ग़ज़ल
अज़ीज़ बेलगामी
मेरा असासा सुलगता हुवा मकाँ है अभी
अगरचे आग बुझी है धुवाँ धुवाँ है अभी
यकीं की शम्मा जलाता रहा हूँ सदियौं से
मेरे यकीन पे उनको गुमाँ गुमाँ है अभी
बचा लो इस्माते हुस्ने कलाम फ़नकारो
मताए फ़न का खरीदार एक जहाँ है अभी
है बर्क रेजो शररबार आसमान उधर
इधर इरादाए तामीरे आशियाँ है अभी
अज़ीज़ ताअते असलाफ छोड़ दूँ कैसे
यही तो बाइसे तसकीने क़ल्बो जाँ है अभी
असासा = जमा पूंजी, property
इस्मत = आबरू, इज्ज़त
बर्क रेज = बिजलियाँ गिराने वाला
शररबार = आग बरसाने वाला
ताअते असलाफ = अपने बुजुर्गों के पीछे चलना
Comment
मेरा असासा सुलगता हुवा मकाँ है अभी
अगरचे आग बुझी है धुवाँ धुवाँ है अभी
यकीं की शम्मा जलाता रहा हूँ सदियौं से
मेरे यकीन पे उनको गुमाँ गुमाँ है अभी bahut kamal ki gzal waah dil khush ho gya
अज़ीज़ ताअते असलाफ छोड़ दूँ कैसे
यही तो बाइसे तसकीने क़ल्बो जाँ है अभी
वाह ! अज़ीज़ जी..क्या खूब लिखा है आपने .. बधाई .
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