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मुझको   मेरा  वतन   पुर   अमन   चाहिए
तहज़ीब  अपनी   गंग   ओ  जमन  चाहिए

ये  राम  की  ज़मीन  है  गौतम  की ये ज़मीं
नानक  भी  मिलेगा  यहीं  रहमान  भी  यहीं
सब  आ  सकें  इतना  बड़ा  ज़हन  चाहिए

झगड़े   फ़साद   लूट   न  हो  मेरे देश में
या   रब  ग़रीबी  भूख  न  हो  मेरे देश में
मिल बांट  कर के  खाने  का चलन चाहिए

तुमने  बिछा  रखी  यहाँ  कितनी बड़ी चैiसर
मुहरे  बना  दिये  हमें  इस  तरहा  बाँट कर
टुकड़े   नहीं    समूचा   इक   गगन  चाहिए

क्यूं  दे  रहे  हो  गालियाँ  उस सरफ़रोश को
जिसने  दिया  आज़ाद  वतन  उसके जोश को
उसके   जोश को  तो  बस  नमन  चाहिए

जैसा  भी है   हमारा है   प्यारा है   ये वतन
सारे  जहाँ  से  अच्छा  है  न्यारा है  ये वतन
बस  इस  वतन  में  बारहा   जनम चाहिए

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