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बन्दी है आजादी अपनी, छल के कारागारों में।
मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।
नीचे से लेकर ऊपर तक, भ्रष्ट-आवरण चढ़ा हुआ,
झूठे, बे-ईमानों से है, सत्य-आचरण डरा हुआ,
दाल और चीनी भरे पड़े हैं, तहखानों आगारों में।
मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।
नेताओं की चीनी मिल हैं, नेता ही व्यापारी हैं,
खेतीहर-मजदूरों का, लुटना उनकी लाचारी हैं,
डाकू, चोर, लुटेरे बैठे, संसद और सरकारों में।
मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।
आजादी पूँजीपतियों को, आजादी सामन्तवाद को,
आजादी ऊँची-खटियों को, आजादी आतंकवाद को,
निर्धन नारों में बिकता है, गली और बाजारों में।
मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।

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