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आग लगी आकाश में, उबल रहा संसार।
त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।
बरस रहे अंगार, धरा ये तपती जाए।
जीव जगत पर मार, पड़ी जो सही न जाए।
पेड़ लगा 'कल्याण', तुझी से यह आस जगी।
हरी - हरी हो भूमि, बुझे जो यह आग लगी !
सुरेश कुमार 'कल्याण'
मौलिक एवम् अप्रकाशित
Posted on May 29, 2024 at 8:00pm — 2 Comments
कुंडलियां*
हर घर की मुंडेर पर,
दीप जले चहुँ ओर।
दीवाली की रात है,
बाल मचाएं शोर।
बाल मचाएं शोर,
शोर ये बड़ा सुहाना।
भूलचूक सब भूल,
रहा लग गले जमाना।
खाओ रे *'कल्याण',*
मिठाई डिब्बे भर - भर।
खुशियाँ मिली अपार,
हुआ है रोशन हर घर।
*दोहा*
बढ़ें उजाले की तरफ,
हम सबके ही पांव।
इस दीवाली ना रहे,
अंधेरे में गांव।।
मौलिक एवम् अप्रकाशित
सुरेश कुमार 'कल्याण'
Posted on October 27, 2022 at 8:34pm
बयालीस हैं जा चुके,बीत रहा है काल।
सुखदुख चलते साथ में,जीवन इक जंजाल।।
यारों की ये कामना,रहे सदा ही साथ।
यार सलामत हों सदा, हे नाथों के नाथ।।
उन्यासी उन्नीस सौ,माह सितंबर जान।
सोलहवीं तारीख थी, जब जन्मे 'कल्याण'।।
गुरु आभे ने लिख दई,यही जन्म तारीख।
गुरु न देते ज्ञान तो, फिरूं मांगता भीख।।
मौलिक एवम् अप्रकाशित
Posted on September 17, 2021 at 12:01pm
हिंदी हमारी मातृभाषा, हिंदी जीवन का आधार ।
हिंदी की महिमा को गाते,करते हम इसका प्रचार ।।
हिंदी के बिना जीवन सूना,हिंदी देती सबको ज्ञान ।
मन के भाव प्रकट हों सारे, पूरे करती ये अरमान ।
मातृभाषा की महिमा देखो, सुनकर होता है अभिमान ।
कोर्ट कचहरी दफ्तर सारे, बाबू कलेक्टर चौकीदार ।
हिंदी की महिमा........................................... ।
माँस से नाखून दूर ना जाएँ, कौए चलें ना हंस की चाल ।
हिंदी के सब रंग में रंग लो, अपनी…
ContinuePosted on September 13, 2020 at 11:30am — 3 Comments
आद.सुरेश कुमार जी ,आपकी कविताओं में खूबसूरत बहाव है.सहजता है जो हर पाठक से सहज में जुड़ जाती है.
आदरणीय
सुरेश कुमार 'कल्याण' जी,
सादर अभिवादन,
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सादर ।
आपका
गणेश जी "बागी"
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