मूक हो गई
रांगा माटी
नीरव नभ
अनुनाद
रम्य तपोवन
गुमशुम-गुमशुम
झर गए पारिजात
कासर घंटे
ढाक सोचते
ढूंढ रहे
वह नाद
भरे-भरे मन
प्राण समेटे
भींगे सारी रात
कमल-कुमुदिनी
मौन मुखर हैं
कहां भ्रमर
कहां दाद
पंकिल पथ पर
हवा पूछती
कैसे ये संघात
जाओ अपने
देश को पाती
यह पता
कहां आबाद
अपनी…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on November 2, 2012 at 1:28pm — 3 Comments
विवाह : एक दृष्टि
द्वैत मिटा अद्वैत वर...
संजीव 'सलिल'
*
रक्त-शुद्धि सिद्धांत है, त्याज्य- कहे विज्ञान।
रोग आनुवंशिक बढ़ें, जिनका नहीं निदान।।
पितृ-वंश में पीढ़ियाँ, सात मानिये त्याज्य।
मातृ-वंश में पीढ़ियाँ, पाँच नहीं अनुराग्य।।
नीति:पिताक्षर-मिताक्षर, वैज्ञानिक सिद्धांत।
नहीं मानकर मिट रहे, असमय ही दिग्भ्रांत।।
सहपाठी गुरु-बहिन या, गुरु-भाई भी वर्ज्य।
समस्थान संबंध से, कम होता सुख-सर्ज्य।।
अल्ल गोत्र कुल आँकना, सुविचारित…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 2, 2012 at 11:08am — 3 Comments
गीत:
समाधित रहो ....
संजीव 'सलिल'
+
चाँद ने जब किया चाँदनी दे नमन,
कब कहा है उसी का क्षितिज भू गगन।
दे रहा झूमकर सृष्टि को रूप नव-
कह रहा देव की भेंट ले अंजुमन।।
जो जताते हैं हक वे न सच जानते,
जानते भी अगर तो नहीं मानते।
'स्व' करें 'सर्व' को चाह जिनमें पली-
रार सच से सदा वे रहे ठानते।।
दिन दिनेशी कहें, जल मगर सर्वहित,
मौन राकेश दे, शांति सबको अमित।
राहु-केतु ग्रसें, पंथ फिर भी न तज-
बाँटता रौशनी, दीप होता…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 2, 2012 at 10:06am — 8 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on November 1, 2012 at 8:26pm — 10 Comments
नीला नभ
फिर निखर गया
लौट चले
बादल के यूप
कच्चे गुड़ की
गंध समेटे
नाच रही
मायावी धूप
खिलखिल करती
कास की पंगत
कासर घंटे
अगरू धूप
फुदक रही
फिर से गौरैया
माटी सोना
चांदी धूप
Added by राजेश 'मृदु' on November 1, 2012 at 5:00pm — No Comments
उस कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है ! मंगल बाहर उत्सुक सा चहलकदमी कर रहा है ! कमरे से कुछ औरतों के बोलने की, और बीच-बीच में एक औरत के चींखने की आवाज आ रही है ! ये सब झूमरी के प्रसव का आयोजन है !...................कुछ समय बाद ! “केहाँ...केहाँ...केहाँ !” बच्चे के रोने की आवाज हुई ! अब मंगल बेचैन हो उठा ! कि तभी कमरे का दरवाजा खुला, और रामधुनी काकी बाहर निकलीं !
“के हुवा काकी?” मंगल ने पूछा !…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on November 1, 2012 at 3:30pm — 10 Comments
Added by shikha kaushik on November 1, 2012 at 2:00pm — 4 Comments
मेरे घर में आँगन नहीं है,
देहरी और दहलीज नहीं है ,
दरवाजे से सांखल गायब ,
दस्तक देती तहजीब नहीं है ,
मेरा घर पत्थरों के शहर में बसता है
|
मेरे घर की पास की गलियां ,
जब तब रोतीं हैं बिन घूँघट के,
किसी के आने की उम्मीद लगाये,
रात को भी ये जागती रहती हैं ,
मेरा घर पत्थरों के शहर में बसता है
वर्तमान को पोषित करती भर्मित…
ContinueAdded by Er.vir parkash panchal on November 1, 2012 at 11:30am — 4 Comments
नज़र से उसकी नज़र मिल गयी
Added by Ranveer Pratap Singh on October 31, 2012 at 11:00pm — 2 Comments
अनायास
तरंगित कल्मषों
बेचैन बुदबुदों के आवर्त से दूर
किसी निविड़ एकांत में
जब समस्त दिशाएं खो चुकी हों
अपनी पगध्वनि
सारे पदक्षेप
और तिरोहित हो चुके हों
निष्ठुर विमर्श के सारे आर्तनाद,
अपनी सारी भभक सारी तपिश
और साथ लेकर अपने
सारे चटकीले रंग
आना तुम भी
बस एक बार…
Added by राजेश 'मृदु' on October 31, 2012 at 4:30pm — 5 Comments
रक्त से सनी
भूमि
सुर्ख नहीं
हरी भरी
फलती फूलती
कलकल निनाद से
बहती श्वेत धारा
धो डालती है
सारे पाप
गंगा…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 31, 2012 at 4:00pm — 4 Comments
करवा चौथ -एक सत्य कथा (हास्य व्यंग) लघु कथा
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 31, 2012 at 3:56pm — 4 Comments
बावरिया हो भागती, सजनी ज्यों पिय ओर l
दीवानी मीरा बनी, थाम कन्हैया डोर ll
थाम कन्हैया डोर, प्रेम में सुध बुध हारी l
मोहबंध सब त्याग, पुकारूँ बस गिरधारी ll
प्राण भक्ति में लीन, ओढ़ चूनर केसरिया l
प्रभु संग मधुर मिलन, हुई…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 31, 2012 at 3:07pm — 16 Comments
दिन ऐसे गुज़र जाते है जैसे हाथ से ताश के पत्ते. देखते देखते महोसालोदहाई सर्फ़ हो गए, कहाँ गए सब? ज़िंदगी में जो बीत गया, किधर चला चला गया? जो लोग अब नहीं हैं तकारुब में और जिनके मख्फी साये ही ज़हन में आते जाते हैं, वो कहाँ हैं अभी? ख्वाहिशों से भी मुलायम सपने जो कभी पूरे नहीं हुए, उदासियों सी भी तन्हा कोई राहगुज़र जो कभी मंजिल तक न पहुँच पाई, दिल की सोजिशों से भी रंजीदा इक नज़र जो झुक गई मायूसियों के बोझ तले- क्या हुआ उनका?
तुम्हारे गाँव का वो खाली खाली घर जहाँ बसी है आईने के…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 31, 2012 at 9:03am — 6 Comments
गुण-सूत्रों की विविधता, बहुत जरूरी चीज |
गोत्रज में कैसे मिलें, रखिये सतत तमीज ||
गोत्रज दुल्हन जनमती, एकल-सूत्री रोग |
दैहिक सुख की लालसा, बेबस संतति भोग ||
नहीं चिकित्सा शास्त्र में, इसका दिखे उपाय |
गोत्रज जोड़ी अनवरत, संतति का सुख खाय ||
गोत्रज शादी को भले, भरसक दीजे टाल |
मंजूरी करती खड़े, टेढ़े बड़े सवाल ||
परिजन लेवे गोद जो, कर दे कन्या-दान |
उल्टा हाथ घुमाय के, खींचें सीधे कान ||
मिटते दारुण दोष पर, ईश्वर अगर सहाय |
सबसे…
Added by रविकर on October 31, 2012 at 8:48am — 5 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2012 at 9:30pm — No Comments
मै भी अभी जिन्दा हूँ !!
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तीव्र झोंके ने पर्दा उड़ा दिया
सारे बाज -इकट्ठे दिखा दिया
चालबाज, कबूतरबाज , दगाबाज
अधनंगे कुछ कपडे पहनने में लगे
दाग-धब्बे -कालिख लीपापोती में जुटे
माइक ले बरगलाने नेता जी आये
जोकर से दांत दिखा हँसे बतियाये
“ये मंच अब हमारा है” खेती…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 30, 2012 at 8:51pm — 13 Comments
कुछ विपत्तियों के चलते में मुशायरे में वक़्त नहीं दे पाया इसके लिए सभी अग्रजों गुरुजनों और सदस्यों से क्षमा चाहता हूँ आशा है अनुज को क्षमा करेंगे
आज कुछ उबरा तो सोचा कुछ लिखूं
हर काम निराला माँ लगता है कहानी है
दुर्गा है तू ही काली माँ आदि भवानी है
दिन रात भरा रहता दरबार ये मैया का…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 30, 2012 at 7:04pm — 4 Comments
सूखती नदी
उजड़ते मकान
अपना गाँव
कैसा विकास
लोगों की भेड़ चाल
सुख न शांति
गाँवों में बसा
नदियों वाला देश
पुरानी बात
सूखती नदी
बढ़ता गंदा नाला
मेरा शहर
बिका सम्मान
क्या खेत खलिहान
दुखी किसान
लोग बेहाल
गिरवी जायदाद
कहाँ ठिकाना
सड़े अनाज
जनता है लाचार
सोये सरकार
Added by नादिर ख़ान on October 30, 2012 at 6:00pm — 3 Comments
सबका अस्तिव और अहसास
हृदय में जगाता
श्रद्धा, आशा और विश्वास
मीठे स्वर का पान कर
स्वर्ग ले आता भू धरा पर
बिना शर्त के बिना नियम के
संचालित कर हर डगर को
सुब्द्ता से मुक्त कर
मार्ग देता सुगम बना
अंतर्मनो को जोड़ने का
प्रेम करता है प्रयास
मित्र को शत्रु, शत्रु को मित्र
गैर को अपना, अपने को गैर
फूल माला सी डोर बना
राग, द्वेष…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on October 30, 2012 at 3:12pm — 2 Comments
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