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नवगीत : प्रेम हो गया आज नमकीन

प्रेम हो गया आज नमकीन

 

खर्च सोडियम करता रहता है

अपना आवेश

पाकर उसको झटक रही क्लोरीन

खुशी से केश

लेनदेन का यह आकर्षण

हुआ बड़ा रंगीन

 

कभी किया करते थे कार्बन

ऑक्सीजन साझा

प्रेम हुआ करता था मीठा तब

गुड़ से ज्यादा

ढ़ाई आखर प्रेम मिट गया

शब्द बचे हैं तीन

 

दुनिया के ज्यादातर अणु साझे

से बनते हैं

लेन देन के बंधन पानी तक

से मिटते हैं

जिस बंधन पर सृष्टि टिकी वो

लौटेगा इक दिन

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Comment

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Comment by Bhasker Agrawal on December 29, 2010 at 1:27pm
कुछ अलग पढने को मिला आपकी बदोलत..बहुत सुन्दर

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 28, 2010 at 10:43am
वाह जनाब वाह , विज्ञान की भाषा मे प्रेम की बात , यह भी खूब है .... जय हो !
Comment by Veerendra Jain on December 27, 2010 at 12:44pm

waah Dharmendra ji..this is called "Rasayanic Prem"... hahaha..

bahut hi umda...

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