसे रूठी........
Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 20, 2011 at 8:00pm — 6 Comments
Added by Veerendra Jain on April 20, 2011 at 11:30am — 9 Comments
Added by वीनस केसरी on April 20, 2011 at 3:00am — 7 Comments
Added by देवDevकान्तKant पाण्डेयPandey on April 19, 2011 at 3:32pm — 3 Comments
Added by neeraj tripathi on April 19, 2011 at 12:03pm — No Comments
गजल-खुदी को खुदी से छुपाते रहें हैं हम ।
गैरो को मोहरा बनाते रहें हैं हम।।
भ्रष्टाचार को सबने अपना लिया हैं।
शिष्टता की बातें बनाते रहें हैं हम।।
रोशनी से चैंधिया जाती है आंखें ।
अंधेरे में खुशियां मनाते रहें हैं हम।।
जेब कतरों का पेट नहीं भरता।
मेहनत की अपनी खिलाते रहें हैं हम।।
लाखों भूखे पेट सोते हैं यहां।
बज्मों में रातें बिताते रहें हैं हम।।
अन्नाजी आपका बहुत आभार ।
अब तक सूखी खाते रहें हैं हम।।
दोस्तों नेकी कुछ करलो अभी…
ContinueAdded by nemichandpuniyachandan on April 19, 2011 at 10:30am — 1 Comment
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |