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ग़ज़ल की कक्षा

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ग़ज़ल की कक्षा

इस समूह मे ग़ज़ल की कक्षा आदरणीय श्री तिलक राज कपूर द्वारा आयोजित की जाएगी, जो सदस्य सीखने के इच्‍छुक है वो यह ग्रुप ज्वाइन कर लें |

धन्यवाद |

Location: OBO
Members: 376
Latest Activity: Oct 30, 2023

Discussion Forum

ग़ज़ल संक्षिप्‍त आधार जानकारी-10 37 Replies

मुफरद बह्रों से बनने वाली मुजाहिफ बह्रेंइस बार हम बात करते हैं मुफरद बह्रों से बनने वाली मुजाहिफ बह्रों की। इन्‍हें देखकर तो अनुमान हो ही जायेगा कि बह्रों का समुद्र कितना बड़ा है। यह जानकारी संदर्भ के काम की है याद करने के काम की नहीं। उपयोग करते करते ये बह्रें स्‍वत: याद होने लगेंगी। यहॉं इन्‍हें देने का सीमित उद्देश्‍य यह है जब कभी किसी बह्र विशेष का कोई संदर्भ आये तो आपके पास वह संदर्भ के रूप में उपलब्‍ध रहे। और कहीं आपने इन सब पर एक एक ग़ज़ल तो क्‍या शेर भी कह लिया तो स्‍वयं को धन्‍य…Continue

Tags: बह्र, विवरण, पाठ, ज्ञान, ग़ज़ल

Started by Tilak Raj Kapoor. Last reply by Riju Nag Oct 29, 2023.

ग़ज़ल-संक्षिप्‍त आधार जानकारी-9 6 Replies

(श्री तिलक राज कपूर जी द्वारा मेल से भेजे गए पोस्ट को हुबहू पोस्ट किया जा रहा है.....एडमिन) जि़हाफ़:जि़हाफ़ का शाब्दिक अर्थ है न्‍यूनता या कमी। बह्र के संदर्भ में इसका अर्थ हो जाता है अरकान में मात्राओं की कमी। ग़ज़ल का आधार संगीत होने के कारण यह जरूरी हो गया कि मात्रिक विविधता पैदा की जाये जिससे बह्र विविधता प्राप्‍त हो सके। इसका हल तलाशा गया मूल अरकान में संगीतसम्‍मत मात्रायें कम कर उनके नये रूप बनाकर। मात्रायें कम करना कोई तदर्थ प्रक्रिया नहीं है, इसके निर्धारित नियम हैं।मुख्य…Continue

Started by Admin. Last reply by आवाज शर्मा Jul 20, 2011.

ग़ज़ल-संक्षिप्‍त आधार जानकारी-8 7 Replies

बह्र विवरण-अगला चरण:पिछली पोस्‍ट में जो जानकारी दी गयी थी उससे एक स्‍वाभाविक प्रश्‍न उठता है कि सभी मुफ़रद बह्र एक ही रुक्‍न की आवृत्ति से बनती हैं तो वो प्रकृति से ही सालिम हैं और मुरक्‍कब बह्र अलग-अलग अरकान से बनती हैं तो सालिम हो नहीं सकतीं फिर सालिम परिभाषित करने की आवश्‍यकता कहॉं से पैदा हुई। जहॉं तक मूल अरकान की बात है उनके लिये सालिम परिभाषित करने की वास्‍तव में कोई आवश्‍यकता नहीं थी लेकिन अरकान के जि़हाफ़़ से मुज़ाहिफ़ बह्र बनती हैं और उनमें एक ही जि़हाफ़़ की आवृत्ति होने पर सालिम की…Continue

Tags: पाठ, विवरण, ज्ञान, ग़ज़ल, कक्षा

Started by Tilak Raj Kapoor. Last reply by Tilak Raj Kapoor May 14, 2011.

ग़ज़ल-संक्षिप्‍त आधार जानकारी-7 5 Replies

ग़ज़ल की विधा में रदीफ़ काफि़या तक बात तो फिर भी आसानी से समझ में आ जाती है, लेकिन ग़ज़ल के तीन आधार तत्‍वों में तीसरा तत्‍व है बह्र जिसे मीटर भी कहा जा सकता है। आप चाहें तो इसे लय भी कह सकते हैं मात्रिक-क्रम भी कह सकते हैं।रदीफ़ और काफि़या की तरह ही किसी भी ग़ज़ल की बह्र मत्‍ले के शेर में निर्धारित की जाती है और रदीफ़ काफिया की तरह ही मत्‍ले में निर्धारित बह्र का पालन पूरी ग़ज़ल में आवश्‍यक होता है। प्रारंभिक जानकारी के लिये इतना जानना पर्याप्‍त होगा कि बह्र अपने आप में एकाधिक रुक्‍न…Continue

Tags: बह्र, कक्षा, ग़ज़ल, ज्ञान, पाठ

Started by Tilak Raj Kapoor. Last reply by Devesh Kumar Nov 10, 2022.

ग़ज़ल-संक्षिप्‍त आधार जानकारी-6 15 Replies

काफि़या को लेकर अब कुछ विराम लेते हैं। जितना प्रस्‍तुत किया गया है उसपर हुई चर्चा को मिलाकर इतनी जानकारी तो उपलब्‍ध हो ही गयी है कि इस विषय में कोई चूक न हो। रदीफ़ को लेकर कहने को बहुत कुछ नहीं है फिर भी कोई प्रश्‍न हों तो इस पोस्‍ट पर चर्चा के माध्‍यम से उन्‍हें स्‍पष्‍ट किया जा सकता है। लेकिन रदीफ़ और काफि़या को लेकर कुछ महत्‍वपूर्ण है जिसपर चर्चा शेष है और वह है रदीफ़ और काफि़या के निर्धारण में सावधानी। यह तो अब तक स्‍पष्‍ट हो चुका है कि रदीफ़ की पुनरावृत्ति हर शेर में होती है और काफि़या का…Continue

Tags: पाठ, ज्ञान, ग़ज़ल, कक्षा

Started by Tilak Raj Kapoor. Last reply by kanta roy Jan 27, 2016.

ग़ज़ल-संक्षिप्‍त आधार जानकारी-5 36 Replies

पिछले आलेख में हमने प्रयास किया काफि़या को और स्‍पष्‍टता से समझने का और इसी प्रयास में कुछ दोष भी चर्चा में लिये। अगर अब तक की बात समझ आ गयी हो तो एक दोष और है जो चर्चा के लिये रह गया है लेकिन देवनागरी में अमहत्‍वपूर्ण है। यह दोष है इक्‍फ़ा का। कुछ ग़ज़लों में यह भी देखने को मिलता है। इक्‍फ़ा दोष तब उत्‍पन्‍न होता है जब व्‍यंजन में उच्‍चारण साम्‍यता के कारण मत्‍ले में दो अलग-अलग व्‍यंजन त्रुटिवश ले लिेये जाते हैं। वस्‍तुत: यह दोष त्रुटिवश ही होता है। इसके उदाहरण हैं त्रुटिवश 'सात' और 'आठ' को…Continue

Tags: पाठ, ज्ञान, ग़ज़ल, कक्षा

Started by Tilak Raj Kapoor. Last reply by Nilesh Shevgaonkar Apr 22, 2017.

ग़ज़ल-संक्षिप्‍त आधार जानकारी-4 33 Replies

काफि़या को लेकर आगे चलते हैं।पिछली बार अभ्‍यास के लिये ही गोविंद गुलशन जी की ग़ज़लों का लिंक देते हुए मैनें अनुरोध किया था कि उन ग़ज़लों को देखें कि किस तरह काफि़या का निर्वाह किया गया है। पता नहीं इसकी ज़रूरत भी किसी ने समझी या नहीं।कुछ प्रश्‍न जो चर्चा में आये उन्‍हें उत्‍तर सहित लेने से पहले कुछ और आधार स्‍पष्‍टता लाने का प्रयास कर लिया जाये जिससे बात समझने में सरलता रहे।काफि़या या तो मूल शब्‍द पर निर्धारित किया जाता है या उसके योजित स्‍वरूप पर। पिछली बार उदाहरण के लिये 'नेक', 'केक' लिये गये…Continue

Tags: पाठ, ज्ञान, ग़ज़ल, कक्षा

Started by Tilak Raj Kapoor. Last reply by Rachna Bhatia Apr 27, 2019.

ग़ज़ल-संक्षिप्‍त आधार जानकारी-3 53 Replies

एक बात जो आरंभ में ही स्‍पष्‍ट कर देना जरूरी है कि यह आलेख काफि़या का हिन्‍दी में निर्धारण और पालन करने की चर्चा तक सीमित है। उर्दू, अरबी, फ़ारसी या इंग्लिश और फ्रेंच आदि भाषा में क्‍या होता मैं नहीं जानता।पिछले आलेख पर आधार स्‍तर के प्रश्‍न तो नहीं आये लेकिन ऐसे प्रश्‍न जरूर आ गये जो शायरी का आधार-ज्ञान प्राप्‍त हो जाने और कुछ ग़ज़ल कह लेने के बाद अपेक्षित होते हैं।प्राप्‍त प्रश्‍नों पर तो इस आलेख में विचार करेंगे ही लेकिन प्रश्‍नों के उत्‍तर पर आने से पहले पहले कुछ और आधार स्‍पष्‍टता प्राप्‍त…Continue

Tags: पाठ, ज्ञान, ग़ज़ल, कक्षा

Started by Tilak Raj Kapoor. Last reply by Rajeev Bharol Feb 22, 2012.

ग़ज़ल-संक्षिप्‍त आधार जानकारी-2 12 Replies

ग़ज़ल की आधार परिभाषायें जानने के बाद स्‍वाभाविक उत्‍सुकता रहती है इन परिभाषित तत्‍वों के प्रायोगिक उदाहरण जानने की। ग़ज़ल में बह्र का बहुत अधिक महत्‍व है लेकिन उत्‍सुकता सबसे अधिक काफि़या के प्रयोग को जानने की रहती है। आज प्रयास करते हैं काफि़या को उदाहरण सहित समझने की।सभी उदाहरण मैनें आखर कलश पर प्रकाशित गोविन्‍द गुलशन जी की ग़ज़लों से लिये हैं। एक मत्‍ला देखें:'दिल में ये एक डर है बराबर बना हुआमिट्टी में मिल न जाए कहीं घर बना हुआ'इसमें 'बना हुआ' तो मत्‍ले की दोनों पंक्तियों के अंत में आने…Continue

Tags: पाठ, ज्ञान, ग़ज़ल, कक्षा

Started by Tilak Raj Kapoor. Last reply by विनोद 'निर्भय' Nov 17, 2018.

ग़ज़ल-संक्षिप्‍त आधार जानकारी-1 56 Replies

यह आलेख उनके लिये विशेष रूप से सहायक होगा जिनका ग़ज़ल से परिचय सिर्फ पढ़ने सुनने तक ही रहा है, इसकी विधा से नहीं। इस आधार आलेख में जो शब्‍द आपको नये लगें उनके लिये आप ई-मेल अथवा टिप्‍पणी के माध्‍यम से पृथक से प्रश्‍न कर सकते हैं लेकिन उचित होगा कि उसके पहले पूरा आलेख पढ़ लें; अधिकाँश उत्‍तर यहीं मिल जायेंगे। एक अच्‍छी परिपूर्ण ग़ज़ल कहने के लिये ग़ज़ल की कुछ आधार बातें समझना जरूरी है। जो संक्षिप्‍त में निम्‍नानुसार हैं:ग़ज़ल- एक पूर्ण ग़ज़ल में मत्‍ला, मक्‍ता और 5 से 11 शेर (बहुवचन अशआर) प्रचलन…Continue

Tags: पाठ, ज्ञान, कक्षा, ग़ज़ल

Started by Tilak Raj Kapoor. Last reply by Asif zaidi Jan 22, 2019.

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Comment by Shanno Aggarwal on June 21, 2011 at 11:32pm

आदरणीय तिलक जी, 

मैं बिलकुल नयी हूँ इस कक्षा में. गजल के पाठों के लिये बहुत शुक्रिया. 

 

Comment by Karun thapa on June 20, 2011 at 1:41pm
नमस्कार । मेरी हिन्दी कमजोर है माफ किजिएगा क्यों कि मेरी मातृभाषा नेपाली है । तिलकजी, मैं नेपाल से हूँ। ३० साल से नेपाली भाषा में गजल लिख रहा हूँ। नेपालमें कुछ ही गिनेचुने लोग हैं जो बह्र मे गजल कहते हैं । नेपालमें ज्यादातर लोग स्वनिर्मित लयमें गजल कहते हैं जो लोकलय से लेकर अपनी ही कुछ लय हो सकते है । लेकिन हम कुछ शायर मिलकर यह प्रयास कर रहें है लोगोंको सम्झाने कि "बह्र में लिखना ही असल में गजल लिखना होता है" ।

मेरा पहला सवाल है - क्या हिन्दी या उर्दू में भी लोग स्वनिर्मित लयमें गजल कहते है?

हिन्दी और नेपाली दोनों देवनागरी लिपीमें लिखे जाते हैं । दोनों भाषाओंका करीब वही मात्राऐं होतें हैं । नेपालीमें  क़ ख़ ग़ ज़ ड़ ढ़ फ़ य़ नहीं होते । हम "ग़ज़ल"को "गजल" लिखते है । लेकिन अन्य स्वर और व्यञ्जन करीब वही हैं ।  तक्तिअ करनेके तरीके भी वही वही है । लेकिन क्यूँकि बह्रें उर्दू से हिन्दीमें या नेपालीमें प्रवेश कियें है तो कुछ नियममें अभी भी बहुत कन्फ्यूजन है ।

अब तक हम किताबों से इन्टरनेट से और आपका पाठशाला से बहुत कुछ सिखरहें हैं । अध्ययन और अभ्यास भी है । लेकिन गुरु नहीं जो गजलमें बह्रका बारिकीओंको सिखाए । बह्रकी बहुत नियम हैं जो अभी भी बहुत साफ नहीं है लोगोंमें । अभी भी मात्रा गिराना या "के को" इत्यादिका लघु या गुरु दोनों मान्ना वर्जितप्राय: है नेपालमें । गुरुको दो लघु भी करनेका प्रावधान है या ३ मात्राओंको १ + २ करनेका भी । यह सब सम्झाने के लिए अभी भी मुश्किलोंका सामना कर रहें है हम ।

इस विषयको आप कुछ संक्षिप्त परिचय और सभी बह्र में निश्चित लय¸ यति और गतिका नियम है जो आपकी पाठशालामें इन्हें सामिल करेंगें तो बहुत लाभदायक होगा ।
Comment by Tilak Raj Kapoor on May 25, 2011 at 5:41pm

आप सब का स्‍वागत है।

सौरभ जी के लिये एक शेर:

लुत्‍फ़ कुछ देर से आने का अलग होता है

गर न मानें, तो कभी देर से आकर देखें।

 

Comment by Admin on May 25, 2011 at 9:43am
आदरणीय गोपाल बघेल जी, ग़ज़ल के बारे में जानने हेतु नियमित रूप से "ग़ज़ल-संक्षिप्‍त आधार जानकारी" सभी अंक पढ़ते रहे |
Comment by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on May 25, 2011 at 8:34am
मैं इस विषय में पूरी जानकरी करना चाहता हूँ.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 18, 2011 at 9:46am

हो चुकी है देर 

पर जानूँ दुरुस्त, मनाइये

जो मिले  प्रसाद है मुझे, 

भक्त को अपनाइये.. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 15, 2011 at 6:02pm

जब निकाले जाते हैं तो सरकस के शेर होते हैं और जब निकलते हैं तो पूरी शानो शौकत से सीना तान कर अपना सौन्‍दर्य बिखेरते हैं।

 

बहुत खूब तिलक सर , सहमत हूँ आपकी बातों से | 

Comment by Tilak Raj Kapoor on April 15, 2011 at 5:23pm
आपने कहा कि:
चॉंद एक टूटा हुआ टुकड़ा मेरे जाम का है
ये ख्‍याल मेरा नहीं हज्रते खय्याम का है
हमसे पूछो कि ग़ज़ल मॉंगती है कितना लहू
लोग तो कहते हैं ये धंधा बड़े आराम का है।

वाह भाई खूब लेकर आये आप, गज़ल कह देना और ग़ज़ल कहना, इन दोनों के बीच का अंतर जानने वाला कभी ग़ज़ल कहने को आसान नहीं कहेगा लेकिन फिर भी यह सत्‍य है कि शेर निकाले नहीं जाते, निकलते हैं। जब निकाले जाते हैं तो सरकस के शेर होते हैं और जब निकलते हैं तो पूरी शानो शौकत से सीना तान कर अपना सौन्‍दर्य बिखेरते हैं।
Comment by nemichandpuniyachandan on April 15, 2011 at 4:54pm
sir,Ghazal ke Baare mein main Itana hi kahoongaa,kisi Shayar ka ek kataa yaad aaya ki,Chaand ek tootaa huaa tukadaa mere zaam ka hein,ye meraa khyaal nhin hazrte-khayyaam ka hein,hamse poocho ghazal maangtee hein kitnaa lahoo,aur loog ye kahate he ki ye dhandha aaraam ka hein.Sukriya
Comment by Tapan Dubey on March 23, 2011 at 1:38pm
धन्यवाद तिलक राज कपूर जी आपके इस मार्गदर्शन के लिए, ये जानकारी मुझ जैसे लोगो के लिए वरदान साबित होगी, मे तोड़ा बहुत लिखता था अब तक पर इंसब तकनीकी बतो से अनजान था, लिखने का शोक मुझे कई शायरो को पड़ने और सुनने के साथ हुआ था, और काफ़ी छोटी उम से मे तुकबंदी करता था, जब मे 5वी कक्षा मे था, तब मुझे राज्यस्तरीय स्वारचित कविता मे प्रथम पुरूस्कर भी मिला, पर तब से आज तक ये तकनीकी बाते मे नही जनता था, और आज जिस महॉल मे हू जहा गजल शायरी कोई समझता ही नही हे, मे धन्यवाद करना चाहता हू Openbooks online pariwar   का भी की उन्होने मुझ जैसे लोगो को अपने अंदर की प्रतिभा को बचाने का एक मोका दिया हे और धनयवाद तिलक राज जी, आप को अब से अपना गुरु मान लिया है, बहुत कमजोर विधयर्थी हू आप को ज़्यादा ध्यान देना पड़ेगा . :)
 
 
 

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