For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल_ इस्लाह के लिए (मनोज कुमार अहसास)

2122 1212 22

आज इस बात पर ही हँसते है
अश्क़ खुशियों से कितने सस्ते है

तुझसे मिलने में वो ही बंदिश है
सारी दुनिया में जितने रस्ते है

वो मुझे रात दिन सताते है
तेरी आँखों से जो बरसते है

जब तेरा ज़िक्र कहीं आता है
होठ कुछ कहने को तरसते है

चल ज़रा बेखुदी में चलते है
बस वहीँ इश्क़ वाले बसते है

मुझमे रोती थी उनकी नादानी
वो मेरी बेबसी पे हँसते है

देखकर तेरे चेहरे की जर्दी
बेबसी मुठ्ठियों मे कसते है
.
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 716

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 2, 2015 at 11:38pm

आप अपनी प्रस्तुतियों को पगने दिया करें, भाईजी.  बहुत कुछ तो पगने के दौरान ही सुधर जायेगा. 

शुभेच्छाएँ 

Comment by gumnaam pithoragarhi on September 2, 2015 at 7:43pm

अच्छी ग़ज़ल है बहुत खूब वाह ,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by मनोज अहसास on September 2, 2015 at 1:50pm
पुनः मार्गदर्शन देने के लिए
बहुत बहुत आभार आदरणीय रवि शुक्ला जी
मैं सतत प्रयासरत रहने का प्रयास करता रहुगा
ये वादा इस मंच से करता हूँ
सादर
Comment by Ravi Shukla on September 2, 2015 at 12:49pm
आदरणीय मनोज जी हम सब ज़िन्दगी भर सीखते रहते है और यह मंच बहुत ही अच्छा वतावरण दे रहा है इसके लिए ।
अरूज़ जानने से पहले कही गई ग़ज़लो में आपके भाव तो है ही इसलिए नया कहने के साथ साथ पुरानी रचना को अब अर्जित शिल्प के अनुसार सुधार कर देखें ।
हम भी ऐसा प्रयास कर चुके है निश्चिन्त रहें
हम भी इस्लाह लेने वालों में से है । और हा आदरणीय वीनस भाई की एक टिपण्णी पढ़ी थी ग़ज़ल कह कर 10 दिन उसे संभाल के रखे
रोज़ उसे देखे कुछ न कुछ सुधर होता जायेगा । सही बात है ।आभार हमारो बात को मान देने के लिए ।
Comment by मनोज अहसास on September 2, 2015 at 12:25pm
आदरणीया तनूजा जी
बहुत आभार
सादर
Comment by मनोज अहसास on September 2, 2015 at 12:23pm
आदरणीय गिरिराज सर
बहुत बहुत आभार
आप थोडा और निर्देश देगे तो बड़ी कृपा होगी
कृपिया थोडा कसौटी पर कसते रहे तो कुछ सुधार होगा
सादर
Comment by मनोज अहसास on September 2, 2015 at 12:20pm
आदरणीय रवि शुक्ला जी
सादर नमन
आदरणीय मिथिलेश सर की बातों की व्याख्या करके आपने बड़ी कृपा कर दी
मुझे जितना पता चलता है उतना ही कम लगता है
कभी कभी बहर साधते साधते विचलित हो जाता हु

प्रस्तुत ग़ज़ल उन बहुत सारी ग़ज़लो में से एक है जो बहर की जानकारी होने से पहले लिखी गई है
कभी मन करता है उन्हें सुधारु
कभी मन करता है ऎसे ही छोड़ दूँ
जब इस ग़ज़ल को बहर पर कसा तो काफी परेशानी हुई
और इस चक्कर में रदीफ़ का दोष ध्यान में ही नहीं आया
आप सब इस्लाह मुझे कुछ ज़रूर सीखा देगी
ये आशा है
कृपिया मार्गदर्शन देते रहे
किसी ने खूब कहा है

कहीं खोटा ना रह जाऊ तपा कर देखते रहना

सादर
Comment by Tanuja Upreti on September 2, 2015 at 12:09pm

देखकर तेरे चेहरे की जर्दी
बेबसी मुठ्ठियों मे कसते है

लाजवाब ,मनोज जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2015 at 11:30am

आदरनीय मनोज भाई , छोटी बह्र मे बहुत अच्छी गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ । आदरणीय मिथिलेश भाई जी की बतो6 का खयाल कीजियेगा ।

Comment by Ravi Shukla on September 1, 2015 at 10:32pm
आदरनीय मनोज जी प्रयास अच्छा हुआ है
आदरणीय मिथिलेशजी का आशय यही है की रदीफ़ जब "है"तय हो चुका तो मतले के बाद के सानी मिसरो में ही है रदीफ का इस्तेमाल करे । आपने लगभग सभी मिसरो में इस लफ्ज़ का इस्तेमाल किया है जिससे तकाबुल ऐ रादीफेन का दोष आ गया ।
दूसरी बात जिस मिसरे में बहुवचन है वह हैं होगा । पर ये मतले में ही निश्चित कर लीजिये फिर पूरी ग़ज़ल में उस वयवस्था का निर्वाह करना होगा । और एक बात ग़ज़ल विचलित नही करती ये तो पुर सुकून विधा है । धैर्य से अभ्यास से इसमें मज़ा आने लगेगा और समूह के लोगों का साथ भी तो है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)

दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)-----------------------------देवलोक भी जोहता,चकवे की ज्यों बाट।संत सनातन संग…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा अष्टक (प्रकृति)
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मुसाफ़िर जी "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा अष्टक (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छः दोहे (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रस्तुति को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।हार्दिक आभार "
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"किसी भोजपुरी रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्द्धन किया जाना मुझे अभिभूत कर रहा है। हार्दिक बधाई,…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहे (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
Shyam Narain Verma replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर भोजपुरी ग़ज़ल की प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल : निभत बा दरद से // सौरभ

जवन घाव पाकी उहे दी दवाईनिभत बा दरद से निभे दीं मिताई  बजर लीं भले खून माथा चढ़ावत कइलका कहाई अलाई…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service