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दिव्य अलोकिक सी

उतर रही

क्षितज से

नीचे की ओर

त्रण से छीन लेती है

ओस का प्याला

और वह

अवाक

मूक मुँह बाए

देखता है

उस देवी को जो

मद-मस्त हो जाती है

कलि कलि मुस्काती है  

पुष्प खिल उठते हैं

बागों के

पोखरों के

ह्रदय के   

उसके दर्शन पा

 

भर लेती है वो

अपनी बाहों में

अलसाए से

विहंगों को

प्रकृति के कण कण को  

और देती है उर्जा

स्नेह की गर्मीं से

करती है पल्लवित

कुछ दिवास्वप्न

जिनमें से कुछ होंगे

पूर्ण

कुछ अपूर्ण भी  

 

नदियों की कल कल

पंछियों का कलरव

और चहल पहल

ही उसकी पहचान है

 

उसके अभिनन्दन में

बजती हैं मंदिरों की घंटियाँ

होता है मस्जिदों में आलाप

और गुरुद्वारों में सजदे

कभी वो माँ बने

पुचकारती है

कभी प्रेयसी सी

मादक हो जाती है

कवियों को

उकसाती सी

करो मेरा सौन्दर्य वर्णन

करो मेरी ममता का बखान

  

कलम स्तब्ध सी

उस आंदोलित मौन को

देती है शब्द

जिसमें वह कह नहीं

पाती उस चिरपरिचित मौन को

जो उल्लुओं को मौन करता है

और कोयलों को स्वर देता है

 

थक के हार के

बस

नतमस्तक हो

कहती है  

हे!  “भोर”

तुम अनंत हो

तुम हो तो मैं हूँ

वरना काल के गाल में

समाया

समय

संदीप पटेल "दीप"

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

 

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Comment

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Comment by Alka Gupta on November 22, 2013 at 11:05pm

 वाह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह बहुत सुन्दर प्रस्तुती .........हार्दिक बधाई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 22, 2013 at 1:37pm

आदरणीय शिज्जू जी , आदरणीय राम भाई, आदरणीय जीतेन्द्र जी, आदरणीय गणेश बागी सर जी, आदरणीय विजय सर जी, आदरणीय गोपाल सर जी, आदरणीय अरुण भाई साहब, आदरणीय गिरिराज सर जी, आदरणीया वंदना जी , आदरणीय सौरभ सर जी

सराहना और अनुमोदन हेतु आपका ह्रदय से धन्यवाद स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

सादर

Comment by vandana on November 22, 2013 at 7:56am

जो उल्लुओं को मौन करता है

और कोयलों को स्वर देता है

वाह आदरणीय संदीप जी भोर का बहुत सुन्दर वर्णन !!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 22, 2013 at 2:15am

रचना अतुकान्त है.

शुभेच्छाएँ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 21, 2013 at 11:24pm

  हे!  “भोर”

तुम अनंत हो

तुम हो तो मैं हूँ

वरना काल के गाल में

समाया

समय

 सच! भोर से ही है तो जीवन की सकारात्मकता, बहुत बढ़िया रचना बधाई स्वीकारें आदरणीय संदीप जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 21, 2013 at 5:06pm

आदरणीय सन्दीप भाई , अनुपम रचना के लिये आपको दिली बधाई !!!!

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 21, 2013 at 3:18pm

आदरणीय संदीप भाई जी दिल खुश हो गया बहुत ही सुन्दर रचना रची है आपने बधाई स्वीकारें

Comment by vijay nikore on November 20, 2013 at 10:46pm

बहुत ही सुन्दर रचना है। आपको बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 20, 2013 at 9:44pm

कल्पना के चमकीले रंगों से सजी 

इस रचना से आगे और इन्तेजार

शुभ कामनाये  i


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 20, 2013 at 9:18pm

//

कलम स्तब्ध सी

उस आंदोलित मौन को

देती है शब्द

जिसमें वह कह नहीं

पाती उस चिरपरिचित मौन को

जो उल्लुओं को मौन करता है

और कोयलों को स्वर देता है//

क्या कहने, बहुत अच्छे, अच्छी रचना लगी बधाई संदीप जी । 

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