For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,939)

ग़ज़ल

122 122 122 122

जो ख्वाबों ख़यालों में खोए रहेंगे |

सहर के अँधेरे डराने लगेंगे ||1

बनोगे जो धरती के चाँद सूरज |

तो सातों फ़लक सर झुकाने लगेंगे ||2

मुहब्बत ज़माने से जो बेख़बर है |

बशर देख ताने सुनाने लगेंगे ||3

खुदा की तमन्ना जो करते चलोगे |

फ़लक के सितारे लुभाने लगेंगे ||4

हमें जिंदगी से अदावत मिली है |

इशारे हमें अब डराने लगेंगे ||5

लिखेंगे जुदाई के नगमें कभी जो |

वही तीर बन के सताने लगेंगे…

Continue

Added by Anita Bhatnagar on January 25, 2023 at 9:00am — 1 Comment

कृष्ण नहीं दरकार है भइया

ग़ज़ल

यह कैसा संसार है भइया

दीप तले अँधियार है भइया

जनता के हिस्से की रोटी

खा जाती सरकार है भइया

जाति धरम के बाद यहाँ क्या

जनमत का आधार है भइया

अधर अरुण कलियाँ धनु भौहें

अंजन हाय कटार है भइया

इस जग में कुछ निश्छल भी है

हाँ वह माँ का प्यार है भइया

आज जरूरत है दुर्गा की

कृष्ण नहीं दरकार है भइया

करता चल कुछ काम भले भी

जीना दिन दो चार है…

Continue

Added by रामबली गुप्ता on January 25, 2023 at 8:06am — 6 Comments

गणतन्त्र के दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

विकृत कर गणतंत्र का, राजनीति ने अर्थ

कर दी है स्वाधीनता, जनता के हित व्यर्थ।१।

*

तंत्र प्रभावी हो गया, गण को रखकर दूर

कह सेवक स्वामी  बने, ठाठ करें भरपूर।२।

*

आयेगा  गणतंत्र  में, अब तक  यहाँ  वसंत

तन्त्र बनेगा कब यहाँ, बोलो गण का कन्त।३।

*

भूखे को रोटी नहीं, न ही हाथ को काम

बस इतना गणतन्त्र में, गाली खाते राम।४।

*

द्वार खोलती  पञ्चमी, कह आओ ऋतुराज

साथ पर्व गणतंत्र का, सुफल सभी हों काज।५।

*

लोकतंत्र  के  पर्व   सह,   आया …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2023 at 6:42am — 2 Comments

वक़्त को भी चाहिए वक़्त

वक़्त को भी चाहिए वक़्त, घाव भरने के लिए

ज़ख्म कितने है लगे, हिसाब करने के लिए

बस दवाओं से हमेशा, बात बनती है नहीं

एक दुआ भी चाहिए, असर दिखाने के लिए

खींच लेता हैं समंदर, लहरों को आगोश में

सागर तो होना चाहिए, सैलाब लाने के लिए

पानी में डूबा हुआ, लोहा कभी सड़ता नहीं

बस हवा हीं चाहिए, उसे जंग खाने के…

Continue

Added by AMAN SINHA on January 23, 2023 at 5:24pm — 1 Comment

अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास

221 2121 1221 212

मुश्किल में अपने इश्क़ की यूँ देखभाल कर।

अपने कहे का ,अपने लिखे का ख़्याल कर।

महसूस हो न दिल मे कभी उसकी याद तो,

अपने ज़मीर को जगा के सौ सवाल कर।

इक तरफा प्यार फिर भी बहुत कामयाब है,

खुद में ही उलझे रहना है सिक्के उछाल कर।

हम ही नहीं थे आपकी महफ़िल की रौशनी,

अच्छा किया है आपने दिल से निकाल कर।

ये चार दिन की बात तो मेरे लिए थी बस,

तू चाँदनी को रखना हमेशा संभाल कर।

कुदरत के…

Continue

Added by मनोज अहसास on January 22, 2023 at 12:06am — 5 Comments

साक्षात्कार

उषा अवस्थी

सबकी अलग देनदारियां हैं

जीवन-नदिया में,

कर्म-नौका पर सवार

सुख-दुख से उत्पन्न

अपरिहार्य लहरें

सहने की मजबूरियां हैं

जब तरंगे "सम" पर आती हैं

पहुँचाती हैं सहजता से

इच्छित गन्तव्य तक

समस्त उलझनों के पार

कराती हैं, स्वयं से स्वयं का 

"साक्षात्कार"

प्रकृति आईना दिखाने को सन्नद्ध है

नियमों से आबद्ध है

जो अपना धर्म 

सदैव निभाती है

"मैं"…

Continue

Added by Usha Awasthi on January 21, 2023 at 6:57pm — 6 Comments

अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास

12122   12122   12122    12122

तेरे ख्यालों के अंजुमन में हज़ार पहरे लगे हुए हैं

सजाये कैसे ग़ज़ल का दामन गुनाहों में हम रंगे गए हैं

हमारे जैसा उदास कोई हमें कहीं भी नहीं मिला पर

हमारे दुख से बड़े बहुत दुख ज़माने भर में भरे पड़े हैं

कभी नहीं वो कहेंगे हमसे के उनके दिल में है प्यार अब भी

सकार को भी जिया था हमने नकार को भी समझ रहे हैं

ये ज़िन्दगी की उदास खुशबू जो बस गयी है मेरी रगों में

ज़रा सा खुश हूँ मैं इसमें क्योंकि तुम्हारें…

Continue

Added by मनोज अहसास on January 20, 2023 at 8:00pm — 3 Comments

गीत गा दो  तुम  सुरीला- (गीत -१४)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"



इस तमस की खोह में आ चाँद भूले से कभी तो

गीत गा दो  तुम  सुरीला, वेदना  को  भूल जाऊँ।

*

जब नगर हतभाग्य  से  आ  खो  गये हैं गाँव मेरे

हर कदम पर चोट खाकर पथ विचलते पाँव मेरे।।

तोड़कर   सँस्कार   सारे   छू   रहे  प्रासाद  तारे

धूप से भयभीत मन  है  पग  जलाती छाँव मेरे।।



सभ्यता की रीत  कोई  भौतिकी गढ़ती नहीं है

आत्ममंथन कर लचीला, वेदना को भूल जाऊँ।

*

जन्म पर जो भी तनिक थी, तात की पहचान खोई

बन सका है भर जगत में,…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 20, 2023 at 2:04pm — 4 Comments

गज़ल : पत्थरों पर चल रहा हूं

2122 2122

पत्थरों पर चल रहा हूँ

रास्तों को छल रहा हूँ 1

लग रहा हूँ आज मीठा

सब्र का मैं फल रहा हूँ 2

कर दिया उनको पवित्तर 

यार गंगा जल रहा हूँ 3 

अब नहीं ख्वाहिश किसी की

हाँ कभी बेकल रहा हूँ 4

आज इतनी गाड़ियाँ है

मैं कभी पैदल रहा हूँ 5

याद आऊँ, मुस्कुरा दो 

वह तुम्हारा कल रहा हूँ 6

मैं डुबोया हूँ खुद ही को

स्वयं का दलदल रहा हूँ…

Continue

Added by आशीष यादव on January 19, 2023 at 11:56pm — 1 Comment

इस मधुवन से उस मधुवन तक - गजल -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

इस मधुवन से उस मधुवन तक
पतझड़ पसरा  है  आँगन तक।१।
*
पायल बिछिया तक जायेगा
आ पसरा है जो कंगन तक।२।
*
मत  मरने  दो  मन  इच्छाएँ
आ जायेगा यह यौवन तक।३।
*
दिखता जब  ऋतुराज न कोई
फैल न जाये अब यह मन तक।४।
*
धरती  की  तो  रही  विवशता
पसरे मत यह और गगन तक।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2023 at 3:52pm — 2 Comments

ऋतु शीत रवानी में अपने

ऋतु शीत रवानी में अपने

ऊर्ध्वगी जवानी में अपने  

चहुँओर सर्द को बढ़ा रही

जीवन वह्निः तक बुला रही

थी जगह जगह जल रही आग

प्रमुदित होकर जन रहे ताप 

कौड़े में जैसे उठी ज्वाल

मन मोह लिया इक अधर लाल 

रति जैसी जिसकी छाया थी

वह थी समक्ष या माया थी

पहने थे वसन तरीके से 

सब सज्जित स्वच्छ सलीके से 

कुंतल को उसने झटक दिया 

मनसिज प्रसून पर पटक दिया

कितने उद्गार उठे मन में 

ताड़ित से कौंध रहे तन…

Continue

Added by आशीष यादव on January 19, 2023 at 11:10am — No Comments

तस्वीर: एक मोहक चित्र

2122 2122 2122 2122

क्या पता उस लोक में दिखती हैं कैसी अप्सराएँ

किस तरह चलतीं मचल कर किस तरह से भाव खाएँ

कौन सा जादू लिए फिरतीं सभी पर मार देतीं

किस तरह पुचकारती हैं किस तरह से प्यार देतीं 

क्या महावर और मेहँदी आँख में काजल अनोखा

केशिनी मृगचक्षुणी हैं सत्य, या उपमान धोखा 

किस तरह श्रृंगार रचती किस तरह गेशू सजाएँ

क्या पता कितनी सही है आमजन की कल्पनाएँ

आज देखी थी परी जो हाल कुछ उसका सुनाऊँ

देखता ही रह गया…

Continue

Added by आशीष यादव on January 19, 2023 at 6:32am — 1 Comment

बहुत अकेले जोशीमठ को रोते देख रहा हूँ- गीत १३(लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

सदियों पावन धाम रहा जो खोते देख रहा हूँ

बहुत अकेले जोशीमठ को रोते देख रहा हूँ !

*

केवल अपनी  पीड़ा  से  जो, दरक  नहीं  रहा है

पूर्ण हिमालय की पीड़ा को, उसने आज कहा है।।

पानी रिसना  बोल  रहे  सब, देख फूटतीं धमनी

खोद खोद कर देह सकारी, जब कर बैठे छलनी।।

नयी सभ्यता के प्रलय को होते देख रहा हूँ

बहुत अकेले जोशीमठ को रोते देख रहा हूँ।।

*

सिर्फ़ सैर के लिए हिमालय, सबने मान लिया है

इसीलिए तो अघकचरा सा हर निर्माण किया है।।

जो संचालक देश - राज्य के,…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 18, 2023 at 6:30pm — 6 Comments

गीत.... असल कामयाबी जीवन की

असल कामयाबी जीवन की

सहज सरल सादा जीवन हो



बचना होगा वासना लिप्सा

अतिशय कामना नहीं मन हो

चल सकता काम अगर दो रोटी

तो एक गाय कुत्ते को दे दो !

पेट भरा होने पर भैया

उसे कभी अवकाश भी दो

असल कामयाबी जीवन की

सहज सरल सादा जीवन हो

होता सूर्य है उत्तरायण

सुनहला है अब वातावरण

निकली है अब धूप धुंध से

क्षमा भाव अपनाते सज्जन

सहने की सामर्थ्य बढ़ा लो

असल कामयाबी जीवन की

सहज…

Continue

Added by Chetan Prakash on January 17, 2023 at 10:00pm — 2 Comments

सदा - क्यों नहीं देते

221--1221--1221--122

1

आँखों में भरे अश्क गिरा क्यों नहीं देते

है दर्द अगर सबको बता क्यों नहीं देते

2

है जुर्म मुहब्बत तो सज़ा क्यों नहीं देते

गर रोग है तो इसकी दवा क्यों…

Continue

Added by Rachna Bhatia on January 16, 2023 at 1:30pm — 14 Comments

दासतां दिल की

कभी मैं दासतां दिल की, नहीं खुल के बताता हूँ

कई हैं छंद होंठो पर, ना उनको गुनगुनाता हूँ

अभी तो पाया था मैंने, सुकून अपने तरानों से

उसे तुम भी समझ जाओ, चलो मैं आजमाता हूँ

 

जो लिखता हूँ जो पढ़ता, हूँ वही बस याद रहता है

बस कागज कलम हीं है, जो मेरे पास रहता है

भरोसा बस मुझे मेरी, इन चलती उँगलियों पर है

ज़हन जो सोच लेता है, कलम वो छाप देता है

 

भले दो शब्द हीं लिक्खु, पर उसके मायने तो हो

सजाने को मेरे घर में , कोई एक आईना…

Continue

Added by AMAN SINHA on January 16, 2023 at 11:30am — No Comments

महक उठा है देखो आँगन (गीत-१२)-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

महक उठा है देखो आँगन, सुनकर ये संदेश।

साजन अपने घर लौटेंगे, छोड़ छाड़ परदेश।।

*

जाने कितने पुष्प पठाये सुनके वनखण्डी ने।

जिन से गूँथे गाँव सकारे सर्पिल पगडण्डी ने।।

पतझड़ में आया है गाने फागुन हँसकर गीत।

सूने मन के आँगन होगा अब ऋतुराज प्रवेश।।

*

पोंछ पसीना अँगड़ाई ले जगकर थकी क्रियाएँ।

सौंप रही मीठे सम्बोधन फिर से खुली भुजाएँ।।

करने को उद्यत मनुहारें, झील किनारे चाँद।

बनजारा सूरज ठहरा है, फिर सुलझाने केश।।

*

सब खुशियाँ हैं सेज सजाती, करती नव…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2023 at 5:05am — 4 Comments

ग़ज़ल - थामती नहीं हैं पलकें अश्कों का उबाल तक (ज़ैफ़)

 212 1212 1212 1212 

थामती नहीं हैं पलकें अश्कों का उबाल तक

भूल-सा गया है दिल भी, धड़कनों की ताल तक 

दो दिलों की दास्ताँ न कोई समझा है यहाँ 

अपना इश्क़ आ ही पहुँचा जुर्म के मलाल तक 

ऐ ख़ुदा, रखूँ मैं तुझसे रहमतों की आस क्या

मैं पहुँचता ही नहीं कभी तेरे ख़याल तक 

हाय! आ रहा है प्यार झूठे ग़ुस्से पर तेरे 

लाल शर्म से पड़े हैं यार, तेरे गाल तक 

आशना तुझे कहा है मैंने जाने किसलिए

पूछता…

Continue

Added by Zaif on January 12, 2023 at 7:30pm — 2 Comments

सर्द रातें और प्रेम - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

( सरसी छंद)

***

धीरे-धीरे जब आती है, घर आँगन में शीत।

नाना रूपों में रक्षा  को, ढल जाती है प्रीत।।

माँ के हाथों स्वेटर में ढल, दे बचपन में साथ।

युवा हुए तो ऊष्मा देता, बन अनजाना हाथ।।

*

पत्नी होकर सदा चूमता, स्नेह शीत में माथ।

होते वंचित सिर्फ शीत में, लोगो यहाँ अनाथ।।

बचपन, यौवन रहे बुढ़ापा, सर्द शीत की रात।

उष्मित करती तन्हाई में, सिर्फ प्रीत की बात।।

*

प्रेम रहित तनमन करता है, जीवन से परिवाद।

सर्द शीत की रातों की  तो, ला  मत कोई…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2023 at 6:22am — 1 Comment

अपनो को खो देने का ग़म - २६/११ की याद में

अपनों को खो देना का ग़म, रह रह कर हमें सताएगा

चाहे मरहम लगा लो जितना, ये घाव ना भरने पाएगा

कैसे हम भुला दे उनको, जो अपने संग हीं  बैठे थे

रिश्ता नहीं था उनसे फिर भी, अपनो से हीं लगते थे

 

कैसे हम अब याद करे ना, उन हँसते-मुस्काते चेहरों को

एक पल में हीं जो तोड़ निकल गए, अपने सांस के पहरों को

हम थे,  संग थे ख्वाब हमारे, बाकी सब दुनियादारी…

Continue

Added by AMAN SINHA on January 10, 2023 at 9:54am — No Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें। कुछ…"
14 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीया रचना जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
25 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण जी  बहुत शुक्रिया आपका, जी बेहतर है सुधार करती हूं सादर"
27 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय कबीर सर जी नमस्कार बहुत ख़ुशी हुई आपको मंच पे देख कर ईश्वर से आपकी अच्छी सेहत के लिए हमेशा…"
27 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
29 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय दयाराम जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
30 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका बारीकियाँ समझाने और बहुमूल्य इस्लाह के लिए वाकई ग़ज़ल निखर…"
30 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"//हर शख़्स को मिली हैं यहाँ अपनी इक नज़र// इस मिसरे में शुतरगुरबा दोष है... "मिली हैं" -…"
42 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"हालात वो नहीं हैं कि निकले भी घर से हम। आते दिखे जो यार तो निकले इधर से हम। कितना भी दिल कहे यही…"
47 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"मजाहिया शेर में तो उम्र को 'उमर' रहने दीजिए। फिर बाली उमर, उमरिया जैसे देशज शब्द बुरा मान…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"//इस शब्द में मात्रा पतन नहीं है बल्कि लुग़त के हिसाब से इसे 2 और 21 दोनों तरह लिया जा सकता है।// इस…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"//मेरा दिल जानता है मैंने कितनी मुश्किलों से इस आयोजन में सक्रियता बनाई है।// जी बेशक - हम सब आपकी…"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service