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''चंदा तुम रूठ ना जाना''

कोई सूरज की तारीफ करे तो      

चंदा तुम ना होना गुमसुम l  

 

सूरज की साँसों की गर्मी 

करती है भू का उर्वर तन    

और तुमसे शीतलता पाकर      

कन-कन में होता परिवर्तन

है दोनों की ही हमें जरूरत  

धरती पर मुस्काना दोनों तुम l

 

मौसम के कई रूप बदलते 

कभी पतझर या फिर बसंत 

पर तुम दोनों अटल सदा से   

नभ पर है साम्राज्य अनंत

तुम पर है सारा जग निर्भर   

क्या होगा वरना क्या मालुम l

 

निशा जभी फैलाये आँचल   

है रजत चाँदनी देती ताल

भोर की आभा जब आती है   

किरणें भू पर फैलातीं जाल 

संझा होते ही क्षितिज पार

जैसे घुल जाता है कुमकुम l

 

कोई सूरज की तारीफ करे तो     

चंदा तुम ना होना गुमसुम l  

-शन्नो अग्रवाल   
 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 9, 2012 at 8:33am

       वाह शन्नो जी प्रकृति का कितना सुन्दर रूप दिखाया आपने| सच में सूरज चाँद दोनों ही का स्थान  और निपुणता बराबर है इस लोक में|

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2012 at 12:48am

मौसम के कई रूप बदलते 

कभी पतझर या फिर बसंत 

पर तुम दोनों अटल सदा से   

नभ पर है साम्राज्य अनंत..

रूठ न जाना हे चंदा तुम 

सदा चमकते रहना 
पलक पांवड़े बैठे रहना 
सदा दमकते रहना 
सुन्दर ....जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 
भ्रमर का दर्द और दर्पण 

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 3, 2012 at 10:23am

बहुत सुन्दर रचना आदरणीया शन्नो जी, बधाई स्वीकार करें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2012 at 8:04am

sooraj aur chaand dono ka hi barabar mahatv hota hai jeevan me bhaavon ko darshati sundar rachna.

Comment by Shanno Aggarwal on March 1, 2012 at 1:10am

आभारी हूँ आपकी, सौरभ जी. रचना पढ़ने व पसंद करने का अत्यंत धन्यबाद.  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 1, 2012 at 12:27am

शन्नोजी,  इस रचना पर साधुवाद.  बधाई है.

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