१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
पिला देती अगर साकी तो मैं भी बोल देता सच
हलक से गर उतर जाती तो मैं भी बोल देता सच
हसीं नगमे, हसीं जलवे, हसीं महफ़िल हसीनो की
हँसी रुसवा न गर होती तो मैं भी बोल देता सच
कहें शायर घनी काली घटाएं इन की जुल्फों को
न उनकी नींद गर उडती तो मैं भी बोल देता सच
बड़ी दिलकश हसीं कातिल चमकता चाँद सब कहते
हंसी गर सच को सह पाती तो मैं भी बोल देता सच
कतल होने मे गर आये मजा…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on November 21, 2013 at 4:30pm — 26 Comments
वर्जना के टूटते
प्रतिबन्ध नें-
उन्मुक्त, भावों को किया जब,
खिल उठीं
अस्तित्व की कलियाँ
सुरभि चहुँ ओर फ़ैली,
मन विहँस गाने लगा मल्हार...
...फिर गूँजी फिजाएं …
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on November 21, 2013 at 4:30pm — 41 Comments
ख़्वाबों की हसीन शाम दें ………
क्यूँ
बेवज़ह की
तकरार करती हो
इकरार भी करती हो
इंकार भी करती हो
खुद ही रूठ कर
छुप जाती हो
अपने ही आँचल में
झुकी नज़रों से
फिर किसी के
मनाने का
इंतज़ार भी करती हो
तुम जानती हो
तुम मेरी धड़कन हो
तुम मेरी साँसों की वजह हो
हम इक दूसरे की
पलकों के ख्वाब हैं
कोई अपने ख्वाबों से
रूठता है भला
तुम्हारा ये अभिनय बेमानी है
वरना इस ठिठुरती रात के…
Added by Sushil Sarna on November 21, 2013 at 1:30pm — 11 Comments
२१२२, ११२२, २२/ ११२
.
बात जो तुम से निभाई न गई,
बस वही हम से भुलाई न गई.
....
वो नई रोज़ बना ले दुनियाँ,
हम से किस्मत भी बनाई न गई.
....
थी दरो दिल पे छपी इक तस्वीर,
जल गया जिस्म, मिटाई न गई.
....
बस मेरे हक़ में बयाँ देना था,
उन से आवाज़ उठाई न गई.
....
ख्व़ाब था दिल से मिला लें हम दिल,
आँख से आँख मिलाई न गई.
....
हम गले मिलते भला…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on November 21, 2013 at 7:30am — 20 Comments
ग़ज़ल
देख लेना क्रान्ति अपनी रंग लायेगी ज़रूर
ये महा हड़ताल शासन को झुकायेगी ज़रूर
देखकर गहरा अंधेरा किसलिए मायूस हो
रात कितनी भी हो लम्बी भोर आयेगी ज़रूर
हौसला हालात से लड़ने का होना चाहिए
आयेंगे तूफ़ां तो कश्ती डगमगायेगी ज़रूर
अब बग़ावत पर उतर आओ सुनो पूरी तरह
वर्ना ये सत्ता तुम्हें भी नोंच खायेगी ज़रूर
ये हमारी सारी माँगें मान तो ली जायेंगी
हाँ मगर सरकार हमको…
ContinueAdded by अजीत शर्मा 'आकाश' on November 21, 2013 at 6:30am — 11 Comments
रचना पूर्व प्रकाशित होने के कारण तथा ओ बी ओ नियमों के अनुपालन के क्रम मे प्रबंधन स्तर से हटा दी गयी है, लेखक से अनुरोध है कि भविष्य में पूर्व प्रकाशित रचनाएँ ओ बी ओ पर पोस्ट न करें | (08.12.2013 / 22:35)
एडमिन
2013120807
Added by dr lalit mohan pant on November 21, 2013 at 12:00am — 10 Comments
पूर्ण चाँदनी रात है, अगणित तारे संग !
अब विलम्ब क्यों है प्रिये , छेड़ें प्रेम प्रसंग!!
कनक बदन पर कंचुकी ,सुन्दर रूप अनूप !
वाणी में माधुर्य ज्यों , सरदी में प्रिय धूप !!
अद्भुत क्षण मेरे लिए,जब आये मनमीत !
ह्रदय बना वीणा सरस ,गाता है मन गीत !!
प्रेम न देखे जाति को ,सच कहता हूँ यार !
यह तो सुमन सुगंध सम ,इसका सहज प्रसार !!
विरह सिंधु में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ अब ताकता,मन का बंदरगाह…
Added by ram shiromani pathak on November 20, 2013 at 11:30pm — 31 Comments
झूठ जीता सत्य हारा
राजनीति की अग्नि में
जले देश सारा
रिश्ते नाते स्वार्थ-सिद्धि की धुरी में
समय मजदूरों का गुजरे नौकरी में
श्रम किया जी तोड़
किन्तु फल है खारा
मन लगा के पर हुआ जाता गगन सा
लक्ष्य के आगे हैं किन्तु तम गहन सा
सिन्धु की गहराई
जाने बस किनारा
घात की यह वेदना क्यूँ माँ सहे अब
ज्ञान की नदिया भी क्यूँ उल्टी बहे अब
मिट गयी अब नेह की
वो मूल धारा…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 20, 2013 at 10:30pm — 5 Comments
बह्र : २२१ २१२२ २२१ २१२२
इक दिन हर इक पुरानी दीवार टूटती है
क्यूँ जाति की न अब भी दीवार टूटती है
इसकी जड़ों में डालो कुछ आँसुओं का पानी
धक्कों से कब दिलों की दीवार टूटती है
हैं लोकतंत्र के अब मजबूत चारों खंभे
हिलती है जब भी धरती दीवार टूटती है
हथियार ले के आओ, औजार ले के आओ
कब प्रार्थना से कोई दीवार टूटती है
रिश्ते बबूल बनके चुभते हैं जिंदगी भर
शर्मोहया की जब भी दीवार टूटती…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 20, 2013 at 10:28pm — 18 Comments
हाले दिल जो छुपाने के काबिल न था ।
क्या कहूं मै सुनाने के काबिल न था ।
इस ज़माने ने मुझको नकारा नहीं
मै तो खुद ही ज़माने के काबिल न था ।
इस लिए वो मुझे आज़माते रहे ,
मै उन्हें आज़माने के काबिल न था ।
रंग तनहाइयों में ही भरने लगा ,
वो जो महफ़िल सजाने के काबिल न था ।
बोझ रस्मों रिवाज़ों के कुछ भी न थे ,
पर उन्हे मै उठाने के काबिल न था ।
सूख कर दरिया वो राह में खो गया ,
जो सागर को पाने के…
Added by Neeraj Nishchal on November 20, 2013 at 7:30pm — 12 Comments
Added by मोहन बेगोवाल on November 20, 2013 at 7:00pm — 5 Comments
गूंजती थी जब खमोशी, हादसे होते रहे |
रात जागी थी जहां पर दिन वहीँ सोते रहे ||
अनमने से भाव थे वह अनमनी सी थी नजर
अनमने सिंगार पर ही मुग्ध हम होते रहे ||
कौंध कर बिजली गिरी वसुधा दिवाकर भी डरा,
कुंध तनमन क्रोध संकर बीज हम बोते रहे ||
भावना विचलित हुई जब चीर नैनो से हटा,
चार अश्रु गिर धरा पर माटी में खोते रहे ||
पीर बढती ही गई जब भावना के वेग से,
हम किनारे पर रहे हर शब्द को धोते रहे…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on November 20, 2013 at 7:00pm — 25 Comments
दिव्य अलोकिक सी
उतर रही
क्षितज से
नीचे की ओर
त्रण से छीन लेती है
ओस का प्याला
और वह
अवाक
मूक मुँह बाए
देखता है
उस देवी को जो
मद-मस्त हो जाती है
कलि कलि मुस्काती है
पुष्प खिल उठते हैं
बागों के
पोखरों के
ह्रदय के
उसके दर्शन पा
भर लेती है वो
अपनी बाहों में
अलसाए से
विहंगों को
प्रकृति के कण कण को
और देती है…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 20, 2013 at 4:32pm — 12 Comments
अपनी क्रिकेट टीम के क्या कहने क्या ठाट
सचिन विरासत दे गए रोहित शिखर विराट /
सचिन आम इन्सान से, बने आज भगवान
तुम हो भारत देश की, आन बान औ' शान /
बोल खेल को अलविदा,चौबीस साल बाद
पाए आशीर्वाद हैं , सदा रहो आबाद /
पाकर भारत रत्न को, तूने पाया मान
आज सलाम तुझे करें,क्रिकेटर तू महान /
विश्वभर के क्रिकेट का, सचिन है धूमकेतु
पीढ़ियों को जोड़ सचिन बना मजबूत सेतु /
एक दिवसीय मैच में ,दोहरा शतक…
Added by Sarita Bhatia on November 20, 2013 at 2:00pm — 24 Comments
भारत रत्न केवल एक पुरस्कार ही नहीं है वह भारत का सम्मान है और 1 अरब भारतीयों का मान है,भारत रत्न। 1954 से प्रारम्भ हुए भारत रत्न के बारे में साफ लिखा है कि भारत रत्न, कला, विज्ञान, साहित्य एवं समाजसेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले को प्रदान किया जाता है। भारत रत्न जिसको भी मिला वह कम या अधिक सभी हकदार थे। मगर सचिन रमेश…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on November 20, 2013 at 1:30pm — 6 Comments
आखेटक !!
क्या तुम्हें आभास है ?
कि तुम जिजीविषा मे
किसी का आखेट कर
जीवन यापन की मृगया मे
भटकते हुये मदहोश हो !
आखेटक !
क्या तुम्हें आभास है ?
आखेटक को संजीवनी नहीं मिलती
मन की तृष्णा की खातिर
अनन्य मार्गदर्शी का भी
विसस्मरण कर दिया है
सृजनमाला को विस्फारित नेत्रों से
देखते हुए मदमस्त हो !
आखेटक !!
क्या भूल गए हो ?
आखेट करने को आया तीर
एक दिन तुम्हें भी बेध जाएगा
तब…
ContinueAdded by annapurna bajpai on November 20, 2013 at 12:00pm — 8 Comments
ज्ञान का चहुँ ओर यों प्रकाश होना चाहिए
मन में पसरे घोर तम का नाश होना चाहिए
बढ़ रही तकनीक क्रांति ला रहे उद्योग अब
तब तो मेरे गाँव का विकाश होना चाहिए
देखता है स्वप्न सोते जागते दिन रात मन
बाँधने मनगति को तप का पाश होना चाहिए
जीतने का हर समय प्रयास करना है उचित
हार कर हमको नहीं निराश होना चाहिए
घर के भीतर “दीप” जलना सिद्ध होता है सही
आपका भगवान् से निकाश होना चाहिए
निकाश -…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 19, 2013 at 8:35pm — 13 Comments
!!! पर दीवाना धीर साहस डॉंटता !!!--संशोधित
बह्र- 2122 2122 212
ताड़ना के शब्द निश-दिन बॉंचता।
प्यार है आसां मगर क्यों? छॉंजता।।
हाथ से पतवार मांझी छोड़ कर,
जाल कल्मष का बिछाता हॉंपता।।
मीन का व्यापार करता - बाद में,
लाख जन्मों तक भटकता कॉंपता।
जाति जालिम जान तक भी छीनती,
धर्म की छतरी शिखा पर तानता।
सिर चढ़ाते हैं बड़े ही प्यार से,
बागबां ही बाग को फिर छॉंटता।
सोचता हूं आज…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 19, 2013 at 8:30pm — 13 Comments
पूर्ण शून्य है,शून्य ब्रह्म है
एक अंश सबको हर्षाये
आधा और अधूरा होवे,
शायद प्रेम वही कहलाये
मिट जाये तन का आकर्षण
मन चाहे बस त्याग-समर्पण
बंद लोचनों से दर्शन हो
उर में तीनों लोक समाये
उधर पुष्प चुनती प्रिय किंचित
ह्रदय-श्वास इस ओर है सुरभित
अनजानी लिपियों को बाँचे
शब्दहीन गीतों को गाये
पूर्ण प्रेम कब किसने साधा
राधा-कृष्ण प्रेम भी आधा
इसीलिये ढाई आखर के
ढाई ही…
ContinueAdded by अरुण कुमार निगम on November 19, 2013 at 7:00pm — 20 Comments
कभी रोटी, कभी कपड़े के लिए गिड़गिड़ाना किस को कहते हैं
किसी अनाथ बच्चे से पूछो रोना किस को कहते हैं
कभी उसकी जगह अपने को रखो फिर जान जाओगे
कि दुनिया भर का दुःख दिल मे समेटना किस को कहते हैं
उसकी आँखें, उसके चेहरे को एक दिन घूर के देखो
मगर ये मत पूछना कि वीराना किसको कहते हैं ...
तुम्हारा दिल कभी छोड़े अगर दौलत कि खुमारी को
तो तुम्हें मालूम हो जाएगा कि गरीबी किसको कहते हैं ....
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Amod Kumar Srivastava on November 19, 2013 at 7:00pm — 12 Comments
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