Added by Bhasker Agrawal on December 30, 2010 at 12:42pm — 6 Comments
Added by Ratnesh Raman Pathak on December 30, 2010 at 12:38pm — No Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2010 at 10:10am — 3 Comments
बिदाई गीत:
अलविदा दो हजार दस...
संजीव 'सलिल'
*
अलविदा दो हजार दस
स्थितियों पर
कभी चला बस
कभी हुए बेबस.
अलविदा दो हजार दस...
*
तंत्र ने लोक को कुचल
लोभ को आराधा.
गण पर गन का
आतंक रहा अबाधा.
सियासत ने सिर्फ
स्वार्थ को साधा.
होकर भी आउट, न हुआ
भ्रष्टाचार पगबाधा.
बहुत कस लिया
अब और न कस.
अलविदा दो हजार दस...
*
लगता ही नहीं, यही है
वीर…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2010 at 9:44am — 2 Comments
कैसी हो तुम?
वैसी ही शांत, संयमित और अपने को सहेजते हुए I
भाग्यशाली है वह,
जो तुम्हारे साथ है
और सुन सकता है
तुम्हारे मौन द्वारा पुकारे उसके नाम को I
भाग्यशाली है वो हवा,
जो अभी बहुत हल्के से
किरणों के बावजूद तुम्हे छूकर गई है I
भाग्यशाली है वो जल,
जो छोड़े जाने से पूर्व
तुम्हारी अंजलि में कुछ देर रुककर
तुम्हारे हाथों का स्पर्श पाता है I
भाग्यशाली हैं वो कभी कभी कहे गये…
ContinueAdded by Veerendra Jain on December 29, 2010 at 5:30pm — 10 Comments
Added by satish mapatpuri on December 29, 2010 at 3:00pm — 3 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on December 29, 2010 at 1:30pm — 4 Comments
Added by Bhasker Agrawal on December 29, 2010 at 12:44pm — 4 Comments
ग़ज़ल
अज़ीज़ बेलगामी
मेरा असासा सुलगता हुवा मकाँ है अभी
अगरचे आग बुझी है धुवाँ धुवाँ है अभी
यकीं की शम्मा जलाता रहा हूँ सदियौं…
ContinueAdded by Azeez Belgaumi on December 29, 2010 at 10:53am — 3 Comments
मिटटी ...
नर्म होती है
जब गीली होती है
पक जाती है वह
जब आग पर
रंग ,रूप आकार नहीं बदलती //
बांस ...
जब कच्चा होता है
जिधर चाहो ,मोड़ दो
पक जाने पर
नहीं मुड़ेगा //
आदमी ...
कब पकेगा
मिटटी की तरह
बांस की तरह
शायद कभी नहीं क्योकि
दिल तो बच्चा है जी //…
Added by baban pandey on December 28, 2010 at 11:00am — 2 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on December 27, 2010 at 11:54pm — 4 Comments
Added by sanjeev sameer on December 27, 2010 at 10:08pm — No Comments
Added by rajkumar sahu on December 27, 2010 at 3:37pm — No Comments
मैं कौन हूँ?
ये सोच कर ,
विचार कर ,
परेशान हो गया ,
मेरी सोचने की क्षमता,
बेकार हो गई !
मैं कौन हूँ ?
मन बोला मैं पंडित ,
मेरी बातो में दम हैं ,
इस धरती पर ,
सबसे बुद्धिशाली ,
मैं सबसे गुणी ,
मगर जो ,
हश्र रावण का हुआ ,
वो सोच मैं बेजार हो गया !
मैं कौन हूँ ?
मगर मन भटकता रहा ,
अपने बल पे गरूर था ,
डरते हैं लोग सारे ,
अच्छो अच्छो को ,
पस्त कर डाला ,
मगर जो ,
हश्र…
Added by Rash Bihari Ravi on December 27, 2010 at 3:30pm — 14 Comments
Added by Bhasker Agrawal on December 27, 2010 at 8:30am — 9 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 26, 2010 at 11:25pm — 3 Comments
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