गजल-खुदी को खुदी से छुपाते रहें हैं हम ।
गैरो को मोहरा बनाते रहें हैं हम।।
भ्रष्टाचार को सबने अपना लिया हैं।
शिष्टता की बातें बनाते रहें हैं हम।।
रोशनी से चैंधिया जाती है आंखें ।
अंधेरे में खुशियां मनाते रहें हैं हम।।
जेब कतरों का पेट नहीं भरता।
मेहनत की अपनी खिलाते रहें हैं हम।।
लाखों भूखे पेट सोते हैं यहां।
बज्मों में रातें बिताते रहें हैं हम।।
अन्नाजी आपका बहुत आभार ।
अब तक सूखी खाते रहें हैं हम।।
दोस्तों नेकी कुछ करलो अभी वक्त हैं।
आईना चन्दन उल्टा दिखाते रहें हैं हम।।
नेमीचन्द पूनिया चन्दन
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