For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आखेटक !!

क्या तुम्हें आभास है ?

कि तुम जिजीविषा मे

किसी का आखेट कर

जीवन यापन की मृगया मे

भटकते हुये मदहोश हो !

आखेटक !

क्या तुम्हें आभास है ?

आखेटक को संजीवनी नहीं मिलती

मन की तृष्णा की खातिर

अनन्य मार्गदर्शी का भी

विसस्मरण कर दिया है

सृजनमाला को विस्फारित नेत्रों से

देखते हुए मदमस्त हो !

आखेटक !!

क्या भूल गए हो ?

आखेट करने को आया तीर

एक दिन तुम्हें भी बेध जाएगा

तब !!...... समक्ष राम न होंगे

सागर से उबरने को कर्म न होंगे

सुनो आखेटक !!! .........................

 

प्रस्तुति: अन्नपूर्णा बाजपेई

अप्रकाशित एवं मौलिक

 

Views: 567

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 22, 2013 at 2:07am

आपकी कोशिशों के लिए हार्दिक बधाइयाँ आदरणीया अन्नपूर्णाजी. रचना की अंतिम पंक्तियाँ धारदार बन पड़ी हैं.

तुम! मृगमरीचिका की   

जिजीविषा मे

किसी का आखेट कर

जीवन यापन की मृगया मे

भटकते हुये मदहोश हो !

उपरोक्त पंक्तियाँ अलबत्ता शब्दों से धनी हैं लेकिन कई शब्द सायास प्रयुक्त हुए हैं अतः रचना के मूल अर्थों को संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं. देख लीजियेगा.

शुभेच्छाएँ.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 21, 2013 at 11:11pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी , सुंदर संदेशप्रद रचना पर बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 21, 2013 at 4:56pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी ,  !!!!! सुन्दर सदेश देती आपकी उम्दा रचना के लिये आपको दिली बधाई !!!!

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 21, 2013 at 2:58pm

बहुत ही सुन्दर सार्थक सुन्दर सन्देश देती हुई रचना हार्दिक बधाई आदरणीया.

Comment by ram shiromani pathak on November 20, 2013 at 8:48pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई  आपको। …… सादर 

Comment by annapurna bajpai on November 20, 2013 at 7:53pm

प्रिय गीतिका आपका शब्द सही है मेंने ही गलत लिख दिया है । आपका आभार मेरा मार्ग दर्शन करने के लिए । 

Comment by वेदिका on November 20, 2013 at 4:05pm

रचना का कथ्य शानदार हुआ है| 

//एक दिन तुम्हें भी बेन्ध जाएगा// बेन्ध या बेध? मार्गदर्शन की अपेक्षा है!! 

रचना पर बधाई स्वीकारिए आ0 अन्नपूर्णा दी!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 20, 2013 at 2:31pm

शानदार प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई स्वीकारें आदर्नीय अनुपमा जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service