हर सुंदर
प्रभात वेला में
प्रतिदिन
मैं पाता हूँ
स्वयं को
सीलन भरी लकड़ी सा
जो चाहती है
सुलगना
और...
सुलगना भी
इस तरह की
उसमें होम हो जाए
सीलन .
सीलन अहम् की
बहुत सारे
भ्रम की
मेरी हमसफ़र !
आओ ...
पवित्र अग्नि में
प्यार की .
भस्म कर दें
सीलन
हृदयों के
संसार की .
.
.
करोगी स्वीकार ?
मेरा निमंत्रण !!
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 1, 2012 at 3:00pm — 8 Comments
सच्चाई को खोजने चला था,
झूठ ही झूट मिले,
मोहब्बत खोजने चला,
तो बेवफाई मिली,
जब खोजना छोड़ दिया,
तो तन्हाई मिली,
अब तो खुदी को खोजने चला हूँ ,
जो चाहा था बेवजह था
जो मिला है बेइंतहा है
यूही भटक रहा था
अब सकून ही सकून है |
Added by Sanjeev Kulshreshtha on March 1, 2012 at 1:00pm — 8 Comments
है अर्ज़ जो तेरी मैं दूँगी उसे सुना,
हौले से मेरे कान में कहती है ये सबा;
*
अल्फ़ाज़ बहुत आसमाने दिल पर उमड़ रहे हैं,
कोई नहीं बरसता मगर बनकर मेरी दुआ;…
Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 1, 2012 at 11:30am — 26 Comments
सुंदर -असुंदर
रूप-रंग
उच्च-नीच
उतार-चढ़ाव
गुड़िया-गहने
बादल-बिजली
फूल-काँटे
जीत-हार
अपना-पराया
मान-अपमान…
Added by MAHIMA SHREE on February 29, 2012 at 11:00pm — 12 Comments
बचपन का क्या बयान करू, कुछ याद नहीं रहा दुनियादारी में,
बस ये नहीं भूला की माँ जागती थी रात भर, मेरी हर बीमारी में. …
Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on February 29, 2012 at 7:30pm — 14 Comments
हुईं थीं मुद्दतें फिर, वक़्त कुछ ख़ाली सा गुज़रा है;
कोई बीता हुआ मंज़र, ज़हन में आके ठहरा है;
कहीं जाऊं, मैं कुछ सोचूँ, न जाने क्या हुआ है,
मेरी आज़ाद यादों पर किस तसव्वुर का पहरा है;…
Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on February 29, 2012 at 2:51pm — 37 Comments
उपलब्धियों के मंच पर
Added by rajesh kumari on February 29, 2012 at 1:52pm — 14 Comments
फाग बड़ा चंचल करे, काया रचती रूप !
भाव-भावना-भेद को, फागुन-फागुन धूप !!
फगुनाई ऐसी चढ़ी, टेसू धारें आग
दोहे तक तउआ रहे, छेड़ें मन में फाग ॥
भइ, फागुन में उम्र भी करती जोरमजोर
फाग विदेही कर रहा, बासंती बरजोर !!…
Added by Saurabh Pandey on February 29, 2012 at 7:30am — 21 Comments
दस फागुनी दोहे -
मन में संशय न रहे खुले खुले हों बंध ,
नेह छोह के पुष्प से निकले मादक गंध |
हुलस उलस इतरा रहे गोरी तेरे अंग ,
मेरे मन बजने लगे ढोल मजीरा चंग |
गोरी फागुन रच रहा ये कैसा षडयन्त्र ,
तू कानो में फूंकती आज मिलन के मन्त्र |
रंग लगाने के लिए तू बैठी थी ओट ,
मेरा मन…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 29, 2012 at 7:30am — 26 Comments
आदर्शों पर चल कर तो देखो,
सर उठा कर जी कर तो देखो.
अत्याचार, ज़ुल्म, और भ्रष्टाचार के आगे
आवाज़ बुलंद करके तो देखो.
मन की राह कठिन है
चुनौतियाँ जटिल है,
पर एक बार आवाज़
बुलंद करके तो देखो
आत्मसम्मान से भर उठोगे
गर्व से सर उठा सकोगे (और)
एक बार जो चख लिया
आत्मसम्मान का स्वाद
तो हर चुनौती पार करने को
बलवला उठोगे
बस ज़रूरत है साहस की
ज़रूरत है हिम्मत की.
आदर्शों पर चल कर तो देखो, …
Added by Monika Jain on February 29, 2012 at 12:00am — 6 Comments
कोई सूरज की तारीफ करे तो
चंदा तुम ना होना गुमसुम l
सूरज की साँसों की गर्मी
करती है भू का उर्वर तन
और तुमसे शीतलता पाकर
कन-कन में होता परिवर्तन
है दोनों की ही हमें जरूरत
धरती पर मुस्काना दोनों तुम l
मौसम के कई रूप बदलते
कभी पतझर या फिर बसंत
पर तुम दोनों अटल सदा से
नभ पर है साम्राज्य अनंत
तुम पर है सारा जग निर्भर
क्या होगा वरना क्या मालुम…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on February 28, 2012 at 9:30pm — 6 Comments
(1)
पीर का सागर हृदय में, मन में भारी वेदना.
अश्रु भी छलके नयन से,शून्य हो गई चेतना.
टूटता है जब हृदय, यह दशा होती सभी की.
जाने कैसे सीखते हैं, लोग दिल से खेलना. ...
(2)
वक़्त की बेवफ़ाई पर तू, आज क्यों पछता रहा.
तू भी सदा वक़्त के संग खिलवाड ही करता रहा.
वक़्त ने तो चाहा हमेशा संग लेकर तुझको चलना,
आलसी बन तू ही बैठा, वक़्त तो चलता रहा. .
.
- प्रदीप बहुगुणा दर्पण
Added by Pradeep Bahuguna Darpan on February 28, 2012 at 10:30am — 3 Comments
दोहे सुनकर जीत के, मन को लेंगे जीत.
प्रेम मिलेगा आपको, साथ निभाए प्रीत..
सोमवार में पूज्य हैं, हम सबके शिवनाथ.
मंगल जो सुमिरन करे, बजरंगी हों साथ.
बुद्ध दिनों में शुद्ध अति, मिले त्याग उपदेश.
गुरु को गुरु पूजन करें, दूर रहें सब क्लेश..
शुक्रवार को साधिए, मन में हो संतोष.
शनि पूजन शनिवार जो, मिटे तभी सब दोष.
मन प्रसन्न रविवार को, सुख मिलता भरपूर.
सूर्य देव की हो कृपा, कष्ट सभी हों…
ContinueAdded by Jeet Gaurav Awasthi on February 27, 2012 at 5:00pm — 2 Comments
आह देशभक्त की है आह एक पितृ की है ,
Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on February 27, 2012 at 12:47am — No Comments
गोपी गीत दोहानुवाद
संजीव 'सलिल'
*
श्रीमदभागवत दशम स्कंध के इक्तीसवें अध्याय में वर्णित पावन गोपी गीत का भावानुवाद प्रस्तुत है.
धन्य-धन्य है बृज धरा, हुए अवतरित श्याम.
बसीं इंदिरा, खोजते नयन, दरश दो श्याम..
जय प्रियतम घनश्याम की, काटें कटें न रात.
खोज-खोज हारे तुम्हें, कहाँ खो गये तात??
हम भक्तन तुम बिन नहीं, रातें सकें गुजार.
खोज रहीं सर्वत्र हम, दर्शन दो बलिहार..
कमल सरोवर…
Added by sanjiv verma 'salil' on February 26, 2012 at 12:02pm — No Comments
जन्मदिन पर .
तुमनें दी
शुभकामनाएं
कुछ की
प्रभु से प्रार्थनाएं .
सोचता हूँ
तुम्हें आभार दूँ
या दिल की
गहराइयों से चलकर
रूह के धरातल पर
उबलते , उफनते
विचार दूँ ?
क्या बता दूँ ?
की मैं क्यों
हो जाता हूँ उदास
क्यों बस
एक ही एहसास
मुझे कर जाता है
अंतर से बदहवास
हर साल
जब देती हो तुम
कुछ सपनों में ढाल
प्रेम से बुना
दिल से…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on February 25, 2012 at 5:30pm — 2 Comments
सुनो राजन !
तुम्हे राजा बनाया है हमीं ने !
और अब हम ही खड़े है
हाथ बांधे
सर झुकाए
सामने अट्टालिकाओं के तुम्हारे !
जिस अटारी पर खड़े हो
सभ्यता की ,
तुम कथित आदर्श बनकर ,
जिन कंगूरों पर
तुम्हारे नाम का झंडा गड़ा है ,
उस महल की नींव देखो !
क्षत-विक्षत लाशें पड़ी है
हम निरीहों के अधूरे ख्वाहिशों की ,
और दीवारें बनी है
ईंट से हैवानियत की !
है तेरे संबोधनों में दब…
ContinueAdded by Arun Sri on February 25, 2012 at 10:55am — 6 Comments
लघु कथा
अरे भाई हँसमुख जी, आज क्यूँ उदास हो, क्या हुआ ? क्या बताऊँ मैं आज बहुत परेशां हूँ, आप ही बताओ आप को कैसा लगेगा यह जान कर कि आप जिस घर में पिछले दस साल से अकेले रहते हो, उसमे आप के अलावा कोई और भी अचानक आकर रहने लगे !! कल रात कुछ लोग अचानक मेरे घर में मेरे ही सामने मेरे घर में डेरा डाल कर बैठ गए और अपना आधिपत्य जताने लगे और मैं कुछ न कर सका | जी में तो आया कि एक एक को उठाकर फेंक दूं पर क्या करे हमारी भी कुछ अपनी…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 25, 2012 at 10:00am — 14 Comments
माना की बहूत दर्द है आज हमारे सीने में,
पर महज तड़प से नहीं बदलेगी,हालात दोस्तों,
कुछ ना पावोगे उम्मीदों की महफ़िल सजाने से,
जब तक हो ना उसपे अमल की बरसात दोस्तों.
कल का चेहरा दुनिया में देखा है किसने अबतक,
जो भी करना है कर दो…
Added by Noorain Ansari on February 24, 2012 at 6:30pm — 2 Comments
माँ को महसूस करती हूँ उनके अंदर ही,
जब दुनिया मे आऊँगी, मुझसे मिलने पापा आओगे न।
दिन भर आपका रास्ता देखती हूँ मै,
शाम को आकर मुझे अपनी बाहों का झूला, पापा झूलाओगे न।
आपके संरक्षण मे खुद को सुरक्षित महसूस करती हूँ मै,
यूं ही पूरा जीवन मुझे सुरक्षित महसूस, पापा कराओगे न।
छोड़ के अपना प्यारा आँगन,किसी और का घर सजाना हैं,
बेटी से बहू बनने तक का सफर पापा पूरा कराओगे न।
Added by Vasudha Nigam on February 24, 2012 at 5:52pm — 1 Comment
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