For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल( इस्लाह के लिए )मनोज अहसास

221 2121 1221 212

बैठे हैं इल्तिज़ाओ की चादर लिए हुए
उनकी गली में इश्क़ का दफ्तर लिए हुए

हैरत नज़र में पीठ में खंज़र लिए हुए
चलते हैं हम तो दर्द का लश्कर लिए हुए

कुछ ऐसे बदनसीब भी ढोता है ये जहां
जीते हैं एक जान कई सर लिए हुए

तन्हाइयों का शौक लेके आ गया कहाँ
जिन्दा हैं खुद को खोने का ही डर लिए हुए

दुनिया की बात सोचता तो कैसे सोचता
कांधो पे तेरे गम से भरा सर लिए हुए

तब जाके पूरी होगी मेरे ज़ख्मो की तलब
वो भी खड़े हो भीड़ में पत्थर लिए हुए

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 562

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on September 20, 2016 at 1:39pm
आप सभी का हार्दिक आभार
सादर
Comment by ram shiromani pathak on September 14, 2016 at 9:27pm
भाई आपकी ग़ज़ल मुझे बहुत अच्छी लगी।हार्दिक बधाई
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 14, 2016 at 7:59pm
आदरणीय श्री मनोज कुमार एहसास जी बहुत ही सुन्दर गजल हुई है । सस्नेह बधाई स्वीकार करें । सादर!
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on September 14, 2016 at 10:30am
खूबसूरत अहसासों से सजी उम्दा ग़ज़ल दिली दाद कुबूल करे आदरणीय।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 13, 2016 at 2:12pm

क्या बात है आदरणीय बेहद उम्दा ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल करें 

Comment by Sushil Sarna on September 13, 2016 at 12:30pm

दुनिया की बात सोचता तो कैसे सोचता
कांधो पे तेरे गम से भरा सर लिए हुए

तब जाके पूरी होगी मेरे ज़ख्मो की तलब
वो भी खड़े हो भीड़ में पत्थर लिए हुए
बहुत खूब आदरणीय मनोज जी। ... बहुत ही खूबसूरत अशआर हुए हैं। .... इस दिलकश प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on September 13, 2016 at 11:08am
जनाब मनोज कुमार'अहसास'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
पांचवें शैर के सानी मिसरे में 'तेरे' को "तेरा" कर लें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
yesterday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
yesterday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service