दोहे (प्रकृति)
पूजूँ प्रकृति प्रथम पद, पग-पग पर उपकार।
अस्थि चर्म की देह मम, पंच तत्त्व का सार।1।
दसों दिशा मन में बसी, करते कवि अरदास।
धरा अग्नि रवि पवन सह,पूजें जल आकास।2।
पूजूँ धरती मात जो, जीवन का आधार।
जीव अंक में खेलते, सहती सबका भार।3।
अग्नि तत्त्व बिन बदन में, ना हो को व्यवहार।
खादिम को आशीष दो, लेखन हो साकार।4।
जगमग हो जग सूर्य से, अंधकार का नाश।
नमस्कार कर जोड़कर, कण-कण तेरा वास।5।
पवन देव नित जीव में, करें रक्त संचार।
नतमस्तक 'कल्याण' हैं,स्वास बसें फनकार।6।
जल से चलती जिंदगी, झुक-झुक करूँ प्रणाम।
नस नदियों में जान बन, बहता आठों याम।7।
नमन करूँ आकाश को, बसे सर्व गुण गात।
वर्णन करूँ अनंत का, मेरी क्या औकात।8।
मौलिक एवं अप्रकाशित
सुरेश कुमार 'कल्याण'
कैथल (हरियाणा)
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