(बह्र--22/22/22/2)
उसको ये समझाना है ,
इक दिन सबको जाना है ।
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हँस के रोकर कैसे भी ,
जीवन क़र्ज़ चुकाना है ।
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देखो, भटका फिरता वो ,
वापस घर तो आना है ।
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अच्छी सच्ची राहें हैं
सबको ये बतलाना है ।
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उसके संगी-साथी को ,
मिलकर हाथ बढ़ाना है ।
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आशा की किरणों वाला ,
फिर से दीप जलाना है ।
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मौलिक एवं आप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on April 30, 2017 at 4:00pm — 13 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 30, 2017 at 8:39am — 12 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on April 30, 2017 at 8:03am — 3 Comments
2212-1212-2212-12
थोड़ी तसल्लियों में मेरा इंतजार हो ।
माना कि आज तुम जियादा बेकरार हो ।
वह मैकदों के पास से गुजरा नहीं कभी ।
गर चाहते हो रिन्द को तो इश्तिहार हो ।।
निकला है आज चाँद शायद मुद्दतों के बाद ।
अब वस्ल पर वो फैसला भी आरपार हो ।।
आया शिकार पर न् वो खुद ही शिकार हो ।
इतना खुदा करे उसे बेगम से प्यार हो ।।
लिख्खा दरख़्त पर किसी पगली ने कोई नाम ।
शायद गरीब दिल की कोई यादगार हो।।
हालात हैं खराब क्यों…
Added by Naveen Mani Tripathi on April 30, 2017 at 7:30am — 4 Comments
Added by Renuka chitkara on April 30, 2017 at 1:03am — 3 Comments
१२१२/ ११२२/ १२१२/ २२
अँधेरों!! “नूर” ने जुगनू अभी उछाला है,
ज़रा सी देर में सूरज निकलने वाला है.
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बिदा करेंगे तो हम ज़ार ज़ार रोयेंगे,
तुम्हारे दर्द को अपना बना के पाला है.
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नज़र भी हाय उन्हीं से लड़ी है महफ़िल में,
कि जिन के नाम का मेरे लबों पे ताला है.
.
शजर घनेरे हैं तख़लीक़ में मुसव्विर की
सफ़र की धूप ने उस पर असर ये डाला है.
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निकल के कूचा-ए-जनां से आबरू न गयी,
लुटे हैं सुन के…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 29, 2017 at 7:27pm — 20 Comments
भूल गया जो मै खुद को तुझको पाकर
ये क्या कर बैठा दिल मेरा तुझपे आकर,
बस गये जो तुम मेरे इस दिल में आकर
मर न जाऊँ कहीँ मै इतनी ख़ुशी पाकर,
तूने ये क्या कर दिया दिल में मेरे आकर
अब तोड़ो ना दिल इस तरह से जाकर,
ख़ुदा मिल गया था जैसे तुझको पाकर
बता अब क्या कहूँ में ख़ुदा के घर जाकर,
पूछे जो क्यों भूल गया था किसी को पाकर
तू ही कुछ राह सूझा जा वापिस आकर,
कैसे बताऊँ मिल गया था क्या तुझको पाकर
ख़ुदा ही रूठ गया मेरा तो जैसे…
ContinueAdded by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 29, 2017 at 6:26am — 3 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on April 28, 2017 at 5:26pm — 22 Comments
गर्व ....
रोक सको तो
रोक लो
अपने हाथों से
बहते लहू को
मुझे तुम
कोमल पौधा समझ
जड़ से उखाड़
फेंक देना चाहते थे
मेरे जिस्म के
काँटों में उलझ
तुमने स्वयं ही
अपने हाथ
लहू से रंग डाले
बदलते समय को
तुम नहीं पहचान पाए
शर्म आती है
तुम्हारे पुरुषत्व पर
वो अबला तो
कब की सबला
बन चुकी ही
जिसे कल का पुरुष
अपनी दासी
भोग्या का नाम देता था
देखो
तुम्हारे…
Added by Sushil Sarna on April 28, 2017 at 5:00pm — 6 Comments
यकीं के बाम पे ...
हो जाता है
सब कुछ फ़ना
जब जिस्म
ख़ाक नशीं
हो जाता है
गलत है
मेरे नदीम
न मैं वहम हूँ
न तुम वहम हो
बावज़ूद
ज़िस्मानी हस्ती के
खाकनशीं होने पर भी
वज़ूद रूह का
क़ायनात के
ज़र्रे ज़र्रे में
ज़िंदा रहता है
ज़िंदगी तो
उन्स का नाम है
बे-जिस्म होने के बाद भी
रूहों में
इश्क का अलाव
फ़िज़ाओं की धड़कनों में
ज़िंदा रहता है
लम्हे मुहब्बत…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 28, 2017 at 2:05pm — 7 Comments
Added by Vivek Kumar on April 28, 2017 at 1:23pm — 3 Comments
माना तेरा परिचय रूप है श्रंगार है.. पर,
मत भूल तुझमें रक्त का दौड़ता उबाल है |
सब पीर हैं तुझसे तृषित संसार की..
पर कैद सीने मे तेरे भी सहन का भण्डार है |
तू मूर्त है अभिमान की और गर्व भी अपार है,
तोड़ पैरों की बेड़ियाँ ये तेरा भी संसार है |
प्रेम की ओढ़े चुनरिया तू त्याग का गुबार है,
मत भूल तुझमें रक्त का दौड़ता उबाल है ||
गर जमीर तेरा साफ है तो जरूरत नही प्रमाण की,
कि दर्द तेरा हार और परिस्थिति श्रंगार है |
दुनिया ने देखी है तेरी सौंदर्य की…
Added by Vivek Kumar on April 27, 2017 at 10:30pm — 2 Comments
Added by Manan Kumar singh on April 26, 2017 at 7:31pm — 3 Comments
ग़ज़ल
फ ऊलन -फ ऊलन- फ ऊलन- फ ऊलन
.
ये हसरत मुकम्मल कभी हो न पाई।
मिले वह मगर दोस्ती हो न पाई ।
मुलाक़ात का सिलसिला तो है जारी
मगर इब्तदा प्यार की हो न पाई ।
त अज्जुब है बदले हैं महबूब कितने
मगर काम रां आशिक़ी हो न पाई।
गए वह तसव्वुर से जब से निकल कर
खुदा की क़सम शायरी हो न पाई ।
करें नफ़रतें भूल कर सब मुहब्बत
अभी तक ये जादूगरी हो न पाई ।
मुसलसल वो करते रहे बे…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 26, 2017 at 7:30pm — 8 Comments
Added by Arpana Sharma on April 26, 2017 at 5:39pm — 4 Comments
लिस्ट में से नाम और पता लेकर अमर ने खुद को विजट पर जाने के लिए तैयार कर लिया मोटर साइकल स्टार्ट कर वो सलेमपुर की तरफ निकल पड़ा।
अपना प्रोग्राम उसने ऐसे तैयार किया था कि कम से कम तीन कैंसर पीड़ित मैंबर के किसी फैमली मैंबर से वह मिल सके ।
चलने से पहले लिस्ट क्रम में इक नंबर पर महिंद्र कौर के घर वालों की तरफ से दिए गए नंबर पर उसने फौन लगाया ऐसा करना इस लिए भी जरूरी था कि कोई घर मिल जाए खास करके वह आदमी…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on April 25, 2017 at 5:13pm — 1 Comment
क़ैद रहा ...
वादा
अल्फ़ाज़ की क़बा में
क़ैद रहा
किरदार
लम्हों की क़बा में
क़ैद रहा
प्यार
नज़र की क़बा में
क़ैद रहा
इश्क
धड़कनों की क़बा में
क़ैद रहा
कश्ती
ढूंढती रही
किनारों को
तूफ़ां
शब् की क़बा में
क़ैद रहा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 25, 2017 at 5:00pm — 11 Comments
2122 1122 1122 22/112
कितने अच्छे थे मेरा ऐब बताने वाले
वो मेरे दोस्त मुझे रस्ता दिखाने वाले
वक्त ने, काश! उन्हें रुकने दिया होता ज़रा
साथ ही छोड़ गए साथ निभाने वाले
मुफ़लिसी मक्र की छाई है सियाही अब भी
पर बताओ हैं कहाँ शम्अ जलाने वाले
अपने क़ातिल से शिकायत नहीं कोई मुझको
कर गए ग़र्क मेरी कश्ती, बचाने वाले
खूब तासीर नज़र आई मुहब्बत की यूँ
रो पड़े जाँ को मेरी फ़ैज़ उठाने वाले
एकता टूटने पाए न कभी, मसनद पर
आके बैठे…
Added by शिज्जु "शकूर" on April 25, 2017 at 11:30am — 19 Comments
एक पौधा हमने रोपा था
सात वर्ष पहले
सोचा था वह
बढेंगा , फूलेगा, फलेगा।
धीरे-धीरे
उसमें आया विकास का
बवंडर
जो हिला गया
चूल-चूल उस वृक्ष के
जिसके लिए हम सोच रहे थे
कि कैसे उसे जड़ से
उखाड़ फेंके
एक ही झटके से उखड़ कर
धराशायी हो गया
हमने चैन की सांस ली
उस तरफ देखा तो
हमारा पौधा जो
अभी नाबालिग बच्चा था
अपनी हरियाली लिए
धीरे-धीरे झूम रहा था
हमें यह देख कर प्रसन्नता हुयी
उससे आशा की…
Added by indravidyavachaspatitiwari on April 25, 2017 at 7:30am — 2 Comments
टिपर-टिपर-टिप
टिपर-टिपर-टिप
पानी की इक बूँद झूम कर
मुस्काई फिर ये बोली...
मैं अलमस्त फकीर
टिपर-टिप
मैं अलमस्त फकीर...
चंचलता जब ओस ढली तो
पत्तों नें भी जोग लिया,
उनके हिस्से जितना मद था
सब का सब ही भोग लिया,
बाँध सकी पर बूँदों को कब
कोई भी ज़ंजीर...
टिपर-टिप
मैं अलमस्त फकीर...
रिमझिम-रिमझिम जब बरसी तो
जीवन के अंकुर फूटे,
अम्बर की सौंधी पाती ने
जोड़े सब रिश्ते टूटे,
बूँदें ही…
Added by Dr.Prachi Singh on April 24, 2017 at 10:00pm — 8 Comments
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