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इस मधुवन से उस मधुवन तक - गजल -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

इस मधुवन से उस मधुवन तक
पतझड़ पसरा  है  आँगन तक।१।
*
पायल बिछिया तक जायेगा
आ पसरा है जो कंगन तक।२।
*
मत  मरने  दो  मन  इच्छाएँ
आ जायेगा यह यौवन तक।३।
*
दिखता जब  ऋतुराज न कोई
फैल न जाये अब यह मन तक।४।
*
धरती  की  तो  रही  विवशता
पसरे मत यह और गगन तक।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2023 at 3:30pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by Samar kabeer on January 29, 2023 at 2:27pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I 

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