Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2012 at 2:46pm — No Comments
हवा की कोई आवाज नहीं होती,
आवाज तो पेड-पौधों के पत्तों की होती है।
हवा तो चलती है
सब से मिलती है
सबसे बात भी करती है
फिर भी बोलती नहीं
सबको गुदगुदाती है,
हंसाती है,
और थपथपा कर दौड जाती है।
अकेली हो कर भी सबकी हो जाती है।
अगर तुम नाराज़ भी हो जाओ
तुम्हें झट से मना लेती है
और तुम तपाक से मान जाते हो।
लेकिन फिर भी हवा की कोई आवाज नहीं होती
आवाज आपकी होती है।
नाम आपका होता है।
काम हवा…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on August 17, 2012 at 10:22pm — 2 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 17, 2012 at 9:13pm — 2 Comments
Added by Rekha Joshi on August 17, 2012 at 9:06pm — No Comments
Added by Dr.Prachi Singh on August 17, 2012 at 7:14pm — 6 Comments
सांस चली जाती है।
क्योंकि सांस चलती है।
आत्मा चहुँ ओर व्याप्त है।
आत्मा नहीं मरती।
जीवन भी नहीं मरता।
जीवन चलता रहता है।
जीवन नहीं मरता।
जीवन नहीं बीतता।
मैं मर गया,तो जीवन थोडे ही मर जाएगा।
जीवन आत्मा स्वरूप है।
दुबारा कहूँ तो
परमात्मा स्वरूप है।
जीवन नहीं बीतता।
-----------------सूबे सिंह सुजान..............
Added by सूबे सिंह सुजान on August 17, 2012 at 5:51pm — 3 Comments
हिमालय की मौन आँखों में
शान्त माहौल के परिवेश में
कुछ प्रश्नों को देखा है मैंने ।
खड़ा तो है अडिग पर
उसके माथे की सलवटों पर
थकावट के अंशों को देखा है मैंने ।
प्रताड़ित होता है वो तो क्यों ?
नहीं समझते हो तुम
क्रोधित हो वो कैसे हिला दे
धरती को ये देखा है मैंने ।
जब बहती हुयी पवन कुछ
कहकर पैगाम सुनाती है तो
पैगाम -ए - दर्द को छलकते
धरती पर बहते देखा है मैंने ।
कभी ज्वाला सा जल जाता है …
Added by deepti sharma on August 17, 2012 at 2:00pm — 9 Comments
जब भी कोई संविधान की सीमा लांघता है ,
गाँधी-नेहरु का देश जवाब मांगता है !
पूछता है क्यों सत्य का गला रुंध है ?
क्यों न्याय पर छा रही अन्याय की धुंध है ?
क्यों लुटती नारी आज यहाँ ,क्यों पौरुष खाक छानता है ?
जब भी कोई संविधान की सीमा लांघता है ,
गाँधी-नेहरु का देश जवाब मांगता है !
क्यों कन्या भ्रूण हत्याएं होती है ?
क्यों अबलायें रोती है ?
क्यों पग पग पर मौत की घाटी है ?
क्यों सत्य अहिंसा पर मिलती लाठी है ?
लोकतंत्र का प्रहरी क्यों दर दर…
Added by Naval Kishor Soni on August 17, 2012 at 1:30pm — 6 Comments
हे वनराज ! तुम निंदनीय हो !
अक्षम हो प्रजारक्षा में,
असमर्थ हो हमारी प्राचीन
गौरवपूर्ण विरासत सँभालने में ;
आक्रांता लाँघ रहे हैं सीमायें,
नित्य कर रहे हैं अतिक्रमण
हमारी भावनाओं का,…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 17, 2012 at 1:16pm — 6 Comments
यह कैसी आज़ादी है , यह कैसी आज़ादी है ?
भ्रष्टाचार और मंहगाई ने सबकी नींद उड़ा दी है ?
कुछ लोग हुए आबाद ,भूखों मरती आबादी है !
यह कैसी आज़ादी है , यह कैसी आज़ादी है ?
संविधान के बाहर जाकर औकात दिखादी है !
संविधान के मूल्यों की बलि आज चढ़ा दी है…
Added by Naval Kishor Soni on August 17, 2012 at 1:00pm — 1 Comment
बुनियादें मज़बूत हों , सुदृढ़ रहे मकान.
Added by AVINASH S BAGDE on August 17, 2012 at 12:15pm — 6 Comments
मोहे मिला था सब कुछ लेकिन सब कुछ छूटा जाए
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 17, 2012 at 11:00am — 4 Comments
आज़ादी
मेरे देश की आज़ादी
चीख रही थी
लाउड स्पीकर से
ऐ मेरे वतन के लोगो
ऐ मेरे प्यारे वतन
बहरे सुन रहे थे
गूंगे गुनगुना रहे थे
अंधे देख देख विश्मित हो रहे थे
लाल लाल शोलों से घिरा
एक दरख्त
कुछ लोग चढ़े हुए
हरे नीले पीले लाल
हाँ लाल लाल लाल
उस काले से दरख्त पे
सुर्ख लाल पत्ते
जिनकी नोंको से टपक रही थी
शराब सी शबनम
टप टप- टप टप
घेरा डाले बैठे से
बाज़ चील कौए
डाल डाल…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 17, 2012 at 9:57am — 2 Comments
संवेदनाओं की गहरी
-जड़ों पे टिके
अभिव्यक्ति के विशाल वृक्ष पे
भावनाओं की विस्तृत साखें
स्मृतियों के हरे भरे सब्ज पत्ते
आशाओं की उद्दीप्त नवल कोपल
और लटकते हैं
कडवे मीठे शब्द
कच्चे ,अध् पके ,अध् कच्चे
और कभी कभी पके शब्द
नीम नीम
या
शहद शहद
लज्ज़त लेने को
चख लेता हूँ
शब्द शब्द
अभिव्यक्ति के दरख्त पे
शब्द शब्द
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 17, 2012 at 9:21am — 4 Comments
एक अपार प्रसन्नता जो इस मंच के कारण मिली, उसे अन्य सोशल साइट्स के मित्रों से साझा कर शुभकामनाएँ लेते हुए आज ओबीओ के सदस्यों और पाठकों से भी साझा कर आशीर्वाद ले रहा हूँ.
मेरी हास्य रचना ’..और मैं कवि बन गया’ को ओबीओ प्रबन्धन और प्रधान सम्पादक द्वारा माह अप्रैल’12 की सर्वश्रेष्ठ रचना घोषित की गयी थी. इसका सर्टिफिकेट तथा पुरस्कार राशि का चेक प्राप्त हुआ. मेरे रचना-प्रयास को मान देने के लिये ओबीओ के सभी सदस्यों और प्रायोजक को मेरा प्रणाम.
ओबीओ मंच द्वारा इस उत्साहवर्धन के लिये…
ContinueAdded by Shubhranshu Pandey on August 17, 2012 at 9:00am — 5 Comments
पहले से ही त्रस्त हैं, सीधे सादे लोग
मत फैलाओ भाइयो, अफवाहों का रोग
जन जन आशंकित हुआ, नख से लेकर केश
अफवाहों की आँच में, झुलस न जाये देश
देश हमारा ताज है, देशधर्म सरताज
जब तक इसकी लाज है, तब तक अपनी लाज
किसके सिर में चल रही, हिंसा की खुजलाट
मुझको गर दिख जाये वो, मारूँ उसे चमाट
कर्णाटक हो या असम, चाहे महाराष्ट्र
एक हमारी भावना, एक हमारा राष्ट्र
बीज न बोयें द्वेष का, रखिये मन में नेह
आपस में…
Added by Albela Khatri on August 17, 2012 at 1:30am — 23 Comments
मेरे प्यारे मित्रो ! आपको यह जानकार ख़ुशी होगी कि "ओपन बुक्सऑन लाइन" द्वारा आयोजित "चित्र से काव्य तक " प्रतियोगिता में मेरी प्रविष्टि को प्रथम पुरस्कार मिला है . साथ ही "ओपन बुक्स ऑन लाइन" द्वारा मुझे जुलाई 2012 के लिए महीने का सक्रिय सदस्य घोषित करके पुरस्कृत किया गया है . आज ही प्रमाण-पत्र और रुपये 2100 का ड्राफ्ट प्राप्त हुआ है . इस ख़ुश खबर को आपके साथ सांझा कर रहा हूँ......आपकी दुआ से आज मैं ख़ूब प्रसन्न हूँ.....
दो दो पुरस्कार एक साथ मिलने की बात ही अलग है…
Added by Albela Khatri on August 16, 2012 at 9:30pm — 31 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 16, 2012 at 3:40pm — 2 Comments
तुम्हारे क़दमों के नीचे
सूखे हुए पत्तों की
चरमराहट ने भेज दिया
संदेसा,
छुप गई
मृगनयनी कोमल
लताओं की ओट में
अपलक निहारने लगी
तुम्हारा ओजपूर्ण लावण्य
काँधे पर तरकश
हाथ में तीर लेकर
ढूंढ रहे थे तुम अपना
शिकार
दरख़्त से
लिपटी हुई लताओं
के खिसकने की
आवाज के साथ
तुमने कुछ खिलखिलाहट
महसूस की
तुमने झाँक कर देखा
ढलते हुए सूरज की
सुर्ख लाल किरणों के
तीर उसकी आँखों को बींध…
Added by rajesh kumari on August 16, 2012 at 2:30pm — 15 Comments
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