पावापुरी में राजा हस्तिपाल की रज्जुक सभा में प्रभु महावीर की अन्तिम अनुत्तर पावन दिव्य देशना - सम्पूर्ण जीव जगत को अभय प्रदान करती विश्व कल्याणकारी, अमृत प्रदायिनी वाणी का पान अवश्य करें | दीपावली के ,प्रभु महावीर के निर्वाण कल्याणक की पावन वेला के इस शुभ अवसर पर हम हमारे मन में उजाला भरें | आओ ! प्रकाश की ओर चलें |
Added by mohinichordia on November 13, 2012 at 5:00pm — 4 Comments
अमन के दीप जलाओ बहुत अंधेरा है
चलो दिवाली मनाओ बहुत अंधेरा है।।
समस्त विश्व में घनघोर रात छाई है,
सितारों चाँद बुलाओ बहुत अंधेरा है।।
Added by सूबे सिंह सुजान on November 13, 2012 at 2:38pm — 2 Comments
कुहनी तक देखो कुम्हार के
फिर से हाथ सने
फिर से चढ़ी चाक पर मिट्टी
फिर से दीप बने
बंद हो गई सिसकी जो
आँगन में रहती थी
परती पड़ी जमीन…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on November 13, 2012 at 11:24am — 6 Comments
तेरा था कुछ और न मेरा था
दुनिया का बाज़ार लगा था
मेरे घर में आग लगी जब
तेरा घर भी साथ जला था
अपना हो या हो वो पराया
सबके दिल में चोर छिपा था
तुम भी सोचो मै भी सोचूँ
क्यों अपनों में शोर मचा था
टोपी - पगड़ी बाँट रहे थे
खूँ का सब में दाग लगा था
मै भी तेरे पास नहीं था
तू भी मुझसे दूर खड़ा था
Added by नादिर ख़ान on November 12, 2012 at 11:17pm — 1 Comment
प्रकाश रात खिली है हृदय पटल को खोल
संदेश सबको यही है कि जिंदगी अनमोल।।
Added by सूबे सिंह सुजान on November 12, 2012 at 10:20pm — 1 Comment
बीत गया भीगा चौमासा । उर्वर धरती बढती आशा ।
त्योहारों का मौसम आये। सेठ अशर्फी लाल भुलाए ।|
विघ्नविनाशक गणपति देवा। लडुवन का कर रहे कलेवा
माँ दुर्गे नवरात्रि आये । धूम धाम से देश मनाये ।
विजया बीती करवा आया । पत्नी भूखी गिफ्ट थमाया ।
जमा जुआड़ी चौसर ताशा । फेंके पाशा बदली भाषा ।।
एकादशी रमा की आई । वीणा बाग़-द्वादशी गाई ।
धनतेरस को धातु खरीदें । नई नई जागी उम्मीदें ।
धन्वन्तरि की जय जय बोले । तन मन बुद्धि निरोगी होले ।
काली पूजा बंगाली की ।…
Added by रविकर on November 12, 2012 at 5:17pm — 3 Comments
Added by Shubhranshu Pandey on November 12, 2012 at 4:15pm — 9 Comments
बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२
रह गया ठूँठ, कहाँ अब वो शजर बाकी है
अब तो शोलों को ही होनी ये खबर बाकी है
है चुभन तेज बड़ी, रो नहीं सकता फिर भी
मेरी आँखों में कहीं रेत का घर बाकी है
रात कुछ ओस क्या मरुथल में गिरी, अब दिन भर
आँधियाँ आग की कहती हैं कसर बाकी है
तेरी आँखों के समंदर में ही दम टूट गया
पार करना अभी जुल्फों का भँवर बाकी है
तू कहीं खुद भी न मर जाए सनम चाट इसे
आ मेरे पास तेरे लब पे…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 12, 2012 at 2:21pm — 33 Comments
दीपावली लो आ गई है, शोभते सुन्दर दिये।
श्रीराम का जयपर्व ये है, भाग्य पाने के लिये॥
सोहें निलय जगमग बड़े ही, दिव्य सारे चित हुए।
लक्ष्मी-गजानन को सभी ही, पूजके हर्षित हुए॥
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 12, 2012 at 11:33am — 4 Comments
दीप-ज्यौति के पावन पर्व पर
मुझको, माँ लक्ष्मी ऐसा वर दे |
उज्जवल वस्त्र, सुरभित तन-मन,
सुगन्धित मधुवन सा घर-आँगन दे |
सरस-मलाई मधुमय-व्यंजन दे |
तिमिर छट जाये जीवन में.
जीवन ज्योतिर्मय हो जाये |
आगंतुक का स्वागत करने
पलक पावडे बिछे नयनों में,
दिल में अपनापन हो,
ऐसा मुझको मन-मयूर दे |
सरस्वती के साधक
"लक्ष्मण" पर माँ शारदे,
तेरा वरदहस्त रखदे ।
ध्यान करू मै तेरा और-
आनंदित करू जन-जन को,
कोकिल कंठी स्वर देकर,
मेरे मन गीतों…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 12, 2012 at 10:00am — 6 Comments
जब-जब धर्म की विजय हो,
शुभ-लाभ से भंडार भर जाये,
सुन्दर-सुन्दर रंगोलियाँ सजी हों,
अमावस की रात उजाला हो,
समझ लेना दीपावली है।
दुकानों में उत्सवी रौनक हो,
सबके यहाँ पकवान बने,
ह्रदय-ह्रदय आलोकित हो जाये,
मन-मस्तिष्क व्यथाओं से मुक्त हो,
समझ लेना दीपावली है।
गगन, हर्षध्वनि से गुंजायमान हो,
रोम-रोम आनंद से पुलकित…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 12, 2012 at 9:25am — 4 Comments
जब दीप जल उट्ठे हजारों,सज गयी हर बस्तियाँ/
हर द्वार हर आँगन सजा है,गज गयी हर बस्तियाँ/
उनके महल घर द्वार भी हैं,सम चमकती बिजलियाँ/
घृत दीप जिनके द्वार पर है,सम दमकती बिजलियाँ//१//…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on November 12, 2012 at 9:00am — 4 Comments
(७ भगड़ और अंत में दो गुरु)
मानस जो अँधियार हुवा अब नष्ट उसे निज से कर डालें !
ज्ञान कि बाति व सत्य क ईंधन से चहुँ धर्म क दीप जला…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on November 12, 2012 at 7:55am — 10 Comments
............................................................................................................
हृदय की तरल अग्नि रचती है जीवन
यहीं जन्म लेते हैं वियाग और मधुवन
क्षमा और प्रतिशोध की कैसी माया,
हृदय नभ सो उत्पन्न हो करते नर्तन।
सूबे सिहं सुजान
11.11.12
Added by सूबे सिंह सुजान on November 11, 2012 at 11:15pm — 2 Comments
शाम हो रही थी साहब घर जाने के लिए निकले और जाते जाते रामदीन को मेरी जिम्मेदारी सौंप गये. रामदीन को भी घर जाना था इसलिए उसने जल्दी से मुझे नीचे उतरा और झाड़ा झटका, अचानक मुझ पर पडी गर्द रामदीन से जा चिपकी, वह झुझला गया जैसे उसके शरीर पर धूल न चिपक गई हो बल्कि उसकी आत्मा से ईमानदारी जा चिपकी हो. उसने तुरंत अपने गमछे से सारे शरीर को झाड़ा और एक बार आईने में भी देख आया, उसे लग रहा था जैसे इमानदारी अब भी उससे चिपकी रह गई है. उसने मुझे तह किया और अलमारी में रख…
Added by वीनस केसरी on November 11, 2012 at 10:25pm — 10 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 10, 2012 at 5:24pm — 1 Comment
आओ मिलकर दीप जलाये
दीप, लड़ियों से घर सजा
हर तरह का तम मिटा
जग को प्रकाश की सौगात दिलाये
आओ मिलकर दीप जलाये
प्रेम की ज्योति जला के हृदय
बैर से मुक्ति, जग दिलाये
उपहार में बाँट के सदभावना
मीठास की ऐसी रीत चलाये
आओ मिलकर दीप जलाये
क्रोध अग्नि को विजित कर
सयंम में खुद नियंत्रित कर
विन्रमता का सबको पाठ पढाये
देश में प्रेम की लहर चलाये
आओ मिलकर दीप…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 10, 2012 at 12:10pm — 4 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 10, 2012 at 11:33am — 3 Comments
दास्ताँ है यें जीव की
वस्त्र ढ़के, मृत शरीर की
वृद्ध होते ही छोड़ चलें
नींव लिखने, नई तकदीर की
प्रीती जाती जब, हृदय जग
दो तनो कर, एक मन
बीज से जाता पराग बन
भू धरा पर ले जन्म
पंचतत्वो का कर संगम
पाया जग में मानव तन
शिशु से किशोर तक
रूप बनाया मन भावन
अटखेलियाँ कर कर के
हर्षित करता सबका मन
शिक्षा का वो कर अध्ययन
ज्ञान से करता जग रोशन
अध्यन का समय हुआ…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 9, 2012 at 5:32pm — 2 Comments
यूं तो हमारे देश में कई क्रांतिकारी कई देशभक्त आये| कोई नोटों तक पहुंचा कोई गुमनामी में खो गया, किसी को चर्चे मिले कोई किताबों में सो गया| मगर उन्होंने अपना कर्तव्य कभी नहीं छोड़ा, आजादी के बाद भी अनेक क्रांतिकारी यदा-कदा देश में आते-जाते रहे| जब-जब शासन अपनी शक्तियों और कर्तव्य को भुला कर कुछ भी करने में अक्षम रहा, वे देशभक्त उन्हें कर्तव्य बोध कराते रहे|
ऐसा ही कर्तव्य बोध हाल ही में हमारे देश के एक वीर क्रांतिकारी द्वारा सरकार को कराया गया| ये वीर कोई और नही बल्कि परम साहसी, अत्यंत…
Added by Pushyamitra Upadhyay on November 9, 2012 at 4:10pm — 7 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |