ग़ज़ल :- चार पैसा उसे हुआ क्या है
चार पैसा उसे हुआ क्या है
पूछता फिर रहा खुदा क्या है |
हर जगह तो यही करप्शन है
रोग बढ़ता गया दवा क्या है |
तुम ही रक्खो ये नारे वादे सब
पांच वर्षों का झुनझुना क्या है |
तेरे जाने पर अब ये…
ContinueAdded by Abhinav Arun on January 5, 2011 at 4:16pm — 12 Comments
Added by Ravi Prabhakar on January 4, 2011 at 8:30pm — 5 Comments
Added by डॉ.रूपचन्द्र मयंक on January 4, 2011 at 3:49pm — No Comments
Added by satyendr sengar on January 4, 2011 at 2:55pm — No Comments
. नव वर्ष तुम्हारा…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on January 3, 2011 at 8:46pm — No Comments
कल मैंनॆ भी सोचा था कॊई, श्रृँगारिक गीत लिखूं ,
बावरी मीरा की प्रॆम-तपस्या, राधा की प्रीत लिखूं ,…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on January 3, 2011 at 8:30pm — 3 Comments
दायरे.. ©
कुछ सवाल कुछ ज़वाबों के घेरे में , उलझा जीवनपथ..
सीमित दायरे , दरकता है जीवन उनमें पल-प्रतिपल..
दहकते दावानल, स्वप्नों का होता दोहन उनमें निरंतर..
पल-प्रतिपल , भसम् उठा ख्वाबों की भेंट चढा रहे हम..
चरणों में अर्पित करने लगे , सीमित दायरों भरा जीवन..
चरण उस पथिक के ,…
Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on January 3, 2011 at 8:18pm — 1 Comment
Added by satyendr sengar on January 3, 2011 at 2:54pm — No Comments
Added by satyendr sengar on January 3, 2011 at 2:00pm — No Comments
Added by Ravi Prabhakar on January 2, 2011 at 4:35pm — 8 Comments
ग़ज़ल:- आकर्षक चमकीले लोग
आकर्षक चमकीले लोग
केंचुल में ज़हरीले लोग |
आत्ममुग्धता की परिणति हैं
सुन्दर सुघड सजीले लोग |
भूख की आंच पे चढ़ते हैं नित
खाली पेट पतीले लोग |
झंझावाती जीवन सागर
हम शंकित रेतीले लोग |
चीर हरण करते आँखों से
कुंठाओं के टीले लोग…
ContinueAdded by Abhinav Arun on January 2, 2011 at 10:45am — 3 Comments
नब्ज़ टटोलोगे तो कोई रोग पकड़ आएगा
झूठ का रंग भी सच पर से उतर जाएगा
Added by Lata R.Ojha on January 2, 2011 at 12:00am — 1 Comment
Added by sanjiv verma 'salil' on January 1, 2011 at 8:04pm — No Comments
यह वर्ष हम सभी को हर तरह रास आये--घर घर में शांति हो हर बच्चा मुस्कुराये
Added by Hilal Badayuni on January 1, 2011 at 7:30pm — 9 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on January 1, 2011 at 1:30pm — 3 Comments
नए वर्ष के नए पटल पर
खुशियों के नए गीत सजाएँ,
नयी धरा पर सपनों के कुछ
नए नवेले बीज बिछाएं I
नव दिवस की उर्जाओं संग
न केवल नए लक्ष्य बनायें,
पुराने प्रणों…
Added by Veerendra Jain on January 1, 2011 at 12:24pm — 3 Comments
Added by Sudhir Sharma on January 1, 2011 at 2:15am — 5 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on December 31, 2010 at 10:57pm — 1 Comment
नये साल का गीत
कुछ ऐसा हो साल नया
संजीव 'सलिल'
*
कुछ ऐसा हो साल नया,
जैसा अब तक नहीं हुआ.
अमराई में मैना संग
झूमे-गाये फाग सुआ...
*
बम्बुलिया की छेड़े तान.
रात-रातभर जाग किसान.
कोई खेत न उजड़ा हो-
सूना मिले न कोई मचान.
प्यासा खुसरो रहे नहीं
गैल-गैल में मिले कुआ...
*
पनघट पर पैंजनी बजे,
बीर दिखे, भौजाई लजे.
चौपालों पर झाँझ बजा-
दास कबीरा राम भजे.…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on December 31, 2010 at 6:25pm — 1 Comment
Added by AjAy Kumar Bohat on December 31, 2010 at 6:08pm — 3 Comments
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