For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

दायरे.. ©

कुछ सवाल कुछ ज़वाबों के घेरे में , उलझा जीवनपथ..
सीमित दायरे , दरकता है जीवन उनमें पल-प्रतिपल..

दहकते दावानल, स्वप्नों का होता दोहन उनमें निरंतर..
पल-प्रतिपल , भसम् उठा ख्वाबों की भेंट चढा रहे हम..
चरणों में अर्पित करने लगे , सीमित दायरों भरा जीवन..
चरण उस पथिक के , जिन्हें सहेजा गया है हमारे लिए..
नाम भर का स्वप्न सा है पथिक , अनुभूत जिसे करना..
जैसे उल्लास से सुवासित जीवन , लेता विराम अचानक..

क्यूँ परवश बंधित है मानव मन , बंधन के नाम पर..?
क्यूँ बादल संग न उड़ता फिरता , बावरा ये मानव मन..?
रची-बसी चाहना , ह्रदय कोटर में वीतरागी पखेरू सम..
भरना चाहता हूँ कुलाँचें , उस हरिन सह जो मुक्तक सा है..
डाकिया आता है मेरे द्वार पर , हर दिन नयी कहानी संग..
क्यूँ नहीं कोई कहानी , है जो मुझसे शुरू या हो खतम..?

हर ख्वाब नातों की दहलीज से टकराकर होता चकनाचूर..
ज़बरन जगह बनाती नयी आदतें , बन जाती यहाँ संगी..
मस्तिष्क को दे स्वप्न-निवाला छोड़ जाये , वो आदत..
सालता है गम आदत का , कि चली ना जाये फिर कहीं..
शूल हैं भ्रम आशा भरे , पूरे होने पर यही देते है सुख..
मोडें मुख कैसे ? किसी भी पहलु से, उम्मीद भरा है जीवन..
जब कोई आस नहीं, दबे ढके क्या सच में कोई आस नहीं..?

सुगबुगाहट मस्तिष्क से , रहती निकलती है निरंतर..
संतुष्ट स्वयं को करने , खींच लेते हम कमजोर से दायरे..
रेशे से बनी वही बंदिशें , टूटने पर फंदे सा भान करातीं..
क्यूँ ना खुला छोड़ दें हम मन को , कि बनाने वाले ने..
बनाया है उसे ऐसा ही , स्वच्छंद खग सा गगन विचरता..
कौन होते हैं हम , बंदिशें के जाल उस पर लादने वाले..?

कर हसरतों को भूमिगत जिन्दा कहलाते हैं हम..
कर निर्मित नवीन गढ़ दायरों वाले चहुँ ओर हमारे..
दायरों ने कर रखा है गोल मकडजाल सा सोचों को भी..
बाँध दीना हमने सारा जीवन , बेफिजूल इन सींखचों में..

क्यूँ ना छोड़ दें उसे , मुक्त गगन में फडफडाता हुआ..?
नहीं छटपटाते रहो इन्हीं दायरों में, बेलगाम घोड़े की तरह..
और लग भी जाये कभी लगाम तो , अपने से परे हटकर..
जिए जाओ ताउम्र , और किसी के जीवन दर्शन पे चलकर...
बूढ़े होने तक सोचते फिरना क्या किया , हमने जीवन भर...
मिलेंगे ताले जड़े , दायरों की परिधि पर हर जगह...
कुछ छोटी बड़ी औलाद की खुशियों के आलावा... देखना...
क्या मेरा , क्या तुम्हारा... हश्र यहाँ , होना तो सबका यही है...

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 03 जनवरी 2011 )

Photography by :- Jogendra Singh
In this Picture :- Me.. (Jogendra Singh)
(Photo clicked by the help of mirror)
_____________________________________________

.

Views: 522

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on January 9, 2011 at 4:57pm
नवीन भईया , पता नहीं आपने क्या देख लिया वरना मैंने तो जो मन में आया लिख दिया.......!!
मन की वास्तविक स्थिति को दिखाने का यत्न भर है..........!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
16 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
16 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"सादर अभिवादन "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"स्वागतम"
yesterday
Samar kabeer replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"बहुत बहुत शुक्रिय: जनाब अमीरुद्दीन भाई आपकी महब्बतों का किन अल्फ़ाज़ में शुक्रिय:  अदा…"
Thursday
Samar kabeer replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"बहुत धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी, सलामत रहें ।"
Thursday
Samar kabeer replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"बहुत बहुत धन्यवाद भाई अशोक रक्ताले जी, सलामत रहें ।"
Thursday
Samar kabeer commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"//मुहतरम समर कबीर साहिब के यौम-ए-पैदाइश के अवसर पर परिमार्जन करके रचना को उस्ताद-ए-मुहतरम को नज़्र…"
Thursday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"चूंकि मुहतरम समर कबीर साहिब और अन्य सम्मानित गुणीजनों ने ग़ज़ल में शिल्पबद्ध त्रुटियों की ओर मेरा…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service