For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक नज़्म ,मनोज अहसास

आज जब तय है मुहब्बत से रिहा हो जाना
सोचता हूँ के ज़रा तेरी गली से गुज़रू
फिर तेरी याद के मखमल के दरीचे को ज़रा
खुद से लिपटाऊ,तमन्नाओं को छू लूँ,जी लूँ

जबकि ज़ाहिर है मेरे पास तेरे गम का समा
सिर्फ कुछ रोज़ इनायत की रवानी में रहा
फिर भी ये मानने को दिल कहाँ राजी है सनम
मेरा किरदार कम क्यों तेरी कहानी में रहा

हर तरफ एक सी उलझन का असर लगता है
भूख के,दर्द के,एहसास के,शोलो की हवा
रूठ जाती है इशारों की जुबां जब मुझसे
तब बहुत झूठ सी लगती है इबादत ओ दुआ

फूक दूँ तेरी हसीं याद का चोला दिलबर
या उतर जाएँ मेरी रूह से चाहत के निशां
खुद पे रख लेता हूँ फिर फ़र्ज़ का बेदाग कफ़न
झूठ तो झूठ ही है झूठ का क्या रंग बयां

रात के बाद उजालों की कहानी लेकर
सुबह आई तो मगर रौशनी तो बाकी है
जब तलक भूख से बोझिल हैं कहीं भी ये जहाँ
तब तलक साँस चले ज़िन्दगी तो बाकी है

आजा चल ढूंढते हैं दर्द के मारो का नगर
है ये मुमकिन के वहाँ इश्क़ का घर बार बने
गर्मी ए इश्क़ में चाहत की रवानी में सनम
कुछ यहाँ पीर हुए और कई मैखार बने


मौलिक और अप्रकाशित

Views: 810

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on January 19, 2017 at 9:04am
Bahut bahut aabhar aadarniya RAJESH KUMARI JI
SADAR
Comment by मनोज अहसास on January 19, 2017 at 9:04am
Bahut bahut aabhar aadarniya RAJESH KUMARI JI
SADAR
Comment by मनोज अहसास on January 19, 2017 at 9:04am
Bahut bahut aabhar aadarniya RAJESH KUMARI JI
SADAR

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 18, 2017 at 1:35pm

वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह आद० मनोज कुमार अहसास जी बहुत सुंदर जन्म लिखी है कई बार पढ़ चुकी हूँ 

आद० समर भाई जी की इस्स्लाह के अनुसार दो शब्दों को एडिट कर दें समां को वजूद और मैखार को मयख्वार कर दें 

दिल से बहुत बहुत मुबारकबाद शुभकामनाएँ 

Comment by मनोज अहसास on December 26, 2016 at 8:55pm
जी सर
बेशक आपके सामने आ जाने पर चीज़ संवर जाती है
शुक्रिया
सादर
Comment by Samar kabeer on December 26, 2016 at 8:51pm
"समा" का अर्थ होता है "आसमान"आपने जो अर्थ बताया है वो शब्द है "समाँ"अगर आप 'समाँ'की जगह "वजूद"शब्द रखेंगे तो आपकी ये मुश्किल आसान हो सकती है,भाव भी नहीं बदलेगा ।
Comment by मनोज अहसास on December 26, 2016 at 8:31pm
बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय कबीर साहब
समा का अर्थ
वक़्त का एक भाग
या
नज़ारा
लिया है वैसे मैं ठीक से बता भी नहीं पा रहा
थोड़ा आप ही बता दें
बाकि सुझाव सर माथे
सादर नमन
Comment by Samar kabeer on December 26, 2016 at 2:20pm
जनाब मनोज कुमार अहसास साहिब आदाब,उम्दा नज़्म हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
पांचवें मिसरे में 'समा'का क्या अर्थ लिया है आपने ?
आठवां मिसरा यूँ कर सजते हैं:-
'कम क्यों किरदार मिरा तेरी कहानी में रहा "
आख़री मिसरे में सही शब्द है "मयख़्वार",देखियेगा ।
Comment by मनोज अहसास on December 26, 2016 at 6:36am
बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी
कोई सुझाव मिल जाता तो बहुत अच्छा रहता
सादर
Comment by मनोज अहसास on December 26, 2016 at 6:26am
बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय आशीष यादव जी
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Monday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Monday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sunday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Saturday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल है आपकी। इस हेतु बधाई स्वीकार करे। एक शंका है मेरी —…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"धन्यवाद आ. चेतन जी"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"बधाई स्वीकार करें आदरणीय अच्छी ग़ज़ल हुई गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतरीन हो जायेगी"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service