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मनोज अहसास's Blog (149)

एक ग़ज़ल मनोज अहसास

2122 2122 2122 212

तोड़ डाला खुद को तेरी आशिकी के रोग में नहीं

तुम नहीं लिक्खे थे मेरी कुंडली के योग में

अब तेरी तस्वीर दिल से मिट गई है इस तरह

जैसे ईश्वर को भुला डाले कोई भवरोग में

तेरे ग़म की,इश्क़ की मूरत थी मुझमें,ढह गई

आ नहीं सकती ये मिट्टी अब किसी उपयोग में

मिल गया,कुछ खो गया, कुछ मिलके भी खोया रहा

साथ थी तक़दीर भी जीवन के हर संयोग में

चैन तेरे इश्क़ के बिन मिल नही पाया कहीं

तेरे ग़म में जो…

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Added by मनोज अहसास on July 12, 2018 at 10:30pm — 13 Comments

एक अतुकांत रचना :फरियाद: मनोज अहसास

एक दुआ

साथ देने की गुजारिश के साथ

जाने अबकी बार खुदाया कैसी पूर्णमासी है

चाँद के पूरे दीदार की चाहत सुलग रही है माथे पर

और पैरों को हिला रहा है डर मंज़र खो देने का

सूनी आँखे ढूंढ रही हैं अपनी क्षमता से दूर

घुटने टेके, हाथ पसारे ,दुआ सहारे

हर दम

मर्यादा से बँधे खड़े हैं

और अम्बर का कैसा नज़ारा

इन नज़रों को सता रहा है

पेड़ों के पीछे चाँद के आने की आहट से

धड़ धड़ सीना धड़क रहा है

लेकिन

जो अंधियारे ,गहरे, काले बादल गरज रहे हैं

उनसे इन…

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Added by मनोज अहसास on April 2, 2018 at 7:02pm — 12 Comments

एक अतुकांत रचना

एक नवीनतम अतुकांत रचना

मैं तो सदा उसकी ही रहूंगी,

मुझे उसी की रहना है बस

इससे क्या

कि

मेरे जिस्म की मासूमी पर,

उसने दर्द के दाग लिखे हैं ।

मेरी सुर्ख आंखों का काजल ,

उसके जुर्म बह निकला है

और चेहरे की रंगत है

उसके दिए हुए निशान

अंतिम लफ्ज़ से उसके नाम के,

बस मेरी पहचान बची है

मैंने उसकी खातिर अपना,

चेहरा सब से छुपा लिया है

मैं फिर भी उसकी ही हूं

जबकि

वो जब चाहे मुझको अपनी,

जीस्त से रुखसत कर सकता है

वो जब…

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Added by मनोज अहसास on March 27, 2018 at 4:21pm — 6 Comments

ग़ज़ल इस्लाह के लिए :मनोज अहसास

221 2121 1221 212

हमनें यूँ ज़िन्दगानी का नक्शा बदल लिया

देखा तुझे जो दूर से रस्ता बदल लिया

तुमने भी अपने आप को कितना बदल लिया

नज़रों की ज़द में आते ही चहरा बदल लिया

जब इस सराय फानी का आया समझ में सच

हमनें भरी दुपहर में कमरा बदल लिया

दादी की जलती उंगलियों का दर्द अब नहीं

हामिद ने इक खिलौने से चिमटा बदल लिया

दीवानगी भी ,शाइरी भी,दिल भी, शहर भी

तुमको भुलाने के लिए क्या क्या बदल लिया

कांपी तमाम रात…

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Added by मनोज अहसास on February 1, 2018 at 6:12pm — 6 Comments

ग़ज़ल इस्लाह के लिए :मनोज अहसास

2122  2122  2122  212

मेरे जीने का भी कोई फलसफा लिख जाइये

आप मेरी चाहतों को हादसा लिख जाइये

आपका जाना ज़रूरी है मुझे मालूम है

हो सके तो मेरी खातिर रास्ता लिख जाइये

नींद मेरी धड़कनों के शोर से बेचैन है

मेरे जीवन मे विरह का रतजगा लिख जाइये

आप अपना नाम लिख लीजै मसीहाओं के बीच

बस हमारे नाम के आगे वफ़ा लिख जाइये

गर जुदा होकर ही खुश हैं आप तो अच्छा ही है

पर हमारी चाहतों को ही खरा लिख…

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Added by मनोज अहसास on December 30, 2017 at 9:09pm — 13 Comments

एक अतुकांत कविता मनोज अहसास

तुम्हें मेरी लिखावट बहुत पसंद थी

और मुझे तुम्हारी

तुम अक्सर कहती

"जैसे घुमा घुमाकर लपेटकर तुम लिखते हो,ऐसे ही मैं भी लिखना चाहता हूं"

मैं भी कई बार सोचता

"जैसे धीरे धीरे ,सोच सोचकर तुम लिखती हो ना ऐसे ही मैं भी लिखना चाहता हूँ"



बहुत दिनों तक साथ साथ लिखते रहे

और देखते रहे

एक दूसरे की लिखावट को

और मेरी लिखावट मिल गई तुम्हारी लिखावट में

और तुम्हारी लिखावट मिल गई मेरी लिखावट में

एक नया लेख बना

जो न तुम्हारा था न मेरा

और हम… Continue

Added by मनोज अहसास on July 23, 2017 at 1:22pm — 1 Comment

ग़ज़ल मनोज अहसास

1222 1222 1222 1222





कभी चंदा, कभी सूरज,कभी तारे संभाले हैं

सुखनवर के नसीबो में मगर पांवों के छाले हैं



हमारी बेगुनाही का यकीं उनको हुआ ऐसे

वो जिनको चाहते हैं अब उन्हीं के होने वाले हैं



मेरी भूखी निगाहों में शराफत ढूंढने वाले

तेरी सोने की थाली में मेरे हक़ के निवाले हैं



हमारी झोपडी का कद बहुत ऊंचा नहीं लेकिन

तेरे महलों के सब किस्से हमारे देखे भाले हैं



भरी महफ़िल में आके पूछते हैं हाल मेरा वो

तकल्लुफ भी निराला… Continue

Added by मनोज अहसास on April 2, 2017 at 3:17pm — 18 Comments

नकार

मैंने उसके नाम

जितने गीत लिखे थे

उसने सभी नकार दिए हैं

उसने नकार दिया है

उन गीतों में अपने वजूद को

अपनी मौजूदगी को

अपने किसी भी अहसास को



उसे नहीं है याद

वो लवबर्ड का जोड़ा

जो बहुत प्यार से उसने सजाया था

मेरी अलमारी में

और उसे नहीं है याद वो रक्षा सूत्र

जो उसने मुझे

और मैंने उसको पहनाया था

उसने नहीं है याद वो सोलह रूपए जो

जबर्दस्ती उसने दिए थे समोसे वाले को

ये जानकार कि

मेरी जेब खाली है



उसने नकार… Continue

Added by मनोज अहसास on March 25, 2017 at 6:00am — 4 Comments

एक नज़्म ,मनोज अहसास

आज जब तय है मुहब्बत से रिहा हो जाना

सोचता हूँ के ज़रा तेरी गली से गुज़रू

फिर तेरी याद के मखमल के दरीचे को ज़रा

खुद से लिपटाऊ,तमन्नाओं को छू लूँ,जी लूँ



जबकि ज़ाहिर है मेरे पास तेरे गम का समा

सिर्फ कुछ रोज़ इनायत की रवानी में रहा

फिर भी ये मानने को दिल कहाँ राजी है सनम

मेरा किरदार कम क्यों तेरी कहानी में रहा



हर तरफ एक सी उलझन का असर लगता है

भूख के,दर्द के,एहसास के,शोलो की हवा

रूठ जाती है इशारों की जुबां जब मुझसे

तब बहुत झूठ सी लगती है… Continue

Added by मनोज अहसास on December 25, 2016 at 1:13pm — 12 Comments

ग़ज़ल( इस्लाह के लिए )मनोज अहसास

1222 1222 122



खुदा की दुनिया में क्या क्या नहीं है

हमारी आस को खतरा नहीं है



खुदा से यूँ हमे शिकवा नहीं है

उसे हमने मगर देखा नहीं है



किसी के हाथ में चुभती है चाँदी

किसी के हाथ में चिमटा नहीं है



बदलते दौर में उस घर का नक्शा

गली के मोड़ से दिखता नहीं है



बिखरकर खो गए यादों के मोती

हुनर का मुझमें ही धागा नहीं है



दुआ में और क्या मांगूं मैं या रब

उन्हें मुद्दत से बस देखा नहीं है



उतर आती है ज़न्नत… Continue

Added by मनोज अहसास on October 3, 2016 at 2:54pm — 8 Comments

ग़ज़ल इस्लाह के लिए मनोज अहसास

212 212 212 212 212 212 212 212





एक दिन सब बदल जायेगा हमसफर, ग़म न कर, ग़म न कर, ग़म न कर ,ग़म न कर

वक़्त है तो कठिन कट रहा है मगर , ग़म न कर, ग़म न कर, ग़म न कर ,ग़म न कर



भावनाएं भंवर के मुहाने पे हैं,तेरी मर्ज़ी भी तो डूब जाने में है

क्यों सताता है फिर खोने पाने का डर,ग़म न कर, ग़म न कर, ग़म न कर ,ग़म न कर



राह कैसी भी हो मुस्कुराले ज़रा,अपने दिल का सबर आज़मा ले ज़रा

तेरी आहट में है रौशनी का नगर, ग़म न कर, ग़म न कर, ग़म न कर ,ग़म न कर



कोई नाशाद है कोई… Continue

Added by मनोज अहसास on September 25, 2016 at 3:00pm — 2 Comments

ग़ज़ल( इस्लाह के लिए )मनोज अहसास

221 2121 1221 212



बैठे हैं इल्तिज़ाओ की चादर लिए हुए

उनकी गली में इश्क़ का दफ्तर लिए हुए



हैरत नज़र में पीठ में खंज़र लिए हुए

चलते हैं हम तो दर्द का लश्कर लिए हुए



कुछ ऐसे बदनसीब भी ढोता है ये जहां

जीते हैं एक जान कई सर लिए हुए



तन्हाइयों का शौक लेके आ गया कहाँ

जिन्दा हैं खुद को खोने का ही डर लिए हुए



दुनिया की बात सोचता तो कैसे सोचता

कांधो पे तेरे गम से भरा सर लिए हुए



तब जाके पूरी होगी मेरे ज़ख्मो की तलब

वो… Continue

Added by मनोज अहसास on September 13, 2016 at 10:37am — 7 Comments

बिटिया की ग़ज़ल ,,मनोज अहसास,,,

ज़रा सा मुस्कुरा दो तो बड़ी हो जाओगी बिटिया

तुम्हीं जुगनू,तुम्हीं खुशबू, तुम्हीं हो चाँदनी बिटिया



किताबें कितनी सुन्दर हैं कहीं चंदा,कहीं तारे

लो अपने बस्ते में भर लो ये सारी रौशनी बिटिया



सुबह उठकर चली जाती हो जैसे रोज़ पढ़ने तुम

किसी दिन बच्चों को तुम भी पढाओगी मेरी बिटिया



चलो आओ चलें पढ़ने नए कुछ खेल भी खेलें

सरल हैं ये सभी चीज़े नहीं मुश्किल कोई बिटिया



नए रस्ते ,बड़ी मंज़िल ,घना उल्लास और साहस

बसा लो इनको जीवन में रहो संवरी सजी… Continue

Added by मनोज अहसास on August 21, 2016 at 3:53pm — 8 Comments

ग़ज़ल मनोज अहसास(इस्लाह के लिए)

221 2121 1221 212



हिम्मत को तोड़ देगा दुःखो का बखान भी

गर रास्ता है बंद,दबा ले जबान भी



हाथों से खोदकर ज़मीं पानी तलाश कर

दुश्मन जो तेरा हो गया हो आसमान भी



मैं दर ब दर हुआ था तेरी रुखसती के बाद

आहों में मेरी जल गया तेरा जहान भी



अपनी ही शक्ल देखी जो मुल्जिम बनी हुई

मेरे खिलाफ हो गया मेरा बयान भी

(मुझसे बयां न हो सका मेरा बयान भी)



झगड़ो पे मिली जिनसे नसीहत हमें सदा

अपनी वजह से चलती है उनकी दुकान भी



बेचारगी… Continue

Added by मनोज अहसास on July 16, 2016 at 4:54pm — 6 Comments

ग़ज़ल मनोज अहसास(इस्लाह के लिए)

2122 2122 2122 212



मुस्कुराहट ही सदा मिलती खता के सामने

सारी दुनिया छोटी है माँ की अदा के सामने



छत नहीं मिलती है जिनको एक ऊँचाई के बाद

गिर भी जाती हैं वो दीवारें हवा के सामने



सिर्फ वो ही ढक सकेगा अपनी खुद्दारी का सर

दौलतें प्यारी नहीं जिसको अना के सामने



जिनकी दहशत से सितम से जल रहा सारा जहां

वो भला क्या मुँह दिखायेगें खुदा के सामने



आसमां सी सोच हो और बात हो ठहरी हुई

फिर ग़ज़ल मंज़ूर होती है दुआ के सामने



तेरे… Continue

Added by मनोज अहसास on July 10, 2016 at 9:37am — 14 Comments

माँ पर एक ग़ज़ल.....मनोज अहसास

121-22 121-22 121-22 121-22



ख़ुशी में तू है,है ग़म में तू ही,नज़र में तू, धड़कनों में तू है ।

मैं तेरे दामन का फूल हूँ,माँ मेरी रगों में तेरी ही बू है ।।



हरेक लम्हा सफ़र का मेरे ,भरा हुआ है उदासियों से ।

ये तेरी आँखों की रौशनी है, जो मुझमे चलने की आरज़ू है ।।



है तेरे क़दमों के नीचे जन्नत, ज़माना करता तेरी इबादत ।

तेरे ही रुतबे का देख चर्चा, माँ सारे आलम में चार सू है ।।



तमाम है रौनके जहाँ में ,जो बेकरारी नज़र में भर दें ।

मगर जो खाता है…

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Added by मनोज अहसास on April 25, 2016 at 3:00pm — 9 Comments

ग़ज़ल मनोज अहसास(इस्लाह के लिए)

221 2121 1221 212



बेचैनियों के रंग सवालो में भर गये

मंज़िल से पूछता हूँ कि रस्ते किधर गये



दिल को निचोड़ा इतना कि अहसास मर गये

खुद को बिगाड़ कर तुझे हम पार कर गये



मुझको उदास देखा जो मिलने के बाद भी

वो अपने दिल का दर्द बताने से डर गये



पूनम की शब का चाँद जो खिड़की पे आ गया

कमरे में मेरे यादों के गेसू बिखर गये



साहिल की कैद में कहीं जलती है इक नदी

मेरे ख्याल रेत के दरिया में मर गये



वीरानियों को अपना मुकद्दर समझ… Continue

Added by मनोज अहसास on April 5, 2016 at 11:05am — 21 Comments

ग़ज़ल मनोज अहसास

221 1221 1221 22





करने को तो कर देते हैं हालात का चर्चा

लिखने में समाता नहीं जज़्बात का चर्चा



अब होश कहाँ मुझको तुझे देखने के बाद

लिखना भी अगर चाहूँ मुलाकात का चर्चा



वो रूठ गए हैं मेरे अंदाज़ से यारो

हर बात में करता था गई बात का चर्चा



देखा है फलक पे जो सितारों का ये जमघट

लगता है कि चलता है मेरी मात का चर्चा



हर बार बहा है मेरी मिट्टी का लहू ही

हरयाणा का कश्मीर का गुजरात का चर्चा



ए पर्दा नशी तेरे इशारो… Continue

Added by मनोज अहसास on March 6, 2016 at 10:36am — 5 Comments

ग़ज़ल

121 22 121 22 121 22 121 22





सवाल लिखना जवाब लिखना तू कल्पना की उडान लिखना

किसी की चाहत किसी की नफरत किसी के गम का उफान लिखना



बचाना खुद को सदा अहम से कभी न झूठे बयान लिखना

अगर न सच को हो लिखना मुमकिन तो सच्चे लोगों की शान लिखना



जो ज़िन्दगी से हुए परेशां भटक रहे हैं खला के घर में

तू उनकी आँखों को पढ़ने जाना उदासियों के निशान लिखना



ज़माने भर औ फलक की खुश्बू सजेगी तेरी हथेलियों में

ज़मी की खातिर मिले ज़मी में तू उनके जीवन का गान… Continue

Added by मनोज अहसास on February 23, 2016 at 6:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल.....इस्लाह के लिए...मनोज अहसास

2122 2122 2122 212

फिर करीने से सजा लूँ मैं तेरी सौगात को

वेदना को कल्पना को इश्क़ को जज़्बात को



इसमें युग युग की विवशता है या कोई शाप है

छूने को साहित्य आतुर सत्ता वाली लात को



अपनी ही करनी का फल है ज़िन्दगी में हर सजा

उनको आँखों में बसाकर जागते हैं रात को



खुद के जैसा रह न पाये और जिन्दा भी रहे

इससे ज्यादा चोट क्या है आदमी की जात को



दूजे पलड़े में सजेगी फलसफा ए ज़िन्दगी

एक पलड़े में चढ़ा दो इश्क़ की शह मात को…

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Added by मनोज अहसास on February 5, 2016 at 11:00pm — 5 Comments

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