भूल गया जो मै खुद को तुझको पाकर
ये क्या कर बैठा दिल मेरा तुझपे आकर,
बस गये जो तुम मेरे इस दिल में आकर
मर न जाऊँ कहीँ मै इतनी ख़ुशी पाकर,
तूने ये क्या कर दिया दिल में मेरे आकर
अब तोड़ो ना दिल इस तरह से जाकर,
ख़ुदा मिल गया था जैसे तुझको पाकर
बता अब क्या कहूँ में ख़ुदा के घर जाकर,
पूछे जो क्यों भूल गया था किसी को पाकर
तू ही कुछ राह सूझा जा वापिस आकर,
कैसे बताऊँ मिल गया था क्या तुझको पाकर
ख़ुदा ही रूठ गया मेरा तो जैसे तेरे जाकर,
ये क्या कर बैठा दिल मेरा तुझपे आकर
ख़ुदा ही रूठ गया मेरा तो जैसे तेरे जाकर,
खुद को भुला बैठा जो में तुझको पाकर
ख़ुदा के लिए यादें ले जा ये अपनी आकर,
खुद को भुला बैठा जो में तुझको पाकर
ये क्या कर बैठा दिल मेरा तुझपे आकर.......
रोहित डोबरियाल"मल्हार"
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ० रोहित जी, बढ़िया भावाभिव्यक्ति है। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। आ० मोहम्मद आरिफ जी की तरह मेरा भी यही सुझाव है कि आप छंदबद्ध रचना प्रस्तुत करने का प्रयास करें। इसके लिए आपको इस वेबसाइट पर ही ढेर सारी सामग्री मिल जाएगी। आप एक-एक कर उनका अध्ययन करें। यदि लिखना ही है तो छंदयुक्त या छंदमुक्त रचना लिखें, "छंदबद्ध जैसी" रचना नहीं। ढेर सारी शुभकामनाएं। सादर।
Mohammad aarif# साहब आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से शुक्रिया , एवं छंदबद्ध रचना का ज्ञान न होने के कारण मुक्त रूप से ही लिखता हूँ।
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