For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ पर एक ग़ज़ल.....मनोज अहसास

121-22 121-22 121-22 121-22

ख़ुशी में तू है,है ग़म में तू ही,नज़र में तू, धड़कनों में तू है ।
मैं तेरे दामन का फूल हूँ,माँ मेरी रगों में तेरी ही बू है ।।

हरेक लम्हा सफ़र का मेरे ,भरा हुआ है उदासियों से ।
ये तेरी आँखों की रौशनी है, जो मुझमे चलने की आरज़ू है ।।

है तेरे क़दमों के नीचे जन्नत, ज़माना करता तेरी इबादत ।
तेरे ही रुतबे का देख चर्चा, माँ सारे आलम में चार सू है ।।

तमाम है रौनके जहाँ में ,जो बेकरारी नज़र में भर दें ।
मगर जो खाता है चोट इन्सां,लबो पे आती माँ सिर्फ तू है।।

मेरे गुनाहों की आँधियों में ,ये सारा गुलशन बिखर गया था
खिला है हाथों मेरे चमन फिर ,रगों में क्योंकि तेरा लहू है।।

कहीं कहा मादरे वतन औ, कहीं कहा है भवानी दुर्गा ।
है ज़र्रे ज़र्रे में तेरा जलवा, ज़माने में तेरी ज़ुस्तज़ू है।।

बलि चढ़े हैं पहन तिरंगा, तुम्हारे बेटे ओ भारती माँ।
बंधा है माथे पे भी कफ़न यें, हमारी धड़कन भी सुर्ख रू है।।

तमाम दुनिया तमाम मज़हब, कोई भी युग हो मगर मुसलसल ।
ज़माने भर की कहानियों का, तू ही है हासिल तू ही शुरू है ।।

तू पन्ना माँ है तू रानी झाँसी ,है जीजाबाई लगन शिवा की।
सदा से अपने लहू की खातिर, तू खुद बलि है तू जंगजू है।।

बसर ने अपनी हवस की खातिर,बना दिया है जहां जहन्नुम।
शिकस्त हो या फ़तेह कहीं हो,ज़मी पे बहता तेरा लहू है ।।

छलक उठी है मेरी निगाहें माँ, तेरी बातों का ज़िक्र करके।
ये अदला बदली की सारी दुनिया ,वफ़ा की सूरत तू हू-ब-हू है।।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 766

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on April 30, 2016 at 9:02pm
आदरणीय ब्रज जी
आदरणीय मेहता जी
बहुतबहुत शुक्रिया
सादर
Comment by जयनित कुमार मेहता on April 30, 2016 at 8:29pm
आ. मनोज कुमार जी, माँ पर अच्छी ग़ज़ल कह डाली आपने।
बहुत बहुत बधाई आपको!!
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 30, 2016 at 10:05am

अदभुत रचना....अदभुत अहसास....क्या कमाल भावों का समावेश किया है...बहुत बहुत बधाइयाँ 

Comment by मनोज अहसास on April 29, 2016 at 2:24pm
आदरणीय मिथिलेश जी।आदरणीय धर्मेन्द्र जी
आदरणीय शुक्ल जी
बहुत बहुत शुक्रिया
सादर
Comment by Ravi Shukla on April 28, 2016 at 12:25pm

आदरणीय मनोज जी मॉं पर आपनेे बहुत अच्‍छे अशआर कहे है शेर दर शेर दाद और मुबारक बाद हाजिर है । तीसरे चौथे और अंतिम शेर में मॉं लफ्ज को गिरा कर वज्‍न में बांधा है । कुछ असहज लगा संज्ञा सूचक शब्‍द मॉं को गिरा कर म पढना विचार करियेगा । 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 27, 2016 at 10:35pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय मनोज जी, दाद कुबूल करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 26, 2016 at 11:33pm

आदरणीय मनोज भाई जी, माँ पर बहुत शानदार नज़्म कही है आपने. वैसे इसे मुसलसल ग़ज़ल भी कह सकते है.  दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. 

Comment by मनोज अहसास on April 25, 2016 at 5:30pm
बहुत बहुत शुक्रिया
सादर
Comment by narendrasinh chauhan on April 25, 2016 at 4:36pm

लाजवाब  रचना 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक…"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी । नववर्ष की…"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।नववर्ष की हार्दिक बधाई…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लेखन के विपरित वातावरण में इतना और ऐसा ही लिख सका।…"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"उड़ने की चाह आदत भी बन जाती है।और जिन्हें उड़ना आता हो,उनके बारे में कहना ही क्या? पालो, खुद में…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service