For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 63 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-64

विषय - "कोहरा / कुहरा"

आयोजन की अवधि- 12 फरवरी 2016, दिन शुक्रवार से 13 फरवरी 2016, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान मात्र एक ही प्रविष्टि दे सकेंगे.  
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.


सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 12 फरवरी 2016, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 13811

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जनाब नादिर खान साहिब आदाब ,  आज के हालात पर कुहरे को मज़्मून बनाकर आपने रचना में बेहतर मंज़रकशी की है। ..... मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं     

आदरणीय सर्वप्रथम तो एक बहुत ही सारगर्भित कविता के लिए बधाई | किन्तु , एक तरफ जहां पूरी कविता अभिव्यक्ति में पक्व है, मुझे दूसरे पद की अंतिम दो पंक्तियां पूरी कविता के सार और भाव के साथ विरोधाभासी लगती हैं| धर्म और अधर्म तथा ईश्वर में विश्वास स्वयं अपने में ज्ञान पर छाया हुआ गहरा कोहरा है और धरा का पूरा मानव समाज इसी से पीड़ित और शोषित है| मुझे लगता है कवि को यथार्थ को अभिव्यक्त करना चाहिए| मुलाहिजा फरमाएं ..

तलाशते रहेंगे अनवरत अनंत काल तक

अपनों के बीच अपनी जमीन

सबके साथ

जब तक छाया रहेगा मानव के मष्तिष्क में

ईश्वर और धर्म के भय का गहरा कोहरा 

जिसे फैलाते हैं 

उसी अस्तित्वहीन ईश्वर के धर्मी दूत 

यदि कोई बेजा बात कह दी हो तो मुआफी का हकदार हूँ|  

अ० नदिर्खा साहब -इस गंभीर रचना के लियेआप्को बधाई .

आदरणीय नादिर खान सर, प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया अतुकांत कविता लिखी है आपने. कोहरे के पार..... की आस को अभ्यक्त करती ये पंक्तियाँ गहरे तक प्रभावित करती है-

//

मै आस का दीप लिए

तलाशता हूँ अपनी ज़मीन

सबके बीच  

तलाशता हूँ अपना वजूद

सबके साथ

कोहरे के उसपार हर रोज़  ...//

इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई ..सादर 

जनाब नादिर ख़ान साहिब आदाब,प्रदत्त विषय पर बहुत सुंदर रचना हुई बधाई स्वीकार करें !

आदरणीय नादिर भाई

जहाँ लोग अपनी गलतियों पर शर्मिंदा होते हों

जहाँ लोग ईश्वर से डरते हों

जहाँ धर्म और अधर्म में फर्क हो।

बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक बधाई

मै आस का दीप लिए
तलाशता हूँ अपनी ज़मीन
सबके बीच
तलाशता हूँ अपना वजूद
सबके साथ
कोहरे के उसपार हर रोज़ ...

वाह बहुत खूब आदरणीय नादिर खान साहिब ... प्रदत विषय को आपने बड़े ही गहन अहसासों से अलंकृत किया है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

मौजूदा दौर में घने कोहरों के सापेक्ष आस के दीप के अहम अस्तित्व के भाव से परिपूर्ण अतुकांत कविता की बेहतरीन पेशकश के लिए तहे दिल बहुत बहुत मुबारकबाद जनाब नादिर ख़ान साहब।
Sarthak tippni evam hausala afzaii keliye sabhi sudhi janon ka shukriya mai Iztima(dharmik anusthan) me shamil hone hetu shahar se bahar hoo isliye repply na kar saka kshama karen

मै आस का दीप लिए

चल पड़ता हूँ हर रोज़

कोहरे के अंदर

तलाश में ज़िंदगी की,

ऐसी ज़िंदगी

जहाँ साजिशें न हों, गिरने और गिराने की

जहाँ सिर्फ मै – मै का स्वार्थ न हो

सब साथ – साथ हों

जहाँ लोग अपनी गलतियों पर शर्मिंदा होते हों

जहाँ लोग ईश्वर से डरते हों

जहाँ धर्म और अधर्म में फर्क हो।........वाह ! सच है यही सबकी चाहत है.

आदरणीय नादिर खान साहब सादर, बहुत उत्तम भाव और विचार लिए सुंदर रचना. सादर.

मै आस का दीप लिए

चल पड़ता हूँ हर रोज़

कोहरे के अंदर

तलाश में ज़िंदगी की,......वाह 

 

मै आस का दीप लिए

तलाशता हूँ अपनी ज़मीन

सबके बीच  

तलाशता हूँ अपना वजूद

सबके साथ

कोहरे के उसपार हर रोज़  .......  बहुत   सारगर्भित रचना ,  हार्दिक बधाई प्रेषित  है आदरणीय नादिर खान जी  

 

घुप्प, शुभ्र घना कोहरा

 

 

घुप्प, कारी अमावस की रात के अँधेरे को

परास्त कर देता है

एक छोटे से टिमटिमाते दिए का प्रकाश

पर घुप्प, शुभ्र घने कोहरे को

कहाँ भेद पाता है अग्नि पिंड सूर्य का प्रकाश

 

प्रकाश का अँधेरे को परास्त करना है

अज्ञान पर ज्ञान की जीत

पर, कोहरे को परास्त नहीं कर पाता प्रकाश

क्योंकि, कोहरा अज्ञान नहीं

ज्ञान पर पड़ा अंधेरा है

 

समय आ गया है, पहचाने उन्हें

फैला रहे हैं जो ज्ञान पर

घुप्प, शुभ्र घना कोहरा

समय रहते यदि रोका न इनको

धिक्कारेंगी आने वाली पीढ़ियाँ

सदियों तक हमको  

   

रचना मौलिक तथा अप्रकाशित है         

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"खुद ही अपनी ज़िन्दगी दुश्वार भी करते रहे दोस्तों से गैर सा व्यवहार भी करते रहे धर्म-संकट से बचाना…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आपकी ग़ज़ल में रदीफ़, काफ़िया और बह्र की दृष्टि से प्रयास सधा हुआ है। इसे प्रशंसनीय अभ्यास माना जा…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"सादर , अभिवादन आदरणीय।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"नफ़रतों की आँधियों में प्यार भी करते रहे।शांति का हर ओर से आधार भी करते रहे।१। *दुश्मनों के काल को…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"जय-जय"
10 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"स्वागतम"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Saurabh Pandey's blog post गजल - जा तुझे इश्क हो // -- सौरभ
"आ. सौरभ सर श्राप है या दुआ जा तुझे इश्क़ हो मुझ को तो हो गया जा तुझे इश्क़ हो..इस ग़ज़ल के…"
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. नाथ जी "
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. विजय जी "
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. अजय जी "
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. समर सर. पता नहीं मैं इस ग़ज़ल पर आई टिप्पणियाँ पढ़ ही नहीं पाया "
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service